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हिंद-सिंध प्रेम की साझी विरासत ‘अजरख’ के संरक्षण की जरूरत

एक अजरख को तैयार करने में 23 चरणों से गुजरना पड़ता था, अब 8-14 चरण में पूरा कर देते हैं। अब दो सप्ताह में कार्य को अंजाम दे देते हैं। अजरख का प्राकृतिक रंगों से दूर होते जाने से एक विशुद्ध प्रेम कला विलुप्त हो रही है।

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जयपुर

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Opinion Desk

Dec 30, 2025

-डॉ. भुवनेश जैन, पूर्व निदेशक मेरा युवा भारत, युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय

पाकिस्तान का सिंध क्षेत्र सदियों से भारत का अटूट हिस्सा रहा है। राजनीतिक लकीरें भले ही खींच ली गई हैं, लेकिन सांस्कृतिक रूप से आज भी एक है। सिंध और इस क्षेत्र में बहने वाली सिंधु नदी के तट पर ही विश्व की महान सभ्यता और संस्कृति ने जन्म लिया। इसी के हिस्से के रूप में प्रेम और मानवीयता के लिए अपनी जान कुर्बान कर महान अमर प्रेम कथाओं से इतिहास भी रोमांचित है। अनेक सदियां बीत जाने के बाद भी प्रेम मोहब्बत से भीगी कथाओं की अनुगूंज आज भी लोक संगीत और साहित्य में सुनाई पड़ती है। हर व्यक्ति सुनकर, पढ़कर भाव विभोर हो जाता है।

इन प्रेम कथाओं में सोहनी-महिवाल, सस्सुई-पुन्नु, मूमल-राणो, नूरी-जाम तमाची, उमर-मारवी, लीला-चनेसर, कंवल-केहर आदि प्रमुख रूप से हैं। प्रेम और मोहब्बत की निशानी के रूप में यहां अजरख हस्तशिल्प कला का जन्म हुआ। पांच हजार वर्ष पुरानी यह कला कलाकार के ख्वाबों को पंख देती, प्रकृति से जोड़ती, सूफी अंदाज में प्रेम को बढ़ाती नजर आती है। अनोखे डिजाइन, रंग, पैटर्न सिंध हिंद की पहचान और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। अजरख प्रिंट में पक्षी, फूल- प्रेम दूत के रूप में और पेड़ प्रेम की मजबूती और स्थायित्व को बताते हैं, ज्यामितीय डिजाइन प्रेम की गहराई, सरलता के साथ जटिलता, सूफी दर्शन की ध्वनियों को प्रतिध्वनित करता है। समरूपता की अवधारणा का उपयोग करने वाले ज्यामितीय पैटर्न ब्रह्मांडीय प्रक्रिया के प्रतीक हैं जो सभी दिशाओं में फैली है। स्वर्ण आभूषणों जैसे रंग, प्रेम को प्रकट करते गहरे लाल रंग जिसे अलीजर कहते हैं, शांति और स्थिरता देते गहरे नीले और सफेद रंग, काला रंग जिसे काट कहते हैं, यह प्रतिबद्धता को प्रकट कर अजरख को अलग ही पहचान देता है। हरा और हीराकस्सी रंग की अपनी अलग ही खूबसूरती है। पीला रंग आशा और पवित्रता का प्रतीक है। ये छह रंग अजरख की पहचान हैं। प्राकृतिक वनस्पति और लवण का उपयोग रंग तैयार करने में करते हैं।

परम्परागत डिजाइन में गेनी, खारक, लोंग, हांसा, ढीबरी, तारा, फूलडी, चेतन चौकड़ी, कटार प्रमुख रूप से हैं। प्रिंट के लिए इस्तेमाल किए जा रहे ब्लॉक शीशम की लकड़ी से तैयार होते हैं जिसे भांत कहते है, भांत को बनाने वाले भांतकड़ा कहलाते हैं। गुजरात में कच्छ के धामडका, अजरकपुर और डीसा, राजस्थान में बाड़मेर, बालोतरा सिंध पाकिस्तान में खैरपुर, डेरकी, दावावाडा, खानपुर, हाला, मिठयाडी, पिथौरा, अमर कोट, धोरा नारा, दूंद आलिया, दूंद आदम, सैयद का गांव, सांगड मलीर, मीठी, खांडीयारी, मोलारिया, नबीसर, मीरपुर खास, थट्टा, हाबीलो, बधार, भिट शाह अजरख कला के घर हैं। अजरख को अरबी शब्द बताया जाता है जिसका अर्थ नीला है। संस्कृत में इसी शब्द को फीका न पडऩे वाला रंग बताते हैं। विशुद्ध अजरख हस्तशिल्प प्रिंट कपड़े के दोनों तरफ किया जाता है जिसे बेपुरी भी कहते हैं। जितना धोया जाएगा रंग निखरते जाएंगे। सच्चे प्रेम की तरह फीका नहीं पड़ता। सिंध इंडिगो और कॉटन का निर्यातक क्षेत्र रहा है, इसलिए भी इस कला को संबल मिला। कॉटन के साथ सिल्क कपड़े पर भी काम होता है। हिंगलाज माता को अजरख सृजन और संरक्षण की देवी माना जाता है। ग्रीक मायथोलॉजी में हेरा-एथेना को हस्तशिल्प के संरक्षक की देवी मानते हैं। हिंगलाज माता को सुमेरियन देवी से जोड़कर देखा जाता है। हिंगलाज माता का मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान के लासबेला जिले में स्थित है। यह देवी राजपूत, चारण, खत्री एवं अन्य समुदाय की कुलदेवी भी है। मुस्लिम नानी बाई या लाल चोगे वाली मां कहते हैं। अजरख तैयार करने में पहले छह महीने लगते थे। एक अजरख को तैयार करने में 23 चरणों से गुजरना पड़ता था, अब 8-14 चरण में पूरा कर देते हैं। अब दो सप्ताह में कार्य को अंजाम दे देते हैं। अजरख का प्राकृतिक रंगों से दूर होते जाने से एक विशुद्ध प्रेम कला विलुप्त हो रही है।

सरकार, गैर सरकारी संस्थाओं, शिल्प कार्य कर रहे संस्थानों को मिलकर विशुद्ध अजरख के प्रति जनचेतना लाने व शिक्षित करने की जरूरत है, वहीं शिल्पकारों को प्रोत्साहित करने, नए शिल्पकार तैयार करने, आधारभूत सुविधा संवर्धन और विश्व के कला प्रेमी समुदाय से जोडऩे के लिए ठोस और लगातार कार्य की जरूरत है। हिंद सिंध के प्रेम की विरासत अजरख संकट में है लेकिन जन चेतना, कला जगत और सरकारें सक्रिय रहे तो विशुद्ध अजरख का रंग अपने स्वभाव के अनुसार कभी फीका नहीं पड़ेगा। वह मारवाड़, कच्छ और सिंध के लोगों को भावनात्मक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक रूप से जोड़कर रखेगा।