scriptPatrika Opinion : उइगर समुदाय के उत्पीडऩ पर चुप क्यों रहते हैं ईरानी नेता | Patrika OpinionWhy do Iranian leaders remain silent on the oppression of the Uighur community? | Patrika News
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Patrika Opinion : उइगर समुदाय के उत्पीडऩ पर चुप क्यों रहते हैं ईरानी नेता

ईरान के सर्वोच्च नेता भारत विरोधी बयानबाजी से बाज नहीं आ रहे हैं। दुनियाभर के मुसलमानों के बदतर हालात के लिए फिक्रमंद नजर आने वाले ईरानी शासकों की मानवाधिकार के मामलों में ही सबसे ज्यादा आलोचना होती है। सुन्नी मुसलमानों और महिलाओं के खिलाफ ईरान में होने वाले अत्याचार किसी से छिपे नहीं हैं।

जयपुरSep 19, 2024 / 02:03 pm

विकास माथुर

ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने एक विवादास्पद बयान में गाजा और म्यांमार के साथ ही भारत को भी उस सूची में शामिल कर लिया जहां मुसलमान खराब परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। उनके वक्तव्य से भारत और ईरान में एकबारगी अनावश्यक कूटनीतिक तनाव आ गया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने ईरान के सर्वोच्च नेता को आईना दिखाते हुए कहा है कि अनर्गल बयानबाजी करने वाले देशों को पहले अपने गिरेबां में झांक लेना चाहिए।
वैसे भारत और ईरान के रिश्ते पारंपरिक रूप से मधुर रहे हैं लेकिन सर्वोच्च नेता खामेनेई यदाकदा भारत विरोधी बयान देने से नहीं चूकते। खामेनेई ने कई बार भारत विरोधी बयानबाजी की है। दुनियाभर के मुसलमानों के बदतर हालात के लिए फिक्रमंद नजर आने वाले ईरानी शासकों की मानवाधिकार के मामलों में ही सबसे ज्यादा आलोचना होती है। सुन्नी मुसलमानों और महिलाओं के खिलाफ ईरान में होने वाले अत्याचार किसी से छिपे नहीं हैं। वहां अनेक जातीय अल्पसंख्यक जैसे कुर्द, बलूची और अरब लोगों को भी अनेक आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उत्पीडऩों का सामना करना पड़ता है। ईरान की महिलाओं पर तो हिजाब कानून का ऐसा कड़ा पहरा है जिससे वे बाहर निकल ही नहीं पा रही हैं। हिजाब कानून का उल्लंघन करने पर महिलाओं को जेल और यातना झेलनी पड़ रही है।
ईरान में आज महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को लेकर जो बदतर स्थिति है उसकी तुलना अफगानिस्तान में तालिबानी शासन से की जा सकती है। यही नहीं, ईरान में पिछले कुछ समय से फांसी देने का प्रचलन जोर पकड़ता जा रहा है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने ईरान में मृत्युदंड की सजा में जबरदस्त वृद्धि पर चिंता जाहिर की है। भले ही भारत और अमरीका के संबंधों में काफी प्रगाढ़ता आई है, लेकिन भारत निरंतर इस बात के लिए प्रयासरत रहा है कि ईरान के साथ उसके संबंध मधुर बने रहें। यही कारण है कि भारत ने न तो कभी ईरान के आंतरिक मामलों में कोई दखल दिया और न ही उसकी लड़ाकू विदेश नीति की कोई आलोचना की। डॉनल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में तो भारत ने ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह सौदा करने के लिए अमरीकी प्रतिबंधों का जोखिम तक उठा लिया था। विदेश मंत्री जयशंकर ने इस साल जनवरी में ईरान की विशेष यात्रा भी की। इस साल मई में जब तत्कालीन राष्ट्रपति रईसी की विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी तो भारत ने रईसी के लिए एक दिन के राष्ट्रीय शोक की भी घोषणा की।
इस पृष्ठभूमि में चीन के मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों पर ईरान की चुप्पी का उल्लेख आवश्यक है। सर्वोच्च नेता खामेनेई ने आज तक चीन में मुस्लिम-उइगर आबादी के साथ किए जा रहे दुव्र्यवहार के खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोला। ईरानी नेता दावा करते हैं कि उनकी सरकार लेबनान, सीरिया, यमन, फिलिस्तीन और इराक में मुसलमानों की रक्षा के लिये प्रतिबद्ध है, लेकिन यह प्रतिबद्धता चीन की विशाल दीवार से टकराकर दम तोड़ देती है। क्या यह दोहरा मापदंड नहीं है? कई ईरानी विशेषज्ञ भी यह मानते हैं कि उइगर लोगों के साथ ईरान का करीबी सांस्कृतिक और भाषाई संबंध है। चीन की साम्यवादी सरकार उनकी मुस्लिम पहचान को दबाने और इस्लाम पर प्रतिबंध लगाने के लिए हर हथकंडा अपनाती है। ऐसे में खामेनेई को उदासीन रहने के बजाय उइगर मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के लिए चीन के साथ ईरान के प्रगाढ़ संबंधों का उपयोग करना चाहिए। लेकिन, खामेनेई में इतनी हिम्मत नहीं है कि वे चीन के कठोर दमन के खिलाफ अपनी आवाज उठाएं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि अमरीकी प्रतिबंध झेल रहे ईरान को चीन से आर्थिक लाभों की अपेक्षा है, जो उसकी आलोचना से खटाई में पड़ जाएगी।
फिलहाल ईरान, इजरायल-लेबनान संघर्ष में बुरी तरह उलझा हुआ है। परमाणु डील बिखर चुकी है और आर्थिक प्रतिबंधों ने ईरानी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। अमरीका ने ईरान पर रूस को बैलिस्टिक मिसाइल भेजने का आरोप लगाकर और नए प्रतिबंध लगा दिए हैं। इन विषम परिस्थितियों में ईरान के सर्वोच्च नेता को सूझबूझ से काम लेते हुए अपने देश की बेहतरी पर विचार करना चाहिए और भारत जैसे मित्र देश के खिलाफ अनर्गल बयानबाजी से बचना चाहिए।
— विनय कौडा

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