
पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत की प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी। जवाब में पाकिस्तान ने जो हरकत की उसका भारतीय सेना ने ऐसा मुंहतोड़ जवाब दिया कि युद्ध विराम की गुहार करनी पड़ी। पिछले दिनों भारत-पाक तनाव के बीच सेना ने तो अपना पराक्रम दिखाया ही हम सब भारतीयों ने भी एकजुट होकर देशप्रेम , अखण्डता व राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने वाले जो काम किए उसको भी दुनिया ने देखा है। 54 बरस पहले वर्ष 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीयों के ऐसे ही हौसलों को लेकर श्रद्धेय कुलिश जी के अग्रलेख के अंश:
विदेशी पत्रकारों को हैरत हुई जब देखा कि युद्ध के बादलों की छाया में नई दिल्ली में देश की प्रधानमंत्री पांच लाख लोगों की विशाल सभा में भाषण कर रही हैं। उन्हें एक बारगी विश्वास नहीं हुआ कि भारत अपने पड़ोसी देश के साथ लड़ाई में जूझ रहा है और नई दिल्ली, पाकिस्तानी बमबाजों की उड़ान के भीतर ही है। पांच लाख की आमसभा और वह भी पूरे अनुशासन के साथ। उन्हें अचम्भा नहीं होता यदि वे जरा भी कष्ट करते इस देश के इतिहास पर एक नजर डालने की। हजारों वर्षों से अनेक आघात और आक्रमण झेलकर, सदियों गुलाम रहकर भी आज वह अपनी समाज व्यवस्था और मूल-जीवनधारा को अखण्ड बनाए हुए है। यूनान, मिस्र, लेबनान, चीन आदि बड़ी-बड़ी सभ्यताएं और समाज व्यवस्थाएं लगभग समाप्त हो गईं या बदल गई हैं। वे कालकलवित हो गई हैं परन्तु भारतीय संस्कृति, आत्मा और भारतीय समाज व्यवस्था विद्यमान है। तभी तो हमारी आधुनिकतम विचारों वाली प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने कल की ही सभा में बड़े गर्व से कहा है- हमारे पास भारत की आत्मा है। विदेशी पत्रकार जरा मनन करें कि देशवासियों की प्रियदर्शिनी ने यह बात किस बूते पर कही। उन्हें जवाब मिल जाएगा जो प्रधानमंत्री के ही शब्दों में निहित है: भारत की आत्मा। इस आत्मा की महत्ता इस देश के राजा से लेकर रंक तक को मालूम है। बम बरस रहे हैं, हवाईजहाज गिर रहे हैं। टैंक टूट रहे हैं और सीमांत पर घमासान लड़ाई हो रही है। हम रोज अखबारों में इस तरह की खबरें पढ़ते हैं और छापते हैं। लेकिन क्या कहने हिन्दुस्तानियों के हौसले के! किसी के चेहरे पर शिकन तक नहीं, मन में मामूली घबराहट नहीं और क्या कहना व्यवस्था के कि रोजमर्रा के कारोबार में रत्ती भी हेर-फेर नहीं। किसी तरह का शिकवा-शिकायत नहीं और कोई चीज की कमी नहीं। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री चेतावनियां दे रहे हैं कि जनता को किसी तरह की कठिनाई नहीं हो, किसी चीज की कमी नहीं हो और रोजमर्रा की जिंदगी चलती रहे। विदेशी पत्रकारों ने जो अनुशासन रामलीला मैदान में देखा, जीवन के एक खास दृष्टिकोण का परिचायक है। वे गौर से देखेंगे तो भारत के जीवन के अचम्भे ही अचम्भे नजर आएंगे।
(14 दिसम्बर 1971 के अंक में ‘हमारे पास भारत की आत्मा है ’अग्रलेख से)
सीमांत का आखिरी बिन्दु
गंगानगर जिला मुख्यालय छोडऩे से पहले हिन्दूमल कोट पर भारत-पाक सीमांत भी देखा। ठेठ सीमा रेखा तक खेतों में पानी दिया हुआ था। खेत में बैल खड़े देखे। अब तक इस तरफ खेतों में ऊंट ही ऊंट दिखाई दिए थे। सीमा पर तैनात जवानों से भी बात की। १९६५ के भारत-पाक संघर्ष के समय यहां दुश्मनों का वार हुआ था। तब भी यहां आया था। अब बहुत-कुछ परिवर्तन हो गया है। इलाका सरसब्ज है। गंगनहर की लक्ष्मीनारायण शाखा का पानी आता है। इस शाखा का क्यू हैड सीमा-रेखा पर है। हैड ही सीमांत का आखिरी बिन्दु है। (कुलिश जी के यात्रा वृतांत पर आधारित पुस्तक ‘मैं देखता चला गया’से)
हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक संरचना ही ऐसी
ह म सभी अपने रीति-रिवाज और धार्मिक कार्यकलाप सहज रूप से चलाते हैं और एक-दूसरे के प्रति पूरा आदरभाव रखते हैं। यह भाव पूरे देश के लोगों में व्याप्त है। मुझे तो राष्ट्रीयता के मामले में भी अधिक चिंता नहीं है। राजनीतिक विकृतियों के कारण अवश्य ही मुसलमान बहुधा मुख्यधारा से अलग-थलग दिखाई देता है। इस्लाम का विश्व इस्लामवाद भी यहां एक वर्ग पर ही अपना असर दिखाता है। इस्लाम में राष्ट्रवाद जैसी कोई सीमा नहीं मानी जाती, परन्तु इस सिद्धांतवाद का प्रभाव मुसलमानों के एक वर्ग तक ही सीमित है। हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक रचना ही कुछ ऐसी है। वह ऊपरी आघातों या सीमित प्रहारों को सहन कर सकती है। वह भौगोलिक सीमाओं को पार करके भी जीवित रह सकती है। हिन्दु-मुस्लिम विवाद को लेकर इस देश पर जो संकट आता है वह राजनीतिक है, मजहबी हरगिज नहीं।
(कुलिश जी के आलेखों पर आधारित पुस्तक ‘दृष्टिकोण’से)
Published on:
22 May 2025 01:42 pm
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