सरकारी टेंडर प्रक्रिया मेें देरी और अफसरशाही ने इन आंगनवाड़ी केंद्रों के ‘पोषण भी और शिक्षा भी’ ध्येय का मखौल उड़ाना शुरू कर दिया है। क्योंकि अब 6 साल तक के बच्चों में से सिर्फ 3 से 6 साल तक के उन बच्चों तक ही यह दूध पहुंचेगा जो आंगनवाड़ी केंद्रों में पहुंचते हैं। तीन साल से कम उम्र के बच्चे जिन्हें दूध के जरिए पोषण की ज्यादा जरूरत होती है वे दूध से वंचित रहेंगे। जबकि इस आयुवर्ग के बच्चों को उनके घर तक दूध पहुंचाने की बात कही गई थी। हैरत की बात यह है कि बजट घोषणा के मुताबिक सात माह पहले ही बच्चों तक दूध पहुंचना था जो अभी तक नहीं पहुंच पाया।
आंगनवाड़ी केंद्र न सिर्फ बच्चों के पोषण और प्रारंभिक शिक्षा में अहम भूमिका निभाते हैं, बल्कि महिलाओं व परिवारों के सशक्तीकरण में भी खासा योगदान देते हैं। एक तरफ सरकारी स्तर पर इन केंद्रों को प्ले स्कूल के रूप में भी विकसित करने के दावे किए जा रहे हैं, दूसरी ओर नामांकन बढ़ाने के प्रयास इस लेटलतीफी की भेंट चढ़ते नजर आ रहे हैं। तीन साल से कम उम्र के करीब बीस लाख बच्चों तक दूध नहीं पहुंचाने का मतलब उनके पोषण की परवाह नहीं करना ही है।
राजस्थान में कुपोषण एक बड़ी समस्या है, विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में महिला और बच्चों को पोषक तत्व पूरे नहीं मिल पाते हैं। राज्य सरकार ने आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चों व गर्भवती महिलाओं के पोषण के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। इसके तहत, विशेष रूप से कुपोषण से जूझ रहे बच्चों को भोजन के साथ-साथ पोषणयुक्त आहार भी दिया जाता है। प्रारम्भिक शिक्षा में भी मिड-डे मील के जरिए बच्चों को पोषाहार दिया जाता है। किसी भी कल्याणकारी सरकार का यह दायित्व है कि वह बच्चों की सेहत की चिंता के साथ उनके पोषण का समुचित बंदोबस्त भी करे। बच्चों को दूध से वंचित करना घोर लापरवाही है और इसके जिम्मेदारों का पता लगाकर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
–शरद शर्मा
sharad.sharma@in.patrika.com