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Patrika Opinion: निजी स्वार्थ छोड़े तब ही एक होगा विपक्ष

पिछले आठ साल में दर्जनों बार कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों ने एकजुटता के जब-जब प्रयास किए यह कवायद प्रधानमंत्री के चेहरे से आगे बढ़ ही नहीं पाई।

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Patrika Desk

Sep 26, 2022

प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

चुनाव नजदीक आते ही केन्द्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ एकजुटता के विपक्षी दलों के प्रयास शुरू हो जाते हैं। पिछले आठ साल में दर्जनों बार कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों ने एकजुटता के जब-जब प्रयास किए यह कवायद प्रधानमंत्री के चेहरे से आगे बढ़ ही नहीं पाई। कारण भी साफ है जो भी दल एकता के प्रयासों में भागीदार बनना चाहता है वह अपने नेता को संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में देखना चाहता है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की रविवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से नई दिल्ली में हुई मुलाकात को भी विपक्षी एकता को लेकर बनने वाली रणनीति से जोड़कर ही देखा जा रहा है।

एकता के प्रयासों में तस्वीर का दूसरा पहलू हरियाणा में पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की जयंती पर आयोजित रैली में पहुंचे नेताओं से साफ नजर आता है। इस रैली में दस राज्यों में विपक्षी दलों के सत्रह बड़े नेताओं को आमंत्रित किया गया था। आमंत्रित ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे व फारूख अब्दुल्ला सरीखे नेताओं ने रैली से दूरी बना कर रखी। ऐसा भी नहीं है कि एकता के प्रयासों को इस तरह की रैलियों में नेताओं के आने या न आने से जोडक़र देखा जाए। लेकिन अब तक के अनुभव बताते हैं कि विपक्षी एकता के शक्ति परीक्षण का माध्यम रैलियांं ही होती रही हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद नीतीश कुमार व लालू यादव आश्वस्त नजर आए कि वे देश में गैर-भाजपा दलों को एकजुट करने में जुटे हैं। सोनिया गांधी से कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बाद उनकी फिर से मुलाकात होगी। देश में मजबूत विपक्ष होना भी चाहिए, पर जब नेताओं के निजी स्वार्थ व महत्त्वाकांक्षाएं आड़े आती हैं जो ऐसे प्रयास शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाते हैं। पदयात्रा के जरिए राहुल गांधी को पीएम के चेहरे के रूप में पेश करने में जुटी कांग्रेस के साथ खुद नीतीश कुमार, प. बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के अलावा शरद पवार के नाम भी प्रधानमंत्री के लिए विपक्ष की ओर से चलते हैं, पर कोई साझा सहमति जैसे पहले नहीं हुई, अब हो पाएगी इसके आसार कम ही नजर आते हैं।

ऐसा नहीं है कि विपक्ष को एकजुट कर सत्ता हासिल नहीं की जा सकती। केन्द्र में आज सत्तारूढ़ भाजपा भी दो सीटों से बढक़र अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में आई है। विपक्षी एकता के ये प्रयास तब जाकर ही ज्यादा कारगर हो सकेंगे जब अपने हित के बजाए ये दल जनहित की बात करेंगे।