इस खुलासे के बाद यह भी स्पष्ट हो गया है कि वोट बैंक को बनाए रखने के लिए राजनेता जनता को किस हद तक गुमराह कर सकते हैं। पुलिस महानिदेशक के बयान को भी इसी रोशनी में देखा जा सकता है। उदयपुर की घटना सीधे-सीधे पुलिस तंत्र की विफलता और पक्षपात को उजागर करती है।
लगातार धमकियां मिलने के बावजूद शिकायतकर्ता की सुरक्षा का प्रबंध न करना, धारा 120 बी के अन्तर्गत मामला दर्ज न कर षड्यंत्रकारियों को बचाने की कोशिश करना प्रदेश के गैर जिम्मेदार और नाकारा पुलिस प्रशासन की काबिलियत और निष्पक्षता की पोल खोल देता है। आश्चर्य है फिर भी किसी बड़े जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई। होती कैसे नेताओं के राजनीतिक मंसूबे पूरे करने में वे मददगार जो रहते हैं। इसी वजह से वे रीढ़विहीन हो जाते हैं। अपराधी उनसे खौफ खाने की बजाए उन्हें अपना रक्षक मानने लगते हैं।
राजनेता तो राजनेता हैं। धर्म और जाति के नाम पर वोट लुभाने के लिए शान्ति अमन को दांव पर लगाने में भी उन्हें जरा हिचक नहीं होती। राजस्थान में करौली, जोधपुर व अन्य स्थानों पर हुई साम्प्रदायिक घटनाएं इसकी पुष्टि करती हैं। ऐसी घटनाओं में दोषियों को बचाने में पूरा तंत्र जुट जाता है।
एनआइए की सूचना उन सभी लोगों को करारा जवाब है, जो केवल वोटों को आकर्षित करने के लिए अपराधियों को बचाने की कोशिश करते हैं और जनता को गुमराह करते जाते हैं। आम जनता को लड़ाने-भिड़ाने वाले लोगों से हमेशा सावधान रहना चाहिए। इस बात पर भी नजर रखनी होगी कि हमारे बीच कोई अपराधी तो नहीं बैठा है और हममें से कोई जाने-अनजाने उसकी मदद तो नहीं कर रहे। ऐसी ही सावधानियों से सौहार्द बना रह सकता है। अपराधी का कोई धर्म, कोई जाति नहीं होती। उसके साथ और उसको संरक्षण देने वालों के खिलाफ निष्पक्ष और कठोर कार्रवाई होनी ही चाहिए। यही राजधर्म है और यही राजनीति है। पक्षपात तो ‘अनीति’ के सिवाय कुछ भी नहीं है।