फर्स्ट डे फर्स्ट शो-पार्ट 1 मुझे यह बात हैरान करती है कि रणथंभौर जाने वाले ज्यादातर लोगों का उद्देश्य बाघ दर्शन होता है और ऐसे लोगों की आंखें उस जंगल की ख़ूबसूरती को क्यों नहीं देखतीं। बाघ दिखा तो यात्रा सफल, नहीं तो बेकार? रणथंभौर में बाघों की संख्या कुछ सालों में अच्छी-खासी बढ़ी है तो वहां के पर्यटन की मुसीबतें भी बहुत हैं। लगता है वन विभाग और पर्यटन विभाग कभी आपस में बात ही नहीं करते।
तृप्ति पांडेय
पर्यटन और संस्कृति विशेषज्ञ
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मानसून के दौरान बंद रहने वाला रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान फिर से 1 अक्टूबर को खोला गया। जैसा मैंने इस साल तय किया था कि उद्यान के बंद होने के दिन यानी 30 जून और फिर से खोले जाने के दिन मैं उद्यान में मौजूद रहूंगी और हर गतिविधि और वन्यजीवों पर इनके असर को महसूस करूंगी, ठीक वैसा ही हुआ। रणथंभौर का जंगल मुझे बहुत भाता है फिर जो भी पक्षी और जानवर दिख जाएं, वह अनुभव मेरी यात्रा को हर बार अलग बना देता है। मुझे यह बात हैरान करती है कि रणथंभौर जाने वाले ज्यादातर लोगों का उद्देश्य बाघ दर्शन होता है और ऐसे लोगों की आंखें उस जंगल की ख़ूबसूरती को क्यों नहीं देखतीं। बाघ दिखा तो यात्रा सफल, नहीं तो बेकार?
रणथंभौर के 30 जून को बंद होने वाले दिन सब यही कह रहे थे कि अब बस प्रार्थना करो सीजन यानी पर्यटकों के आने वाले समय में विदेशी मेहमान भी आने लगें। सवाई माधोपुर और रणथंभौर पर पर्यटन का असर वहां पहुंचते ही दिखाई देने लगता है। जगह-जगह सफारी की जिप्सी और कैंटर सडक़ों पर खड़े नजर आते हैं तो छोटे-बड़े होटल, रेस्त्रां, कैफे और सफारी बुकिंग के कार्यालय। यह नजारा बाघ देखने की चाहत रखने वालों की पहली पसंद रणथंभौर की पहचान भी है। यहां तक पहुंचने के लिए रणथंभौर ने लम्बा सफर तय किया है। मुझे याद आता है वह नाम जिसने इस सफर की शुरुआत की द्ग कैलाश सांखला। उन्होंने प्रॉजेक्ट टाइगर शुरू किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे हरी झंडी दिखाई थी। कई साल बाद सांखला जी ने अपनी किताब में एक खास बात लिखी जो इन राष्ट्रीय उद्यानों और पर्यटन के बीच लुका-छिपी का खेल खेलने वालों को याद रखनी चाहिए। उन्होंने बताया था कि जंगलों के जिन हिस्सों में पर्यटक जाते हैं वहां के जीवों की बेहतर सुरक्षा होती है क्योंकि कई आंखें नजर रखती हैं। मैंने उस पुस्तक की समीक्षा लिखी थी। उन्होंने मुझे फोन कर कहा भी था, ‘यह मेरी पुस्तक की सबसे बढिय़ा समीक्षा है।’
रणथंभौर में बाघों की संख्या कुछ सालों में 11 से 70-80 हुई है तो वहां के पर्यटन की मुसीबतें भी बहुत हैं। लगता है वन विभाग और पर्यटन विभाग कभी आपस में बात ही नहीं करते। ‘फर्स्ट डे फर्स्ट शो’ की शुरुआत का उत्साह प्रवेश द्वार पर जोर-शोर से दिख रहा था। पर्यटकों का स्वागत करने के लिए माला और थाली सजाकर वहां कार्यरत महिलाओं के मुस्कराते चेहरे दिल को छू गए। सुरक्षा व्यवस्था में महिलाएं भी शामिल हैं और सब में पर्यटकों को देख कर उत्साह था। एक ने तो अपने मोबाइल से मेरे साथ फोटो भी खिंचवाई। वहां के जिलाधीश ने झंडी दिखाई और सफारी शुरू हो गई। इसे अपना सौभाग्य ही कहूंगी कि पहले दिन पहली सफारी में मुझे बाघिन नूरी की छोटी बेटी बरगद के पेड़ के नीचे बैठी दिखी। 30 जून को मैंने टी120 को कुत्ते को मारते हुए देखा था।
सफारी की शुरुआत के साथ पर्यटन की मुसीबतों की चर्चा भी शुरू हो गई। अचानक शुरू की गई बुकिंग की नई व्यवस्था का एजेंट विरोध कर रहे थे तो अचानक आधे और पूरे दिन की सफारी के बंद हो जाने पर पहले से बिके टिकटों के रिफंड को लेकर सब परेशान थे। कोविड के चलते पर्यटन ठप होने पर सामने आईं आर्थिक परेशानियों के बाद ऐसे फैसले लेने के लिए देखा जाना चाहिए कि समय उपयुक्त है या नहीं। पर्यटन क्षेत्र में इसका बड़ा महत्त्व है। उद्यान जब बंद था तब द्वार की व्यवस्था सुधारी जाती तो अच्छा होता। टोपी-जैकेट विक्रेताओं के पर्यटकों को घेर लेने की समस्या तो है ही, राजनेताओं के बड़े-बड़े बिलबोर्ड जैसे यहां हैं, वैसा कुछ तो मैंने विश्व प्रसिद्ध मसाईमारा की हाल की यात्रा में भी नहीं देखा। ये बिलबोर्ड हटाने का काम वैसा ही है जैसा बाघ के गले में रस्सी बांधने का। क्या ही अच्छा हो यदि मुख्यमंत्री स्वयं ये बिलबोर्ड हटाने का सुझाव दें!