रांची में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में देश में मुस्लिमों की बढ़ती आबादी के
मुद्दे को उठा फिर जनसंख्या असंतुलन का राग छेड़ा है। आवश्यकता जताई कि देश में
समान जनसंख्या नीति बने। ये सामाजिक मसला अपने में कई सियासी रंग भी समेटे है।
आंकड़ों को अपने ढंग से पेश कर एक विचारधारा को तो पुष्ट किया जा सकता है लेकिन देश
के समग्र हित में हमें केवल हल्ले, शोरगुल तक सीमित नहीं होकर हल खोजने के प्रयास
करने होंगे। मुस्लिमों की आबादी क्या वाकई में तेजी से बढ़ रही है अथवा इसमें
तुलनात्मक रूप से वृद्धि दर में कमी आ रही है? जनसंख्या नीति में किन बातों को
शामिल किया जाए? जनसंख्या स्थरीकरण के क्या उपाय हो सकते हैं? इन्हीं मुददों पर
जानिए विशेषज्ञों की राय...
भ्रामक आंकड़ों से और उलझते हालात
डॉ.
देवेंद्र कोठारी जनसंख्या विश्लेषक
देश में मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़
रही है। सही तथ्य है, लेकिन इन आंकड़ों को अपने-अपने नजरिये से देखने खासकर सियासी
चश्मे से देखने पर भ्रामक तस्वीर सामने आती है। हालात उलझते हैं। ऎसे में समस्या का
हल खोजना मुश्किल हो जाता है। वर्ष 2011 के जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2001
की तुलना में देश की कुल आबादी 17.7 फीसदी की दर से बढ़ी। हिंदुओं में ये वृद्धि दर
16.8 फीसदी तो मुस्लिमों में ये 24.6 फीसदी रही।
आंकड़ों से लगता है कि देश में
अल्पसंख्यक मुस्लिम आने वाले कुछ पचास साल में बहुसंख्यक हो जाएंगे। ये जुबानी
जुमले भी काफी उछाले गए। लेकिन जनसंख्या सांख्यिकी के अनुसार ऎसा होना कतई संभव
नहीं है। ऎसा उसी सूरत में हो सकता है जबकि हिंदू अगले पचास साल की अवधि के दौरान
संतान उत्पत्ति ही नहीं करें। जरा सोचिए क्या ऎसा हो सकता है। नहीं, फिर ऎसी
आशंकाओं के मायने क्या हैं।
समान जनसंख्या नीति!
अब बात उठाई जा रही है कि
देश में समान जनसंख्या नीति बने, ये अतार्किक है। वर्ष 2000 में तत्कालीन
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे लागू किया था। देश में समान जनसंख्या नीति
शिगूफा मात्र है जब देश में समान नागरिक संहिता नहीं तो फिर इसमें कैसे धर्म के
आधार पर विभेद हो सकता है।
शक की निगाह से न देखें
हमें अल्पसंख्यकों की
मानसिकता पर भी गौर करना होगा। जनसंख्या के आंकड़ों को देखने पर पता चलता है कि भय
की मानसिकता के कारण भी दुनिया भर में अल्पसंख्यकों की जनसंख्या वृद्धि दर ज्यादा
रहती है। बहुसंख्यकों द्वारा अल्पसंख्यकों को शक की निगाह से देखने की परिपाटी पर
भी अंकुश लगना चाहिए। देश में सिखों की आबादी घट रही है अथवा स्थिर है, लेकिन जम्मू
में सिखों की संख्या बढ़ रही है। जनसंख्या वृद्धि में अल्पसंख्यक मानसिकता को इस
उदाहरण से समझा जा सकता है। असम में मुस्लिमों की संख्या में वृद्धि का एक बड़ा
कारण बांग्दलादेश सीमा से घुसपैठ है।
शिक्षा और आर्थिक विकास
मुस्लिमों में
शिक्षा और आर्थिक विकास की स्थिति बहुसंख्यकों से कहीं कम है। जनसंख्या वृद्धि दर
का ये भी एक बड़ा कारण है। आरएसएस को चाहिए कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक
हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में कंप्यूटर के सूत्र को भी मुस्लिम समुदाय में फैलाने
की दिशा में सार्थक कदम उठाए। शिक्षा के प्रसार और इससे होने वाली मुस्लिम समुदाय
में आर्थिक प्रगति से विकास के नए पैमान स्थापित हो सकते हैं।
परिवार नियोजन के
साधन
हमारी परिवार नियोजन की नीतियों में भी काफी कमियां है। हम अब तक कंडोम,
स्टरलाइजेशन, पिल्स और आईयूडी को ही साधन मानते आए हैं। पड़ोसी मुस्लिम राष्ट्र
बांग्लादेश में महिला इंजेक्टिबल्स से जनसंख्या वृद्धि दर पर अंकुश की कौड़ी खोजी
गई है। हमारे देश में पिछले ही महीने इंजेक्टिबल्स को अभी मात्र विचार के तौर पर
शामिल किया गया है। मुस्लिम समुदाय में अनवांटेड फर्टिलिटी भी जनसंख्या वृद्धि का
प्रमुख कारण है। इसे इंजेक्टिबल्स के जरिये रोका जा सकता है। एकीकृत आंध्रप्रदेश
में 70 फीसदी दंपत्ति स्टरलाइजेशन अपना चुके हैं। इसके लिए वहां की राज्य सरकार ने
बड़े पैमाने पर सफल अभियान चलाया था।
एक दशक में चीन से आगे
हमारी
जनसंख्या वृद्धि दर (1.55 फीसदी सालाना) चीन (0.66 फीसदी सालाना) से दोगुनी है।
वर्ष 2025 में हमारी आबादी चीन के बराबर होने का अनुमान है। इसके बाद हम चीन को भी
पीछे छोड़ जाएंगे। 2050 तक भारत की आबादी लगातार बढ़ने का अनुमान है। वहीं चीन 2025
तक 1.4 अरब जनसंख्या के साथ शीर्ष पर रहेगी पर इसके बाद उसकी आबादी ढलान पर आने
लगेगी। वन चाइल्ड पॉलिसी के कारण पिछले कई बरसों से चीन में मातृत्व दर भारत से कम
रही है। अब चीन ने इस नीति को खत्म करने का ऎलान किया है।
किसी समुदाय पर
थोपें नहीं
प्रो. वी. सुजाथा जेएनयू, नई दिल्ली
आबादी के आंकड़ों
को आधार बना कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जनसंख्या नीति के पुनर्निधारण की जो मांग
कर रहा है मैं नहीं समझती कि संघ इस दिशा में सही है। देश में दूसरी कई ज्वलंत
समस्याएं हैं। लिंगानुपात हमारे यहां की बड़ी समस्या है। बलात्कार के बाद महिलाएं
मार दी जाती हैं। इसकी कोई चिंता नहीं कर रहा। हमारे देश में हर वर्ग-समुदाय को
अपने तरीके से जीवनयापन करने की आजादी है। ऎसे में किसी वर्ग समुदाय पर ऎसी शर्ते
थोपना एक तरह से नाजी दृष्टिकोण ही होगा। हमारे यहां जनसंख्या धार्मिक आधार और
धार्मिक मूल्यों पर आधारित हो ऎसा नहीं है। आप देखेेगे कि यदि बेहतर स्वास्थ्य
सुविधाएं, शिक्षा और परिवार नियोजन के साधन आसानी से उपलब्ध हों तो हर वर्ग समुदाय
छोटे परिवार को ही प्राथमिकता देगा। इसलिए यह बयान देना कि किसी विशेष्ा समुदाय के
कारण आबादी बढ़ रही है न तो इस तरह की जानकारी उचित है और न ही इस तरह कहना सही है।
यह गलत समय पर उठाया गया आरएसएस का गलत बिन्दु है।
आज देश पर में कई दूसरी बड़ी
समस्याएं हैं जो दूसरे वर्ग समुदाय समेत हिन्दुओं में भी हैं। लिंगानुपात व
स्वास्थ्य सेवाओं में कमी हमारे यहां खतरे की घंटी है। कई अध्ययनों में यह बात
सामने आई हैं कि शिक्षा, चिकित्सा की बेहतर उपलब्घियों के कारण मुस्लिम समुदाय में
भी परिवार नियोजन को लेकर जागरूकता आई है। जन्म व मृत्यु दर में बदलाव के आंकड़े भी
बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं व शिक्षा के प्रसार को बढ़ाने वाले होते हैं। इनको किसी
एक समुदाय पर थोपना उचित नहीं। गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी, अशिक्षा जैसी बड़ी
समस्याओं की जड़ में जाकर ही हम समुचित बदलाव की उम्मीद कर सकते हैं। किसी विशेष
समुदाय की आबादी बढ़ रही है या घट रही है यह बड़ी बात नहीं। अमरीका में देखें वहां
माइग्रेट कर आने वालों की आबादी बढ़ रही है।
चीन से सबक लें, बनाएं आदर्श
नीति
डॉ. जयंतीलाल भंडारी आर्थिक मामलों के जानकार
हाल ही में 29
अक्टूबर, 2015 को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अध्यक्षता में सत्तारूढ़
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) की चार दिन चली बैठक में यह निर्णय लिया गया
कि बूढ़ी होती आबादी और युवा कार्यशील श्रमिकों की कमी के कारण 1979 से चीन में
लागू "वन चाइल्ड पॉलिसी" (प्रति दंपत्ति एक बच्चा) की जनसंख्या नीति को समाप्त करके
प्रति दंपत्ति दो बच्चे की नीति (टू चाइल्ड पॉलिसी) को लागू किया जाए। संभावना है
कि अब इस प्रस्ताव पर नेशनल पीपुल्स कांग्रेस का अनुमोदन प्राप्त होने में कोई
कठिनाई नहीं होगी। गौरतलब है कि चीन में 1979 से चली आ रही एक दंपत्ति एक बच्चे की
नीति के कारण युवा जनसंख्या में चिंताजनक कमी आई है। यद्यपि चीन इस समय 140 करोड़
आबादी के साथ दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है पर कठोर जनसंख्या नीति के
कारण युवा कार्यशील आबादी की कमी के कारण चीन में आर्थिक-सामाजिक चिंताएं बढ़ गई
हंै।
वन चाइल्ड का खमियाजा
वस्तुत: अब चीन के इतिहास की प्रमुख घातक भूलों
में 1979 में अपनाई गई एक दंपत्ति एक बच्चे की नीति भी शामिल हो गई है। कहा जा रहा
है कि कोई 35 साल पहले चीन द्वारा प्रगति के लिए छलांग लगाकर बढ़ती आबादी को कानूनी
तरीके से नियंत्रित करना उपयुक्त कदम समझा गया था। जनसंख्या वृद्धि पर कठोर
प्रतिबंध लगाते समय भविष्य में श्रमिकों की कमी संबंधी मुद्दा नजरअंदाज हो गया था।
यद्यपि चीन में जनसंख्या घटने से कई आर्थिक-सामाजिक मुश्किलों में कमी आई। भारी
विकास हुआ पर अब चीन की अर्थव्यवस्था में घटते हुए श्रमबल से उत्पादन और विकास दर
घटने का सिलसिला शुरू हो गया है। चीन को जहां विकास के लिए काम करने वाले अधिक
लोगों की जरूरत है, वहीं श्रमबल में कमी से होने वाली हानि को चीन अनुभव कर रहा
है।
एक ऎसे समय में जब 29 अक्टूबर को चीन ने जनसंख्या और विकास के मॉडल में अपनी
भूल संशोधित करने का निर्णय लिया है, तब भारत को विकास के मद्देनजर आदर्श जनसंख्या
की नई रणनीति पर ध्यान देना चाहिए। इस नई रणनीति के तहत एक ओर छलांग लगाकर बढ़ती
हुई जनसंख्या के नियंत्रण पर ध्यान देना होगा। वहीं दूसरी ओर भारत को जनसंख्या का
ऎसा नया रोडमेप बनाना होगा, जिससे बढ़ती जनसंख्या का उपयुक्त रूप दिखाई दे ताकि देश
में भविष्य में शिक्षित-प्रशिक्षित श्रमबल की सतत उपलब्धता भी बनी रहे।
देश में
2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की जनसंख्या 121 करोड़ हो गई है। पिछले एक दशक में
देश की आबादी में 17.7 फीसदी की वृद्धि हुई है। भारत की जनसंख्या अमरीका,
इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान और बांग्लादेश की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा है।
यद्यपि भारत दुनिया का पहला देश है, जिसने अपनी जनसंख्या नीति बनाई थी पर देश की
जनसंख्या वृद्धि दर नियंत्रित नहीं हो पाई है।
हम दो, हमारे दो पर
बढें
जनसंख्या विस्फोट जैसी स्थिति भारत में कदम-कदम पर आर्थिक-सामाजिक खतरों के
रूप में दिखाई देगी। यदि हम चाहते हैं कि देश उपयुक्त श्रमबल से आर्थिक व औद्योगिक
विकास की नई इबारत लिखे और भारतीय प्रतिभाएं देश की मिट्टी को सोना बना दें तो हमें
एक ओर भारत में कारगर तरीके से जनसंख्या नियंत्रण के प्रयासों से प्रगति और खुशहाली
की स्थिति निर्मित करनी होगी। वहीं दूसरी ओर "हम दो हमारे दो" की नीति को अपनाकर
भविष्य में भी श्रमबल चिंताओं से दूर रहकर विकास की डगर पर लगातार आगे बढ़ना होगा।