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वक्फ संशोधन अधिनियम : किसी समुदाय या दल की हार-जीत से न जोड़ें

— प्रो.आर.एन. त्रिपाठी (समाज शास्त्र विभाग, बीएचयू, वाराणसी)

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जयपुर

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VIKAS MATHUR

Apr 14, 2025

यह सर्वविदित तथ्य है कि रेल और रक्षा के बाद वक्फ के पास देश में सर्वाधिक संपत्ति है और इसमें सुधार की आवश्यकता भी बहुत दिनों से थी, ऐसा नहीं था कि इस पर प्रयास न किया गया हो। इस पर तो वर्ष 1976 में सुधार समिति लाई गई थी। रहमान खान की रिपोर्ट भी आई थी। वर्ष 2013 में 13 सदस्यों के साथ जेपीसी भी गठित की गई थी और अंतत: जगदंबिका पाल के नेतृत्व में 36 बैठकों के बाद 31 सदस्यों द्वारा जेपीसी से, जो सुझाव सर्वसम्मति से आए, उस पर संशोधन के साथ अमल होकर वक्फ संशोधन बिल संसद से पास हो गया और अब कानून बन गया है।

धार्मिक संस्थाओं में समय-समय पर व्यवस्थाओं में परिवर्तन होता रहता है। उसमें सुधार होना भी अति आवश्यक होता है। बहुत सारी धार्मिक संस्थाओं में कोर्ट के हस्तक्षेप से काफी सुधार हुए हैं और होते रहते हैं। सबरीमाला से लेकर अन्य तमाम व्यवस्थाओं में भी बहुत सारे परिवर्तन हुए हैं। निश्चित रूप से इन परिवर्तनों को राजनीतिज्ञ अपने चश्मे से देखते हैं और समाज में उससे संबंधित लोगों का अपना नजरिया है। परंतु राजनीतिक चुनौतियों के बीच हमें देश के आम नागरिक के रूप में इसे लेना चाहिए। निश्चित रूप से राजनीतिक दलों, न्यायालयों और एक जिम्मेदार नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह इस संशोधन बिल को किसी समुदाय या राजनीतिक दल की हार-जीत के साथ जोड़कर न देखें।

वक्फ की इतनी बड़ी संपत्ति विशेष करके, जिसमें उनके मालिक, जिन्हें मुतवल्ली कहा जाता है, उनके द्वारा समय-समय पर भ्रष्टाचार के बहुत सारे मामले सामने आते रहे हैं। इसमें सबसे बड़ी दुर्दशा उन तलाकशुदा, विधवा महिलाओं की रही, जिन्हें वसीयत के आधार पर वंचित करके रखा गया, जबकि वही वास्तव में उसकी उत्तराधिकारी होतीं। लेकिन महिलाओं को अधिकार न देने के कारण निश्चित रूप से जो लैंगिक आधार पर समता-समानता की बात है, वह पुराने वक्फ कानून में नहीं थी। इस नए बिल में उसमें भी सुधार लाया गया है।

वक्फ का उद्देश्य था कि वह अपने समुदाय के लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सुरक्षा जैसे संसाधनों की पूर्ति करेगा, लेकिन वक्फ के मुतवल्ली के जो अधिकार थे उससे वह पूर्ति नहीं हो पा रही थी। बहुत सारी संपत्तियां, जो दशकों से सौ-पचास रुपए किराए पर थी, जिनका किराया आज कई हजारों में हो सकता है और जिससे बहुत बड़ा राजस्व आ सकता है, वह सब लोकहित में न रहकर मुतवल्ली और उससे संबंधित व्यक्तियों के हित में ही रह गई थी। इसमें सुधार व परिवर्तन इस नए बिल में हुआ है। मुस्लिम जनों का कल्याण ही वक्फ का लक्ष्य है। उसके लिए आधुनिक तरीके से संसाधनों को जुटाना होगा जिसमें आर्थिक संसाधन भी हों और संसाधनों के आधार पर समावेशी विकास भी हो, ऐसे सुधार की आवश्यकता थी।

नई नीतियों से वक्फ सम्पत्तियों की अवैध बिक्री व बर्बादी रुकेगी, जो वक्फ के अयोग्य संरक्षकों द्वारा पहले की जाती रही है क्योंकि अब उनका एकाधिकार नही रहेगा। इससे जो सम्पत्ति अर्जित होगी वह पूर्णत: मुस्लिमों के कल्याण के लिए होगी। जो नए बिल के आने से काफी बड़ी धनराशि भी हो सकती है। इन सभी बातों को इस नए बिल में लाने की कोशिश की गई है। साथ ही जवाबदेही जो किसी भी संस्था को चलाने के लिए आवश्यक है उसकी सामूहिक जिम्मेदारी जिससे एक लोकतंत्रात्मक व्यवस्था विकसित होती है और पारदर्शिता बनी रहती है, वह सब इस वक्फ संशोधन बिल में पूरी तरह से शामिल है। इस संशोधन बिल पर जिस प्रकार से पक्ष और विपक्ष द्वारा इसे किसी समुदाय से जोड़ करके बयान दिए जा रहे हैं, उससे लगता है कि राजनीति भी अब लोकहित के लिए नहीं है बल्कि राजनीतिक दलों की प्रतिबद्धता में ही सीमित होती जा रही है, जो किसी भी सशक्त और समर्थ लोकतंत्र के लिए कदापि उचित नहीं है।

यहां यह तथ्य समीचीन है कि वक्फ संशोधन किसी पार्टी का नहीं है बल्कि यह संशोधित बिल देश हित में लाया गया एक प्रयास है और जिसमें पारदर्शिता और समावेशन को सुनिश्चित किया गया है। इसमें जिस प्रकार माफिया लोगों का आतंक था और दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति थी, उस पर इसमें अंकुश लगाने की पूरी कोशिश की गई है। यहां सरकार की तरफ से स्पष्ट कहा गया है कि इसका कदापि गैर इस्लामिक प्रयोग नहीं होगा। नए वक्फ बिल में कुछ ऐसी चीज हैं जिनका आज के दौर में होना बहुत आवश्यक है जैसे टेक्नोलॉजी को जोडऩा, ट्रिब्यूनल को अधिकार देना, ट्रिब्यूनल से संतुष्टि न होने पर शीर्ष कोर्ट जाने का विकल्प, तलाकशुदा महिलाओं-विधवाओं के अधिकारों की सुरक्षा करना और किसी भी विवाद में अदालत जाने का विकल्प खुला रहना, जो पहले वक्फ कानून में नहीं था या सीमित था।

विपक्षी दलों द्वारा यह कहना मुस्लिमों को दूसरे दर्जे की नागरिकता मिल जाएगी, उनका यह मानना कि यह संविधान पर हमला है, यह सारी बातें सही नहीं लगती। क्योंकि संयुक्त संसदीय समिति में उनके सदस्यों द्वारा जितनी आपत्तियां उठाई गईं, उन पर बैठकर बात की गई और अब तक इस जेपीसी द्वारा सर्वाधिक बैठकें इसी पर हुई हैं। उसी समय इस विवाद पर उनका बोलना ज्यादा सही था। समाज के प्रबुद्ध, चिंतकों और एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है कि इस संशोधन अधिनियम में निहित लोक कल्याण के मर्म को समझें।