scriptआत्म-दर्शन: दैवीय शक्ति | Self Realization: Divine power | Patrika News
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आत्म-दर्शन: दैवीय शक्ति

अगर आपकी शारीरिक व्यवस्था 100 प्रतिशत चेतन हो जाए, जागरूक हो जाए, तो आप का शरीर दिव्य हो जाएगा।
अगर एक पत्थर को एक दैवीय शक्ति बनाया जा सकता है, तो जीवित मांस के पुतले को एक दैवीय शक्ति क्यों नहीं बनाया जा सकता?

Jan 20, 2021 / 08:28 am

Mahendra Yadav

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सद्गुरु जग्गी वासुदेव
(ईशा फाउंडेशन के संस्थापक)

योग के अनुसार यह शरीर भी दिव्य हो सकता है। शिव के बारे में एक बात यह भी है कि वे अंगराज हैं। अंगराज का अर्थ है, ‘अंगों के राजा’। शिव अंगों के राजा हैं, क्योंकि उनका अपने सभी अंगों पर पूर्ण नियंत्रण है और इसीलिए उनका सम्पूर्ण शरीर ही दिव्य हो गया है। अगर आपकी शारीरिक व्यवस्था 100 प्रतिशत चेतन हो जाए, जागरूक हो जाए, तो आप का शरीर दिव्य हो जाएगा। अगर भौतिक शरीर भी पूरी तरह सचेतन बन जाए, तो ये दिव्य शरीर होगा। यही वह बात है, जिसके कारण हम शिव को अंगराज कहते हैं। ये अंग मांस के एक चेतनाहीन पिंड के रूप में भी हो सकते हैं अथवा ये इतने चेतन, इतने जागरूक हो सकते हैं कि सम्पूर्ण शरीर ही दिव्य हो जाता है।
ये वैसा ही है जैसे कि मांस के एक पिंड को एक देवता के रूप में रूपांतरित कर दिया जाए। ये वही विज्ञान है, जिसके द्वारा देवता बनाए जाते हैं। एक विशेष यंत्र अथवा आकार बना कर और उसमें एक विशेष प्रकार की ऊर्जा डाल कर, किसी पत्थर को भी एक दिव्य शक्ति बनाया जा सकता है। अगर एक पत्थर को एक दैवीय शक्ति बनाया जा सकता है, तो जीवित मांस के पुतले को एक दैवीय शक्ति क्यों नहीं बनाया जा सकता? ये अवश्य ही किया जा सकता है।

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