
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) पर वैश्विक शिखर सम्मेलन में तकनीकी समन्वय और नीतिगत एकरूपता की दिशा में प्रगति की आशा धूमिल हुई है। सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों के बीच एआइ के विकास और उसके नियमन को लेकर मतभेद उभरकर आए। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य देशों में से दो अमरीका और ब्रिटेन ने अंतरराष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। इससे यह स्पष्ट है कि तकनीकी प्रभुत्व की दौड़ में हर देश अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है। इसके विपरीत भारत, फ्रांस और चीन सहित कई देशों ने इस समझौते को अपनाने का निर्णय किया। भारत और चीन का एक ही पाले में खड़ा होना इस बात का संकेत है कि एआइ को लेकर इन देशों की दृष्टि समावेशी विकास पर केंद्रित है। भारत का पक्ष स्पष्ट है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को महत्त्व देना आवश्यक है लेकिन यह महज तकनीकी विकास तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसका लाभ समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचना बेहद जरूरी है। खासतौर पर ग्लोबल साउथ के देशों में एआइ की पहुंच सुनिश्चित करना प्राथमिकता है।
तकनीकी नवाचार ने हमेशा समाज, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा की रूपरेखा को नया आकार दिया है और एआइ भी इस दिशा में एक बड़ा परिवर्तनकारी कारक बनकर उभरा है। यह भविष्य में हमारे जीवन और कार्य करने के तरीकों को परिभाषित करेगा। इसकी क्षमता अपार है। हालांकि इसके संभावित पूर्वाग्रहों और खतरों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। दुनिया को यह समझने की आवश्यकता है कि तकनीक केवल नौकरियों को समाप्त करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह कार्य की प्रकृति को बदलने का साधन भी है। ऐसे में वैश्विक स्तर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास और नियमन के लिए संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। भारत में प्रस्तावित अगले एआइ एक्शन समिट से पहले, यह जरूरी है कि एआइ के जोखिमों से निपटने और सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए ठोस रणनीति तैयार की जानी चाहिए। उसके अलावा यह भी सुनिश्चित किया जाए कि एआइ का उपयोग नैतिक मूल्यों के अनुरूप हो और इसका उद्देश्य संपूर्ण मानवता के कल्याण की दिशा में अग्रसर रहे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की यह दौड़ महज तकनीकी वर्चस्व तक सीमित नहीं होनी चाहिए। इसे वैश्विक समावेशन और समृद्धि का आधार बनाना होगा। तभी यह तकनीकी क्रांति संपूर्ण विश्व के लिए लाभकारी कदम सिद्ध होगी।
Published on:
12 Feb 2025 10:19 pm
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