आम तौर पर देखा गया है कि इन राज्यों में पर्यटन को बढ़ावा देेने के नाम पर ऐसी बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो गईं जो न सिर्फ बाढ़ और भूस्खलन झेलने में अक्षम साबित हुईं, बल्कि पर्यावरण के हिसाब से भी नुकसानदेह रही हैं।
पहले उत्तराखंड और अब हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश व भूस्खलन से जान-माल की तबाही चिंतित करने वाली है। पहाड़ों में यह पहली बार नहीं है कि इतनी तबाही हुई है। इससे पहले भी देश के पहाड़ी राज्यों में ऐसी तबाही होती रही है। इनमें न सिर्फ बड़ी संख्या में लोगों को जान गंवानी पड़ रही है, बल्कि निजी और सरकारी संपत्तियों को भी बड़ा नुकसान होता जा रहा है। ऐसे हालात में सवाल यही उठता है कि बार-बार की आपदाओं के कारण हो रही तबाही को न्यूनतम करने की दिशा में कदम उठाने के लिए हमने सबक क्या लिया?
कुछ दशकों में खासकर हिमालयी क्षेत्र के राज्यों में विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन हुआ है। इतना ही नहीं, प्रकृति से खिलवाड़ कर नियमों के खिलाफ ऐसा निर्माण खड़ा किया जा रहा है, जो बाढ़ और भूस्खलन के साथ बर्बादी लेकर आया है। सवाल यह भी है कि पहाड़ी राज्यों में विकास का क्या पैमाना होना चाहिए? अगर विकास के नाम पर कहीं निर्माण गतिविधियां आवश्यक हों तो वह नियोजन के साथ ही आपदाओं को झेलने में सक्षम होनी चाहिए। आम तौर पर देखा गया है कि इन राज्यों में पर्यटन को बढ़ावा देेने के नाम पर ऐसी बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो गईं जो न सिर्फ बाढ़ और भूस्खलन झेलने में अक्षम साबित हुईं, बल्कि पर्यावरण के हिसाब से भी नुकसानदेह रही हैं। ऐसे निर्माण में सरकारी स्तर पर सतर्कता की जो उम्मीद की जाती है, उसे नजरअंदाज किया गया। पहाड़ी राज्यों में अंधाधुंध निर्माण गतिविधियों को थामने के लिए प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर विकास करने की जरूरत है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पिछले सालों में जिस तरह निर्माण गतिविधियां हुई हैं, उनमें प्रकृति के साथ तालमेल को नजरअंदाज किया गया है। यही वजह है, दोनों पहाड़ी राज्यों में भारी बारिश में बड़ी तबाही हुई है। पहाड़ी राज्यों के लोगों को भविष्य में अंधाधुंध विकास की दौड़ से बचने के लिए तैयार रहना होगा। प्रकृति हमें आपदाओं के साथ यही संकेत दे रही है। हिमाचल और उत्तराखंड में भारी बारिश से बर्बादी यही संदेश देती है कि विभिन्न स्तरों पर और निरंतर बहुत कुछ करने की जरूरत है।
प्रकृति ने पहाड़ी राज्यों को ऐसा काफी कुछ दिया है, जिस पर वहां के लोग खुद पर गर्व कर सकते हैं। जिम्मेदारी सरकार और वहां के लोगों की है कि वे इसकी मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखें। हर कोई जीवन में सुख-समृद्धि हासिल करना चाहता है। लेकिन जरूरत इस बात की भी है कि पहाड़ों के प्राकृतिक स्वरूप से अधिक छेड़छाड़ किए बिना संतुलित विकास हो।