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सनातन धर्म सार्वकालिक, लेकिन परिवर्तन से परहेज नहीं

सनातन धर्म में जब कोई विकृति आई तो महापुरुषों ने उसे सुधारा। यही सनातन धर्म की चिरंजीविता का रहस्य है। हमें उन विकृतियों पर बल न देकर उन समाज सुधारकों के प्रयत्न को रेखांकित करना चाहिए। इस तरह के प्रयत्न पूरे भारत में हुए।

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Gyan Chand Patni

Sep 27, 2023

सनातन धर्म सार्वकालिक, लेकिन परिवर्तन से परहेज नहीं

सनातन धर्म सार्वकालिक, लेकिन परिवर्तन से परहेज नहीं

दयानन्द भार्गव

राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त संस्कृतज्ञ, एवं वेद विज्ञानवेत्ता

इन दिनों सनातन धर्म शब्द चर्चा में है। प्रथम धर्म शब्द को लें तो यह अनेक बार कहा जा चुका है कि धर्म शब्द का अनुवाद 'रिलिजन' या मजहब नहीं है। वस्तुत: धर्म शब्द का अनुवाद किसी दूसरी भाषा में करना कठिन है। इसलिए अनेक भारतीय और विदेशी लेखक भी अंग्रेजी में लिखते समय भी धर्म शब्द को रोमन लिपि में ज्यों का त्यों लिख देते हैं, किन्तु इसका अनुवाद नहीं करते। भारतीय संविधान में जब अंग्रेजी के सेक्युलर शब्द के हिन्दी अनुवाद का प्रश्न आया तो इस शब्द का धर्मनिरपेक्ष अनुवाद न करके पंथनिरपेक्ष अनुवाद किया गया। यद्यपि बहुत से लोग बोल-चाल में धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग करते हैं किन्तु संविधान का अनुवाद करने वालों को इस बात अहसास था कि धर्म तो वस्तु का स्वभाव है और कोई भी वस्तु स्वभावनिरपेक्ष नहीं हो सकती, वह स्वभावसापेक्ष ही होगी। इसलिए सेक्युलर शब्द का राज्यसम्मत प्रामाणिक अनुवाद पंथनिरपेक्ष है, धर्मनिरपेक्ष नहीं।

धर्म और नैतिक मूल्य: यह धर्म शब्द के एक पक्ष की बात हुई। किन्तु जब दैनिक जीवन में धर्म शब्द की व्याख्या का प्रश्न आया तो मनु का वह श्लोक उल्लेखनीय है जिसमें कहा गया है कि अहिंसा, सत्य, अस्तेय, पवित्रता और इन्द्रियसंयम धर्म के वे नैतिक मूल्य हैं जिनका पालन सभी को करना चाहिए। अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:। एतं सामासिकं धर्मं चातुर्वण्र्येब्रवीन्मनु:।। धर्म और समाज: इस श्लोक की प्रथम पंक्ति में जिन पांच धर्म के तत्त्वों का उल्लेख हैं, स्पष्ट हैं कि कोई भी सभ्य समाज उन तत्त्वों की उपेक्षा नहीं करना चाहेगा। इस प्रकार वस्तुस्वभाव के रूप में तथा अहिंसा आदि नैतिक मूल्यों के रूप में धर्म निर्विवाद रूप से सभी के लिए ग्रहण करने योग्य है। इतना ही नहीं, ये नैतिक मूल्य सार्वकालिक हैं। इसलिए इनको जब धर्म शब्द से कहा जाता है तो वह धर्म सनातन कहलाता है।

सनातन का इतना अभिप्राय है कि वह किसी भी समाज की स्थिरता के लिए आवश्यक है, वह समाज की धारणा-शक्ति है-धारणाद्धर्ममित्याहु: धर्मो धारयते प्रजा:। ऐसी स्थिति में जिसे सनातन धर्म कहा जा रहा है वह विवाद का विषय है ही नहीं। वस्तुत: सनातन धर्म शब्द का प्रयोग सबसे अधिक भगवान बुद्ध ने किया। उन्होंने कहा कि शत्रुता से शत्रुता शांत नहीं होती, मैत्री से शत्रुता शांत होती है, यह सनातन धर्म है-'एस धम्मो सनन्तनो'(धम्मपद, गाथा-5)। इस सारे विवरण पर ध्यान दें तो जिसे सनातन धर्म कहा जा रहा है, वह सार्वभौम और सार्वकालिक हैं। धर्म का क्षेत्र: व्यवहार में सनातन धर्म शब्द का प्रयोग उन पंथों के लिए होता है जिन पंथों का जन्म भारत में हुआ। भारत में पैदा होने वाले वे सभी पंथ ऊपर दी गई व्याख्या वाले सनातन धर्म को स्वीकार करते हैं। इसलिए एक प्रकार से सार्वभौमिक होते हुए भी सनातन धर्म शब्द का प्रयोग उन सभी धार्मिक मान्यताओं के लिए होने लगा जिनका जन्म भारत में हुआ। भगवान बुद्ध ने भी अपने धर्म को सनातन धर्म कहा है और उनका धर्म भारत से भी बाहर बहुत पहले से ही फैला हुआ है। यह कहना भी उचित नहीं होगा कि सनातन धर्म केवल भारत तक सीमित है। धर्म की युगानुरूपता: सनातन धर्म को इसलिए सनातन कहा जाता है कि यह अनादि है। किन्त इसका यह अर्थ नहीं है कि यह स्थिर या कूटस्थ है। यह समय के अनुसार बदलता रहा है और ऐसे परिवर्तन के लिए इसी धर्म में अनुमति भी दी गई है कहा गया है- अन्ये कलियुगे धर्मास्त्रेतायां द्वापरेऽपरे। अन्ये कलियुगे नृृृणां युगघासानुरूपत:।। अर्थात् प्रत्येक युग का अलग धर्म होता है। इसलिए जब हमने ऊपर सनातन धर्म की व्याख्या करते समय उसकी सार्वकालिकता बताई तो यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि उसमें समय के साथ परिवर्तन भी होते रहें। सनातन धर्म के सम्बन्ध में जो कुछ कहा है, उसे मूल ग्रन्थों के आधार पर कहा है। कोई भी व्यक्ति तटस्थ भाव से उसे देखेगा तो सनातन धर्म के सम्बन्ध में सही दृष्टि अपना सकेगा, ऐसी आशा है। सार्वजनिक जीवन में सही दृष्टि न होने पर राष्ट्र की हानि होने की संभावना रहती है। सनातन धर्म में जब कोई विकृति आई तो महापुरुषों ने उसे सुधारा। यही सनातन धर्म की चिरंजीविता का रहस्य है। हमें उन विकृतियों पर बल न देकर उन समाज सुधारकों के प्रयत्न को रेखांकित करना चाहिए। इस सम्बन्ध में यह भी ध्यातव्य है कि समाज सुधार के ये प्रयत्न भारत के प्रत्येक प्रदेश में हुए हैं, न कि केवल किसी एक प्रदेश में।