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सिर्फ मौज-मस्ती नहीं, जिम्मेदारी भी है पर्यटन

राष्ट्रीय पर्यटन दिवस: 25 जनवरीकोविड के बाद देसी पर्यटकों के इस नए जोश को देख कर लगा कि अब पर्यटकों को भी उनके व्यवहार के प्रति सजग किया जाए क्योंकि वे पर्यटन स्थल पर अकेले नहीं हैं। पर्यटन से जुड़ी कोई भी जगह हो, सभी तरह के पर्यटक वहां पहुंचते हैं और सभी उस जगह का आनंद लेने आते हैं।

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जयपुर

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Patrika Desk

Jan 24, 2023

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तृप्ति पांडेय
कला एवं संस्कृति विशेषज्ञ
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जरूरी है कि पर्यटक हर पर्यटन स्थल की मर्यादा के अनुरूप व्यवहार करना सीखें। वैसे तो पूरे विश्व में पर्यटन दिवस 27 सितंबर को मनाया जाता है पर भारत में पर्यटन के लिए राष्ट्रीय दिवस तय करना बहुत मायने रखता है। यह बताता है कि हमने पर्यटन के महत्त्व को स्वीकार किया है और हर देशवासी को चाहिए कि वह हर स्तर पर पर्यटन के प्रति जागरूक रहे और ऐसा परिवेश बनाने में अपना योगदान दे जिससे कि देश की एक बेहतरीन तस्वीर बने। इसका एक कारण यह भी है कि अब घरेलू पर्यटन को भी पंख लग चुके हैं। लोग अब छुट्टियां मनाने विदेश जाने के साथ-साथ देश के ही अलग-अलग हिस्सों को देखने में भी दिलचस्पी लेने लगे हैं। भारतीय पर्यटक अब पर्वतीय स्थलों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि वे ऐतिहासिक नगरों से ले कर समुद्रतटों और रेगिस्तान से जंगलों तक की यात्रा कर रहे हैं।

जब कोविड के दौरान लोगों का घर से बाहर निकलना बंद हुआ तो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटन पर जो असर हुआ उसकी मार हर देश ने महसूस की। तभी इस बात का अहसास हो गया था कि जब पाबंदी हटेगी तब लोग छुट्टियां मनाने कहीं न कहीं जाएंगे और यही हुआ भी। जिसे पर्यटन जगत ने प्रतिशोध पर्यटन कह डाला, उसे मैं प्रतिक्रिया पर्यटन कहती हूं क्योंकि प्रतिशोध से तो डर लगता है। देसी पर्यटकों के इस नए जोश को देख कर लगा कि अब पर्यटकों को भी उनके व्यवहार के प्रति सजग किया जाए क्योंकि वे पर्यटन स्थल पर अकेले नहीं हैं। पर्यटन से जुड़ी कोई भी जगह हो, सभी तरह के पर्यटक वहां पहुंचते हैं और सभी उस जगह का आनंद लेने आते हैं। जाहिर है कि एक भी पर्यटक का प्रतिकूल व्यवहार उसमें बाधा डाल सकता है।

दूसरी ओर, व्यवहार के साथ पर्यटन स्थल विशेष की मर्यादा के अनुरूप वेशभूषा का भी ध्यान रखना जरूरी है। उदाहरण के तौर पर, कोविड के बाद पर्यटकों का आना-जाना तेजी से बढ़ा विशेष रूप से देश के जंगलों में। उनमें भी खास तौर पर बाघ और तेंदुए के अभयारण्यों की ओर पर्यटकों का रुख देखा गया। इन अभयारण्यों में कुछ पर्यटक अक्सर यह भूल जाते हैं कि वे किसी बड़े आयोजन में नहीं, बल्कि जंगल में हैं और जंगलों में लाल-पीले-गुलाबी रंग नहीं पहने जाते। इसी तरह जंगल में जानवरों को देखना है तो चुप रहना भी जरूरी है। चीखना-चिल्लाना और खाने-पीने का सामान कहीं भी छोड़ देना जंगल की पारिस्थितिकी के अनुकूल नहीं है। अक्सर ऐसे अनाड़ी पर्यटक मिल जाते हैं जिन्हें टोकना पड़ता है और फिर जो नहीं समझते वे उलझ पड़ते हैं। इसी तरह धार्मिक स्थलों पर भी इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि पर्यटक किसी व्यायामशाला में या किसी समुद्र तट पर नहीं जा रहा है। कहावत भी है - ‘जैसा देश वैसा भेष।’ यानी कि एक पर्यटक की वेशभूषा और व्यवहार पर्यटन स्थल के अनुकूल होनी ही चाहिए। पहले से सोच-समझ कर वस्त्र धारण करेंगे तो प्रवेश नहीं दिए जाने पर अपमानित महसूस नहीं करना पड़ेगा। यदि नियम नहीं भी हैं, तब भी धार्मिक स्थलों की गरिमा का तो एक पर्यटक को ध्यान रखना ही चाहिए।

एक बड़ी समस्या है मोबाइल फोन और सेल्फी। पर्यटकों को चाहिए कि जिस स्थान को देखने आए हैं, पहले उसे अच्छी तरह से देखें। कुछ तो वहीं से मोबाइल पर ही जोर-जोर से उस जगह का हाल किसी दूसरे को सुनाने लगते हैं तो कुछ सेल्फी लेने में लगे रहते हैं, फिर चाहे पीछे वाले परेशान होते रहें। यदि किसी बड़े समूह का हर सदस्य यही कहता रहे - ‘अब एक मेरे मोबाइल से’, तो सोचिए क्या होगा एक अकेले घूमने वाले पर्यटक का जो एक फोटो खिंचवा कर आगे जाना चाहता है।

पर्यटकों को अपने व्यवहार के प्रति जागरूक होना होगा। यही नहीं, किसी दूसरे पर्यटक को गलत करने से भी रोकना होगा। जाने क्या बात है कि आज भी ऐतिहासिक इमारतों पर कुछ लिखने या दिल का चित्र बनाने की कुछ लोगों की आदत छूटती ही नहीं है। याद रहे, यहां नहीं सुधरे और विदेश में ऐसा कुछ किया तो सजा भी हो सकती है। यदि कहीं किसी भी धरोहर के साथ छेड़छाड़ की जा रही है, तो संबंधित लोगों का ध्यान आकर्षित करना भी एक पर्यटक की पर्यटन के प्रति सजगता है, क्योंकि पर्यटन एक जनआंदोलन है और उसके लिए हर पर्यटक को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।