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‘डायबिटीज का बेकाबू होना अधिक खतरनाक’

पत्रिका साक्षात्कार: डॉ. पी.के. जब्बार, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ डायबिटीज तिरुवनंतपुरम के निदेशक

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जयपुर

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Nitin Kumar

Nov 14, 2024

World Diabetes Day 2024

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देश में डायबिटीज यानी मधुमेह के मामले काफी बढ़ रहे हैं। प्री-डायबिटीज रोगियों की संख्या काफी है। कम उम्र में भी मामले अब ज्यादा देखे जाने लगे हैं। वर्ल्ड डायबिटीज डे स्पेशल में पत्रिका के हेमंत पाण्डेय ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ डायबिटीज, तिरुवनंतपुरम के डायरेक्टर व डायबिटीज सोसाइटी ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष डॉ. पी.के. जब्बार से खास बातचीत की। इसमें उन्होंने डायबिटीज को नियंत्रित करने की आवश्यकता, कारणों, प्रभावों और प्रबंधन पर विस्तार से चर्चा की।

भारत में डायबिटीज के बढ़ते मामलों को आप कैसे देखते हैं?

बिल्कुल, भारत में डायबिटीज के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। वर्तमान में 12-13 करोड़ लोग डायबिटीज से पीडि़त हैं और 14-15 करोड़ लोग प्री-डायबिटीज की श्रेणी में हैं। इस संख्या के मामले में भारत, चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। मुख्य चिंता की बात यह है कि देश में डायबिटीज के 60त्न से अधिक रोगी अपने शुगर लेवल को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं, जिससे उनकी स्थिति और गंभीर हो जाती है।

बेकाबू डायबिटीज से होने वाले खतरों के बारे में बताएं।

डायबिटीज को नियंत्रण में न रखने से कई गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। यह किडनी को प्रभावित कर किडनी फेलियर का कारण बन सकती है, आंखों की रोशनी जाने का खतरा रहता है और नसों पर भी इसका बुरा असर पड़ता है, जिससे पैरों में दर्द, जलन और सुन्नता जैसी समस्याएं होती हैं। इसके अलावा, अनियंत्रित डायबिटीज से पाचन तंत्र, यूरिन सिस्टम और प्रजनन क्षमता पर भी बुरा असर पड़ सकता है। सबसे बड़ा खतरा हृदय रोग और स्ट्रोक का है। हालांकि, इस सब को नियंत्रित कर इन जोखिमों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

आप अक्सर डायबिटीज कंट्रोल न होने के दूसरे पक्षों पर भी बातें करते हैं?

डायबिटीज कंट्रोल न होने से सालाना लगभग 8 लाख लोगों की असमय मृत्यु हो रही है। हर वर्ष का इलाज खर्च का भार प्रति मरीज 15-20 हजार रुपए तक पड़ता है। यह समस्या केवल आर्थिक नहीं है। यह देश की उत्पादन और कार्य क्षमता पर भी गहरा प्रभाव डाल रही है, खासकर तब जब युवा इसकी चपेट में आ रहे हैं। लैंसेट डायबिटीज एंडोक्रिनोलॉजी जर्नल में पिछले साल एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें 19 देशों का डेटा था। रिसर्च के अनुसार डायबिटीज के चलते हर मरीज की उम्र औसतन 3-4 साल कम हो रही है। इससे जुड़े शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 30 साल की उम्र में मधुमेह की पहचान होने पर उम्र 14 वर्ष, 40 वर्ष की उम्र में पहचान होने पर उम्र 10 वर्ष और 50 वर्ष की उम्र में पहचान होने पर उम्र 6 वर्ष तक घटने की आशंका रहती है।

डायबिटीज से जुड़े कौन से मिथक इसे और जटिल बनाते हैं?

अक्सर देखा जाता है कि लोग दवाइयों को लेकर भ्रम में रहते हैं। जैसे कि दवाइयां शुरू करने से बीमारी बढ़ जाएगी या इंसुलिन लेना अंतिम विकल्प है। सच्चाई यह है कि इंसुलिन कई मामलों में गोलियों से अधिक सुरक्षित है। एक और समस्या यह है कि लोग अपनी मर्जी से दवाइयों की मात्रा घटा-बढ़ा लेते हैं या फिर दवाइयों का सेवन बंद कर देते हैं। इससे स्थिति और बिगड़ जाती है।

क्या डायबिटीज को लेकर जागरूकता की कमी है?

अभी भी बहुत से लोग इसे असाध्य मानते हैं और इलाज से बचते हैं। सोशल मीडिया पर भी गलत जानकारी और भ्रमित करने वाले सुझाव बहुत अधिक मिलते हैं, जिससे लोग डॉक्टरों की बजाय इंटरनेट पर भरोसा करने लगते हैं। सही जानकारी, जागरूकता और जीवनशैली में बदलाव के जरिए ही इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

डायबिटीज के नियंत्रण के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

इसका प्रबंधन मुश्किल नहीं है, पर इसके लिए अनुशासन की जरूरत है। सबसे पहले, नियमित रूप से स्वस्थ आहार लेना चाहिए। सप्ताह में 5 बार 30-30 मिनट एरोबिक व्यायाम करें, योग करें और पर्याप्त नींद लें। तनाव को कम करना भी बेहद आवश्यक है। इसके अलावा, 30 वर्ष की उम्र के बाद साल में एक बार इसका परीक्षण करवाना जरूरी है।

आप मधुमेह से पीड़ित लोगों को क्या सलाह देना चाहेंगे?

सबसे पहले, बीमारी को हल्के में न लें। सही समय पर उपचार और प्रबंधन अपनाना आवश्यक है। नियमित रूप से डॉक्टर के संपर्क में रहें, स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं और हरसंभव प्रयास करें कि आपकी डायबिटीज नियंत्रण में रहे। ऐसा करके आप खुद को और समाज को स्वस्थ बना सकते हैं।