6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Patrika Opinion: ‘आधी आबादी’ को पूरा हक दिलाने का वक्त

पीएम के संबोधन के बहाने ही सही, यह सवाल भी उठना स्वाभाविक है कि आजादी के 75 सालों में लैंगिक समानता की दिशा में हासिल की गई उपलब्धियां आखिर गिनती की ही क्यों रह गई हैं? आखिर सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लैंगिक असमानता क्यों बरकरार है?

2 min read
Google source verification

image

Patrika Desk

Aug 16, 2022

प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

देश में लैंगिक समानता की राह कठिन जरूर हो सकती है लेकिन असंभव नहीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से दिए गए संबोधन में लैंगिक समानता को हमारी एकता में पहली शर्त बताते हैं तो यह उम्मीद और उजली हो जाती है कि मन से प्रयास हों तो इस राह को आसानी से पार किया जा सकता है। पीएम के संबोधन के बहाने ही सही, यह सवाल भी उठना स्वाभाविक है कि आजादी के 75 सालों में लैंगिक समानता की दिशा में हासिल की गई उपलब्धियां आखिर गिनती की ही क्यों रह गई हैं? आखिर सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लैंगिक असमानता क्यों बरकरार है? वह भी तब, जब हम इस वर्ग को 'आधी आबादी' का संबोधन देते हैं।

प्रधानमंत्री ने यह सही कहा कि नारी गौरव राष्ट्र के सपने पूरे करने में बहुत बड़ी पूंजी साबित होने वाला है। इसीलिए जब वे बोलचाल में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प लेने की बात कहते हैं तो इसी नारी गौरव की तरफ ध्यान दिलाते हैं। यह बात सही है कि स्त्री शक्ति ने देश-दुनिया में समय-समय पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। लेकिन महिलाओं को कमतर होने का अहसास दिलाने की पुरुष वर्ग की मानसिकता आज भी स्त्रियों को उनके हकों से वंचित कर रही है। नारी सशक्तीकरण की बातें कागजी योजनाओं में काफी अच्छी लगती हैं पर धरातल पर अभी काफी कुछ होना बाकी है। खास तौर से आधी आबादी को लोकतांत्रिक व्यवस्था में बराबरी का हक देने को लेकर। यह विडम्बना ही है कि विधायिकाओं में 50 फीसदी नहीं, बल्कि महज 33 फीसदी आरक्षण की सालों से चल रही मांग आज तक अधूरी ही है। पंचायत और स्थानीय निकाय स्तर पर आरक्षण से महिलाओं को मौका जरूर मिला लेकिन यहां भी कितना सशक्तीकरण नारी शक्ति का हो पाया है यह किसी से छिपा नहीं है। शिक्षित, आर्थिक रूप से स्वावलंबी, ऊंचे पदों पर बैठी महिलाओं के विपरीत लैंगिक भेदभाव की उस तस्वीर को भी देखना होगा जहां महिलाओं को यह तक पता नहीं कि कानून ने किन-किन क्षेत्रों में उनको कितना संरक्षित कर रखा है।

वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की ओर से जारी 'ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स-2022' में भारत का नाम 146 देशों की सूची में 135वें स्थान पर रहा है। जाहिर है, शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक और प्रशासन से लेकर राजनीति तक बेटियों को अभी काफी अवसर और सुविधाएं देना बाकी है। यह काम सरकारों को भी करना है और समाज को भी।