हालांकि टीके के सामान्य प्रोटोकॉल में यह शामिल है कि जितने लोगों को पहली खुराक मिलगी, उन्हें चार से छह सप्ताह के बीच दूसरी खुराक लेनी होगी। ऐसे में उम्मीद यही है कि दूसरी खुराक की व्यवस्था सरकार ने कर ली होगी। लेकिन हर तरह की व्यवस्थाएं जिस तरह चरमरा रही हैं, उन्हें देखते हुए कई तरह की आशंकाएं जन्म ले रही हैं। पिछले दिनों हमने देखा कि केंद्र ने नई नीति बनाकर टीकाकरण अभियान में आगे की जिम्मेदारी राज्यों पर डाल दी है। अब राज्य सरकारें टीके की उपलब्धता को लेकर लाचार नजर आ रही हैं, वे धन की कमी से भी परेशान हैं।
टीके की कीमत को लेकर भी कई तरह के असमंजस हैं। एक ही टीके के तीन दाम ने सुप्रीम कोर्ट तक को हैरत में डाल दिया है। अदालतों में इसे चुनौती दी गई है। सुनवाई चल रही है। विदेशी टीके के आयात को मंजूरी मिल जाने से राहत की बात सिर्फ इतनी है कि कुछ ही दिनों में स्पूतनिक-वी सहित कई विदेशी टीके उपलब्ध होंगे। तब हो सकता है दिक्कतें कुछ कम हो जाएं। लेकिन सारा दारोमदार इस बात पर निर्भर है कि राज्य सरकारें इस अभियान में आगे का कैसा प्रबंध कर पाती हैं। प्रबंधन की गड़बड़ी कहीं सारे किए-कराए पर पानी न फेर दे। यदि समय पर लोगों को टीके की दूसरी खुराक नहीं दी गई तो पहली खुराक का असर भी बेकार चला जाएगा।
देश में संक्रमण दर खतरनाक तरीके से बढ़ रही है। इसे देखते हुए हर जगह पुख्ता व्यवस्था की दरकार है। व्यवस्था की नाकामी का ठीकरा भले ही किसी पर फूटे, असर आम जनता पर ही पड़ेगा। मौतों का आंकड़ा दो लाख पार हो चुका है और प्रतिदिन करीब चार लाख नए केस दर्ज हो रहे हैं। इस सिलसिले को रोकने का अब एक ही तरीका है – टीका। इसलिए हमें पूरी ताकत से टीकाकरण अभियान को सफल बनाने में जुट जाना चाहिए। जितनी तेजी से यह सफल होगा, उतनी तेजी से हम सुरक्षित होंगे।