यह कोई पहला मौका नहीं है, जब पराली जलाने की घटनाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने तल्खी दिखाई हो। सर्दी की शुरुआत पर दिल्ली में बढऩे वाले वायु प्रदूषण में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा जलाई जाने वाली पराली का भी बड़ा योगदान माना जाता रहा है। संबंधित राज्य सरकारें जो प्रयास पराली जलाने की रोकथाम को लेकर करती हैं उनके भी वांछित परिणााम आते नहीं दिखते। हरियाणा में तो पराली जलाने पर अंकुश लगाने में नाकाम चौबीस अफसरों को सरकार ने निलम्बित करने जैसी सख्ती दिखाई है। लेकिन हकीकत में प्रदूषण की रोकथाम के प्रयास कागजों से आगे बढ़ते दिखते ही नहीं। इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार के नुमाइंदों से सवाल किया कि आखिर 1080 एफआइआर के बावजूद मात्र 473 लोगों से ही मामूली जुर्माना वसूल कर शेष को क्यों छोड़ दिया गया? सुप्रीम कोर्ट ने एयर क्वालिटी मैनेजमेंट कमीशन को जुर्माना राशि बढ़ाने की भी नसीहत दी है। चिंता इस बात की है कि हर साल जनता की सांसों पर मंडराने वाले इस संकट का स्थायी समाधान कभी सोचा ही नहीं गया। जब जब अदालतों की तल्खी सामने आती है, दिखावटी कार्रवाई कर खानापूर्ति कर दी जाती है। पराली जलाने की घटनाओं में कमी के सरकारी एजेंसियों के दावों की भी सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए पोल खोल दी है कि आंकड़े इसलिए कम हैं क्योंकि एक्शन नहीं लिया जा रहा।
पराली के निस्तारण के लिए पर्यावरण अनुकूलन के तरीके अपनाने की ज्यादा जरूरत है। इसके लिए किसानों को प्रशिक्षित तो करना ही होगा, उन्हें समुचित संसाधन भी मुहैया कराने होंगे। सुप्रीम कोर्ट खुद कह चुका है कि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहना नागरिकों का मौलिक अधिकार है। इस अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए।