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आपकी बात, दलबदल की प्रवृत्ति कम होने की बजाय बढ़ती क्यों जा रही है?

पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं मिलीं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं ….

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स्वार्थ सिद्धि का जरिया है राजनीति
राजनीति आज स्वार्थ सिद्धि का जरिया बन गई हे, सेवा भाव गायब है। यह शक्ति हासिल करने का जरिया बन गई है। विचारधारा से कोई मतलब नहीं रहा। यही वजह है कि जिस पार्टी के खिलाफ भाषण देने वाले नेता उसी पार्टी में शामिल होने में संकोच नहीं करते। राजनीतिक पार्टियां भी सत्ता में आने के लिए दलबदलू नेताओं को महत्त्व देती हैं। ये पार्टियां विपरीत विचारधारा वाले नेताओं को भी अपनी पार्टी में शामिल करने से गुरेज नहीं करती हैं।
डॉ. राजकुमार पाटीदार, शाजापुर, मप्र
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दलबदल के मूल में सत्ता मोह
दलबदल की प्रवृत्ति निरंतर बढऩी जा रही है। इसके मूल में राजनेताओं का सत्ता मोह ही है। सत्ता का लालच दलबदल प्रवृत्ति को बढ़ा रहा है.।
-ओमप्रकाश श्रीवास्तव, उदयपुरा, मध्यप्रदेश
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जनता के प्रति जवाबदेही भूले
जब सैद्धांतिक राजनीति पर स्वार्थ की राजनीति हावी हो जाती है तो दल कोई मायने नहीं रखता। नेता अपने स्वार्थ के कारण जनता के प्रति अपनी जवाबदेही भूल जाते हंै जिस कारण दलबदल को बढ़ावा मिलता है।
-गजेन्द्र नाथ चौहान, राजसमंद
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चाहिए सत्ता में भागीदारी
चाहे किसी भी दल के नेता हों, सत्ता में भागीदारी चाहते हैं। इसके लिए वे अपना मूल दल छोडऩे में भी नहीं हिचकते। इसी कारण आजकल राजनीति में दलबदल की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
-शैलेंद्र जैन, झालावाड़
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सत्ता का लालच
सत्ता का लालच बढऩे के साथ -साथ ही दलबदल की प्रवृत्ति भी बढ़ती जा रही है। नेताओं को चाहिए कि अपने निजी स्वार्थों से परे होकर अपने देश और अपने दल के प्रति नि:स्वार्थता का भाव रखते हुए राष्ट्र सेवा करें।
-रानिया सेन , जयपुर
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लोकतंत्र का नुकसान सत्ता का मोह, निजी स्वार्थ एवं राजनीतिक विवशता व दबाव के कारण से राजनीति में दलबदल प्रवृत्ति बढ़ रही है। इससे लोकतंत्र को नुकसान पहुंच रहा है।
-अनिल मेहता, बीकानेर
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सत्ता ही सब कुछ
नेता सत्ता में बने रहने के लिए दलबदल का सहारा लेते हैं। वे जनता से किए गए वादे भूल जाते हैं। सत्ता का लालच उन्हें दलबदल के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार दलबदल की प्रवृत्ति कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है।
-खेताराम जोगपाल, भाटाला, बालोतरा