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फायदेमंद नहीं होगा मॉडरेशन मार्क्स खात्मा

संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा की परीक्षाओं तक में मॉडरेशन की प्रणाली को अपनाया जाता है। इस व्यवस्था के खत्म होने से तुलनात्मक न्याय नहीं हो पाएगा।

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Rajeev sharma

Apr 26, 2017

शिक्षाविद्

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) सहित सभी राज्यों के शिक्षा बोर्डों को इस बात पर सहमत कर लिया है कि इस वर्ष से किसी भी बोर्ड 12वीं कक्षा के अंक मॉडरेट नहीं करेगा। यानी नरमी के साथ अंक बढ़ाकर नहीं दिए जाएंगे।

विद्यार्थियों को उनकी उत्तरपुस्तिका के हिसाब से ही अंक मिलेंगे। लेकिन इससे तुलनात्मक परिस्थिति बंद हो जाएगी। कई विषयों में तो पूरे अंक मिल जाते हैं लेकिन हिंदी जैसे विषयों में कभी पूरे अंक नहीं मिलते हैं। इसलिए विभिन्न विषयों में उच्चतम प्राप्ताकों के आधार पर मॉडरेशन किया जाता है।

दूसरा तरीका यह है किसी विषय की कठिन और सरल मार्किंग के आधार पर मॉडरेशन किया जाए। सभी विद्यार्थियों के न्याय हो, इसके लिए मॉडरेशन की जरूरत पड़ती है। सभी केंद्रों के सभी विषयों के विद्यार्थियों के साथ न्याय करने के लिए बुनियादी सिद्धांतों के आधार पर मॉडरेशन करना पड़ता है।

संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा की परीक्षाओं तक में मॉडरेशन की प्रणाली को अपनाया जाता है। इस व्यवस्था के खत्म होने से तुलनात्मक न्याय नहीं हो पाएगा। सभी विषयों को एक तराजू में नहीं तोला जा सकता है। इसके खत्म होने से कुछ छात्रों को अतिरिक्त लाभ मिल जाएगा तो कुछ छात्र नुकसान में रहेंगे।

सीबीएसई का यह सिद्धांत भी गलत है कि मॉडरेशन से पर्सेंटाइल में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। परीक्षा का उद्देश्य तो यही होना चाहिए कि सभी छात्र अच्छे अंकों के साथ उतीर्ण हों। हमारी सारी शिक्षा व्यवस्था ही इसलिए बनी है कि सभी लोग अच्छी शिक्षा पाएं और अच्छा प्रदर्शन करें।

मॉडरेशन की व्यवस्था खत्म करने को भले विद्यार्थियों के हित में और उनको फायदा पहुंचाने वाला बताया जा रहा है लेकिन यह नुकसानदायक साबित हो सकता है। दूसरा फैसला विद्यार्थियों को दिए जाने वाले 'ग्रेस मार्क्स को लेकर किया गया कि इसे जो बोर्ड चाहें वो पारदर्शी प्रक्रिया अपना कर जारी रख सकते हैं।

उन्हें इससे संबंधित सूचनाएं अपने पोर्टल पर दिखानी होंगी। ग्रेस मार्क्स की व्यवस्था इस आधार पर की गई थी कि एकदम सही अंक किसी को नहीं दिए जा सकते हैं। अंक अनुमान के आधार पर दिए जाते हैं इसलिए थोड़े-बहुत कम-ज्यादा हो सकते हैं।

इसीलिए माना जाता है यदि कोई 1-2 अंक से फेल होता है तो यह मान कर ग्रेस मार्क्स दे दिए जाते हैं कि जांच के समय अनुमान में 1-2 अंक के कम-ज्यादा के आधार का विद्यार्थी को नुकसान नहीं उठाना पड़े। इस व्यवस्था को राज्य शिक्षा बोर्डों की इच्छा पर छोड़ दिया गया है।

यदि मार्क्स मॉडरेशन की व्यवस्था को समाप्त किया जा रहा है तो फिर इसे क्यों चालू रखा गया है? इसे भी समाप्त कर दिया जाना चाहिए।

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