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सत्यम्, शिवम् और सुंदरम् की अनुभूति का विलक्षण पर्व

शिव आराधना से भी जुड़ा है यह मास। मुझे लगता है-सत्यम्, शिवम् और सुंदरम् की अनुभूति का आलोक पर्व ही है-वैशाख मास और इसमें आने वाली अक्षय तृतीया!

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Patrika Desk

Apr 23, 2023

सत्यम्, शिवम् और सुंदरम् की अनुभूति का विलक्षण पर्व

सत्यम्, शिवम् और सुंदरम् की अनुभूति का विलक्षण पर्व


राजेश
कुमार व्यास
कला समीक्षक
आ स्था और विश्वास से ही जीवन सदा उत्सवधर्मी बना रहता है। भारतीय काल-गणना पर गौर करेंगे तो पाएंगे, लौकिक उत्सवों में ही वह पूरी तरह से गुंथी हुई है। चैत्र से वर्ष प्रारम्भ होता है और दूसरा माह वैशाख ही है। हर मास का अपना गान है। चैत्र का स्वागत 'चैती ' गाकर होता है। वैशाख में 'घांटो ' का गान होता है। ठीक वैसे ही जैसे फागुन में 'फाग ', सावन में 'मल्हार ', भादों में 'कजली ' आदि। वैशाख शब्द २७ नक्षत्रों में से १६वें विशाखा से आया है। इसका एक अर्थ राधा भी है। इसीलिए वैष्णव लोगों के लिए यह 'राधा-मास ' है। श्रीमद्भागवत में यह 'माधव-मास ' है। वैशाख शुक्ल तृतीया इस माह का अनूठा सांस्कृतिक पर्व है। लोक में यह आखातीज है। अक्षय यानी अबूझ तिथि। तीन प्रमुख अवतार नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव इसी दिन हुए। बद्रीनाथ के कपाट इसी दिन खुलते हैं, तो वृन्दावन में श्री बिहारी जी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक बार इसी दिन होते हैं। किसी भी कार्य को करने का अनपूछा मुहूर्त है यह। इसीलिए सर्वाधिक विवाह इसी दिन होते हैं। खगोलीय रूप में गौर करेंगे तो पाएंगे विशाखा नक्षत्र विवाह समारोहों में प्रयुक्त होने वाली पत्तियों के तोरण के आकार का है। वर-वधु को पहनाई जाने वाली मालानुमा भी।
अक्षय तृतीया कलाओं से जुड़ा दान पर्व भी तो है। इस दिन बहन-बेटियों को अलंकृत घड़े, सुंदर सुराहियां, मिट्टी के बने और भी बर्तन, कलात्मक पंखियां, दही, अन्न-धन आदि देने का रिवाज है। अक्षय तृतीया पर लक्ष्मी सहित नारायण की पूजा होती है। वाणी जब सुसंस्कृत होती है, तब उसे सरस्वती का स्वरूप मिलता है। शब्दों को फटक-फटक कर भाषा का जब निर्माण हुआ, तो लक्ष्मी ने ही वाणी को निधि समर्पित की। वाणी, निधि सभी प्रतीक हैं। मंगलकामना, आध्यात्मिकता और पर्व रसिकता संग नवजीवन और पोषण देते प्राय: सभी उत्सवों में हम प्रतीकों का ही तो वरण करते हैं। अक्षय-तृतीया पतंग उत्सव भी है। बीकानेर में चिलचिलाती धूप और लू में भी इस दिन घरों की छतें आबाद होती हैं। पतंगें उड़ती हंै। स्थानीय भाषा में इन्हें किन्ना कहते हैं। वैशाख शुक्ला तीज, 1545, शनिवार के दिन बीकानेर शहर की स्थापना हुई थी। स्थापना की उमंग में बीकानेर में उत्सव मनाया गया। घरों में खीचड़ा बना। घी भर इसे लोगों ने खाया और जी भर पिया इमली का शर्बत। असल में आखातीज पर बीकानेर के संस्थापक राव बीका ने खुशी का इजहार करते, आसमान में उड़ते मन के प्रतीक रूप में चंदा यानी बड़ी पतंग उड़ाई। बस तभी से परम्परा शुरू हो गई। पूरे विश्व में शायद बीकानेर एक मात्र जगह है, जहां तपते तावड़े में छत पर चढ़कर लोग पतंगें उड़ाते हैं। कागज पर कोरे चित्र, आकृतियों से सजी कलात्मक पतंगें। इन्हें उड़ाना भी अपने आप में कला है।
वैशाख में शिवलिंग के ऊपर जल-पात्र बांधने की भी परम्परा है। समुद्र मंथन में निकले भयंकर कालकूट विष को महादेव शिव ने अपने कंठ में धारण करके सबकी रक्षा की थी। माना जाता है कि वैशाख में जब अत्यधिक गर्मी पड़ती है, तो इस विष से राहत देने के लिए शिवलिंग पर 'गलंतिका ' बांधी जाती है। गलंतिका माने जल पिलाने का करवा या बर्तन। मटकी में जल ठंडा रहता है। इसलिए प्राय: इसे ही बांधने की परंपरा है। इससे बूंद-बूंद जल शिव को स्वयमेव अर्पित होता रहता है। इस तरह साफ है कि शिव आराधना से भी जुड़ा है यह मास। मुझे लगता है-सत्यम्, शिवम् और सुंदरम् की अनुभूति का आलोक पर्व ही है-वैशाख मास और इसमें आने वाली अक्षय तृतीया!