
सेहत: कोरोना के बाद स्वस्थ समाज के लिए तीन-पक्षीय भागीदारी की जरूरत
डॉ. चन्द्रकांत लहारिया
हाल के दशकों में विशेषज्ञों ने इस बात पर बल दिया है कि स्वस्थ समाज बनाना तभी संभव है जब तीन-पक्षीय भागीदारी हो। ये भागीदार हैं - नीति निर्धारक (चुने हुए प्रतिनिधि और कार्यक्रम प्रबंधक), स्वास्थ्य विशेषज्ञ (चिकित्सा एवं जनस्वास्थ्य), एवं समुदाय व नागरिक। कोविड-19 महामारी ने इस अवधारणा को एक बार फिर सिद्ध कर दिया है। स्वीडन में कोविड-19 से लडऩे की रणनीति लगभग पूरी तरह तकनीकी विशेषज्ञों के हाथों में थी। सरकार और समुदाय इन निर्णयों में कम शामिल थे। स्वीडन उन चुनिंदा देशों में शुमार है, जिसने 'लॉकडाउन' लागू नहीं किया। नतीजा यह हुआ कि स्वीडन में संक्रमितों और मरने वालों की संख्या उसके पड़ोसी देशों के मुकाबले बहुत अधिक थी।
दूसरी ओर अमरीका का उदाहरण है, जहां सारे अंतिम निर्णय राजनीतिक नेतृत्व कर रहा था और महामारी से जुड़े वैज्ञानिक साक्ष्यों व जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय को पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया। अमरीका विश्व का ऐसा देश रहा, जहां कोविड-19 का सर्वाधिक दुष्प्रभाव देखा गया। अब एशियाई देशों थाईलैंड और वियतनाम की बात की जाए, जहां नीति निर्धारकों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और समुदायों के बीच समन्वय व्यवस्था विद्यमान है, वहां इसी भागीदारी के साथ कोविड-19 से मिलजुल कर निपटा गया। मुम्बई के धारावी में भी यही तीन-पक्षीय भागीदारी की नीति अपनाई गई। ये देश और जगहें महामारी से निपटने में सफल माने जा रहे हैं।
वर्ष 2020 चुनौतीपूर्ण रहा। अब 2021 ने उम्मीद जगाई है कि वैक्सीन आने के बाद विश्व महामारी से उभर सकेगा। हालांकि भारत में बहुप्रतीक्षित वैक्सीन लॉन्च होनेे के बाद शुरुआत में लोगों में इसके प्रति 'हिचकÓ भी देखी गई। चूंकि देश में करोड़ों लोगों का कोविड-19 टीकाकरण किया जाना है, इसलिए लोगों के मन से वैक्सीन के प्रति झिझक को मिटाना होगा। इसके लिए भी तीन-पक्षीय भागीदारी सहायक सिद्ध होगी। समन्वय की इस प्रक्रिया के लिए चाहिए कि हर स्तर - केंद्र, राज्य और जिला - पर नीति निर्धारक नियमित रूप से स्वास्थ्य विशेषज्ञों और जन समुदाय और उनके प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श करते रहें। इस प्रकार के संवाद में पारदर्शिता एवं समयबद्धता का पालन किया जाए, और समाधान समुदाय के प्रतिनिधियों की राय को ध्यान में रखकर बनाए जाएं। ऐसे ही प्रयासों से पोलियो एवं अन्य स्वास्थ्य अभियान पूर्व में भी सफलतापूर्वक क्रियान्वित किए जा चुके हैं। यही नीति कोविड-19 टीकाकरण के लिए भी कारगर सिद्ध होगी।
कोविड-19 महामारी से एक और चुनौती सामने आई है, जिससे निपटना जरूरी है। कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए मार्च 2020 से देशभर में स्वास्थ्य सुविधाओं, अस्पताल में बेड और स्वास्थ्य कर्मियों की भूमिका में बदलाव किया गया (यह उचित भी था)। हालांकि अब संक्रमण के मामले कम हो रहे हैं और वैक्सीन भी आ चुकी है, इसलिए गैर कोविड-19 यानी नियमित स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने की जरूरत है। वरना होगा यह कि कोरोना से तो स्वयं को बचा लेंगे लेकिन गैर कोविड स्वास्थ्य सेवाओं की पुन: सामान्य बहाली में देरी का प्रतिकूल असर भविष्य में लोगों के स्वास्थ्य पर देखने को मिल सकता है।
स्वास्थ्य सेवाओं की सामान्य बहाली भी तीन-पक्षीय भागीदारी से संभव होगी। इसके लिए नीति निर्धारकों को स्वास्थ्य सेवाएं पूर्ण रूप से सुचारु करने की प्रक्रिया शुरू करने की जरूरत है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों को कोरोना के बाद सामने आई नई स्वास्थ्य आवश्यकताओं, जैसे कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत को रेखांकित करना चाहिए। समुदायों और आमजन को कोविड नियमों की पालना करते हुए स्वास्थ्य सेवाओं की मांग और उनका उपयोग करना शुरू करना होगा। स्वास्थ्य सेवाओं में तीन-पक्षीय भागीदारी को सुदृढ़ करने का समय आ गया है।
(लेखक जनस्वास्थ्य, वैक्सीन और स्वास्थ्य तंत्र विशेषज्ञ हैं)
Updated on:
16 Feb 2021 07:23 am
Published on:
16 Feb 2021 07:15 am
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