एटमी हथियारों का बड़ा जखीरा रखने वाले रूस को यदि अपनी हार और संभावित नए वर्ल्ड ऑर्डर में दरकिनार होने का खतरा महसूस हुआ तो वह कोई अतिगामी कदम भी उठा सकता है।
रूस-यूक्रेन युद्ध का एक साल तक खिंच जाना साबित करता है कि पिछले दो विश्वयुद्धों से हमारी सभ्यता ने वाकई कोई सीख नहीं ली है। एक साल के बाद भी रूस अपने रुख पर अडिग है। वह पश्चिमी देशों को जिम्मेदार बताकर अपने देश की सुरक्षा के लिए इस युद्ध को जायज ठहराने की कोशिश कर रहा है। दूसरी तरफ, यूक्रेनी जनता सेना के साथ कंधा से कंधा मिलाकर अपनी संप्रभुता के लिए रूसी आक्रमण का विरोध कर रही है। उसे अमरीका और पश्चिमी देशों का साथ मिल रहा है। एक तरह से रूस और अमरीका की पुरानी लड़ाई (शीतयुद्ध) में यूक्रेन की धरती लहूलुहान हो रही है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सैद्धांतिक नैतिकता की आड़ में अमरीका और पश्चिमी देश नई विश्व व्यवस्था बनाने और उसमें रूस को अप्रासंगिक करने की कूटनीति में अपना हित देख रहे हैं।
इस नई व्यवस्था में चीन के बढ़ते प्रभाव की हनक भी दिख रही है, जो खुलकर रूस के साथ खड़ा हो गया है। तीसरी तरफ भारत है जो चीन के प्रति सतर्क है और रूस से दोस्ती अक्षुण्ण रखते हुए अमरीका से रिश्ते प्रगाढ़ करने की नीति अपना कर नई व्यवस्था में अपने लिए महत्त्वपूर्ण जगह बनाने का प्रयास कर रहा है। रूस का कमजोर होना भारत के हित में नहीं है। यूक्रेन को कुचलना भी भारत के लिए नुकसानदेह होगा क्योंकि इससे अन्य शक्तिशाली देशों के लिए भी रास्ता खुल जाएगा। ताइवान पर चीन और मोल्दोवा पर रूस की टेढ़ी नजर है। इसी कड़ी में भारत-चीन सीमा विवाद को भी देखा जा सकता है। यूक्रेन संकट दरअसल भविष्य में कई नए संकटों को जन्म दे सकता है। यदि तुरंत नहीं रोका जा सका तो यह युद्ध दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध के मुहाने तक ले जाने में सक्षम है।
हमारी दुनिया ऐसे समय में जी रही है जब एक बटन दबाने की गलती मात्र से सब कुछ तबाह हो सकता है। अमरीका के साथ एकमात्र परमाणु समझौता स्थगित करने से पहले ही रूस कई बार परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी दे चुका है। एटमी हथियारों का बड़ा जखीरा रखने वाले रूस को यदि अपनी हार और संभावित नए वर्ल्ड ऑर्डर में दरकिनार होने का खतरा महसूस हुआ तो वह कोई अतिगामी कदम भी उठा सकता है। यूक्रेन संकट शीघ्र खत्म करने के लिए यह जरूरी है कि पूर्व सोवियत संघ के देशों को नाटो में शामिल करने का लॉलीपॉप दिखाना बंद किया जाए। रूस की प्रमुख चिंता भी नाटो सेनाओं को अपनी सीमा तक आने से रोकना ही है। शांति के लिए रूस को आश्वस्त करना समय की सबसे बड़ी जरूरत है।