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Patrika Opinion: कूनो में मरते चीतों के लिए चिंता का समय

पिछले साल फरवरी में दक्षिण अफ्रीकी देशों से पहले 12 चीते लाए गए थे। उसके बाद आठ और चीते कूनो में बसाए गए। कुल 20 चीतों में से तीन की असामान्य परिस्थितियों में मौत हो चुकी है।

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Patrika Desk

May 25, 2023

Patrika Opinion: कूनो में मरते चीतों के लिए चिंता का समय

Patrika Opinion: कूनो में मरते चीतों के लिए चिंता का समय

मध्यप्रदेश के कूनो अभयारण्य से फिर दो शावक चीतों की मौत की दुखद सूचना चिंतित करने वाली है। इसलिए भी कि करीब 75 साल के बाद भारत चीतों से गुलजार हुआ है और हम उम्मीद कर रहे हैं कि देश से लुप्त हो चुके चीतों के लिए अनुकूल माहौल बनाने में हम एक बार फिर सफल होंगे। इस उम्मीद को तब और पंख लग गए थे जब मादा चीता ज्वाला ने पिछले 24 मार्च को कूनो में चार शावकों को जन्म दिया। पर अब एक के बाद एक उसके तीन शावकों की मौत हो चुकी है और चौथे की भी हालत ठीक नहीं है। उसे निगरानी में रखा गया है।

हालांकि विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि शावक चीतों की मृत्युदर कैट फैमिली (बिल्ली जैसी प्रजातियों) में सबसे ज्यादा होती है, इसलिए कूनो में शावकों की मौत को असामान्य नहीं माना जाना चाहिए। पर यह भी सच है कि वर्तमान युग में वैज्ञानिक तौर-तरीकों से देखभाल करते हुए जीवन-प्रत्याशा बढ़ाने में हम सफल होते रहे हैं। जितनी धूमधाम से हमने चीतों का स्वागत किया था, उन्हें यों गर्मी की वजह से मरते नहीं देख सकते। पिछले साल फरवरी में दक्षिण अफ्रीकी देशों से पहले 12 चीते लाए गए थे। उसके बाद आठ और चीते कूनो में बसाए गए। कुल 20 चीतों में से तीन की असामान्य परिस्थितियों में मौत हो चुकी है। किडनी फेल होने के कारण एक नामीबियाई चीते साशा की मौत 27 मार्च को हुई थी। उसके बाद दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीते उदय की मौत 13 अप्रेल को हुई। यौन संबंध बनाने के दौरान घायल होने की वजह से पिछली 9 मई को दक्षा नाम के मादा चीते की भी मौत हो गई। यानी अब कूनो से दुखद खबरें ही लगातार आ रहीं हैं। यदि तुरंत इस पर गंभीरता से मंथन नहीं किया गया और माहौल को नए मेहमानों के अनुकूल बनाने के प्रयास युद्धस्तर पर नहीं हुए तो डर है कि कहीं हम फिर 75 साल पहले वाली अवस्था में न पहुंच जाएं।

हालांकि, यह भी सच है कि प्रकृति का न्याय क्रूर और तर्कसंगत होता है। खासकर जंगल में रहने वाले प्राणियों में वे ही जिंदा रह पाते हैं जो ज्यादा स्वस्थ और मजबूत हों। प्राणियों के भविष्य के लिए उनकी जीन शृंखला में कमजोर नस्ल को प्रकृति इसी तरह बाहर करती रहती है। प्रकृति की क्रूरता को समझने वाले वैज्ञानिकों को भले ही चीतों की मौत सामान्य घटना लगती हो, लेकिन हम इससे संतुष्ट नहीं हो सकते। सरकार को चाहिए जल्द से जल्द दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के विशेषज्ञों के साथ चर्चा करे और वह हरसंभव उपाय करे जो देश में चीतों की संख्या बढ़ाने में सहायक हो।