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सबसे महत्त्वपूर्ण मैच

इन दिनों देश में दो ही बातों की धूम मची हुई है। क्रिकेट वर्ल्ड कप और पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव। क्रिकेट के सेमीफाइनल में जब भारत की टीम जीती तो देश के करोड़ों क्रिकेट प्रेमी खुशी से झूम उठे।

Nov 18, 2023 / 11:05 am

भुवनेश जैन

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इन दिनों देश में दो ही बातों की धूम मची हुई है। क्रिकेट वर्ल्ड कप और पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव। क्रिकेट के सेमीफाइनल में जब भारत की टीम जीती तो देश के करोड़ों क्रिकेट प्रेमी खुशी से झूम उठे। लाखों लोग उत्साह से सड़कों पर निकल आए। इनमें ज्यादा संख्या युवाओं की थी। आधी रात को सड़कों पर जश्न का माहौल हो गया।
देश की हर सफलता पर खुशियां मनाना अच्छी बात है। देश का हर नागरिक दिल से चाहता है कि भारतीय टीम फाइनल भी जीते और वर्ल्ड कप पर कब्जा करे। लेकिन जागरूक नागरिकों का यह भी कर्त्तव्य है कि खेल से होने वाले मनोरंजन में वे इतना न डूब जाएं कि देश और विशेष तौर से नई पीढ़ी से जुड़े महत्त्वपूर्ण विषयों से उसका ध्यान ही हट जाए।

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‘ऐतिहासिक’ चुनाव

इन दिनों पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों को मिनी आम चुनाव भी कहा जा रहा है। ये चुनाव प्रदेशों ही नहीं, पूरे देश के भविष्य से जुड़े हुए हैं। आजादी के 76 साल हो चुके हैं। देश का लोकतंत्र तो धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है लेकिन राजनीति में बहुत सी बुराइयां ऐसी हैं, जो घटने के बजाय बढ़ रही हैं। इनमें अपराधीकरण, जातिवाद, चुनाव में धन-बल का दुरुपयोग, जनप्रतिनिधियों का भ्रष्ट आचरण जैसी बुराइयां शामिल हैं। देश में शिक्षा का स्तर जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसे देखते हुए युवा पीढ़ी से उम्मीद की जा रही है कि राजनीति पर चढ़ी कालिख की इन परतों की धुलाई का काम वह अब अपने हाथों में लेगी। लोकतंत्र का उत्सव कहे जाने वाले चुनावों की गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेगी। लेकिन चुनावों के प्रति उसकी उदासीनता निराशाजनक स्थितियां पैदा कर रही है।
लोकसभा और विधानसभा चुनाव पांच साल में एक बार होते हैं। यही मौका होता है जब देश-प्रदेश के हित-अहित से जुड़े मुद्दों पर सार्वजनिक चर्चाएं होती हैं। प्रत्याशियों का चयन होता है। पार्टियों पर लोकतंत्र की स्वस्थ परम्पराएं अपनाने के लिए दबाव बनाया जा सकता है। भविष्य के लिए अच्छी कार्य योजनाओं को घोषणा-पत्रों में शामिल करवाया जा सकता है। आपराधिक प्रवृत्ति और जाति-धन-बल के आधार पर चुनाव लड़ने वालों पर अंकुश लगाया जा सकता है। कुल मिलाकर भविष्य की धारा मोड़ी जा सकती है। और इस कार्य का बीड़ा देश की युवा शक्ति से बेहतर कोई नहीं उठा सकता।

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चौंकाने वाला आगाज

पिछले दिनों वर्ल्ड कप को देखने वालों की संख्या ने सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए। लाखों लोगों ने स्टेडियमों में मैच देखे तो करोड़ों ने टीवी स्क्रीनों और मोबाइल फोन के माध्यम से। मनोरंजन में कोई बुराई नहीं है और देश की टीम की सफलता पर खुशियां मनाने में भी। युवा पीढ़ी के भविष्य के लिए तो चुनाव ज्यादा अहम हैं। लगता है यह पीढ़ी मनोरंजन और अपने भविष्य के बीच किसे चुनना है, यह प्राथमिकता तय करने के प्रति गंभीर नहीं है। युवाओं से शिकायत यही है कि जितना समय वे क्रिकेट मैच, सिनेमा या मनोरंजन के अन्य साधनों पर खर्च करते हैं, उसका एक-दहाई भी यदि लोकतंत्र को मजबूत बनाने में खर्च करें तो न सिर्फ उनका भविष्य संवरेगा बल्कि देश के विकास की गति कई गुना बढ़ सकती है। साथ ही राजनीति को आपराधिक तत्वों से मुक्त भी किया जा सकता है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं। लोकतंत्र के यज्ञ में आहूति देने का मौका हममें से बहुत से लोग चूक चुके हैं। राजस्थान में चुनाव अभी बाकी है। वर्ल्ड कप भी दो दिन में सम्पन्न हो जाएगा। उसके बाद मतदान तक भले ही थोड़े से दिन बचे हैं, लेकिन युवा पीढ़ी ठान ले तो इतने से दिनों में भी चमत्कार कर सकती है। कम से कम एक यही संकल्प ले लें कि हम वोट देने के लिए समय जरूर निकालेंगे और गलत व्यक्ति का चुनाव नहीं होने देंगे।

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