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नैनो यूरिया की खरीद को लेकर किसानों में उत्साह क्यों नहीं

यदि नैनो यूरिया से खर्च में कमी व पैदावार बढऩे का चमत्कार होता, तो दानेदार यूरिया एवं डीएपी की तरह नैनो यूरिया लेने वालों को लंबी कतार में खड़ा होना पड़ता।

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Patrika Desk

Nov 03, 2022

नैनो यूरिया की खरीद को लेकर किसानों में उत्साह क्यों नहीं

नैनो यूरिया की खरीद को लेकर किसानों में उत्साह क्यों नहीं

रामपाल जाट
राष्ट्रीय अध्यक्ष,
किसान महापंचायत

पिछले कुछ समय से नैनो यूरिया का खूब प्रचार हो रहा है। 'नैनो ' एक ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है अत्यंत सूक्ष्म। पौधों तक जितनी मात्रा में यूरिया के सूक्ष्म कण पहुंचेंगे, उसी मात्रा में पौधों को उसका लाभ भी प्राप्त होगा और पौधों की वृद्धि अधिक होगी। इसी को आधार बनाकर इंडियन फार्मर एंड फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव (इफको) द्वारा तरल रूप में तैयार किए गए उर्वरक का नाम नैनो यूरिया दिया गया है। इस उत्पाद का इफको ने पेटेंट भी ले लिया है। इसके विक्रय एवं वितरण का एकाधिकार इफको को प्राप्त है। अन्य कोई भी संस्था, व्यक्ति, निगम, कंपनी तब तक इस उत्पाद को तैयार नहीं कर सकते जब तक इफको अपनी सहमति प्रदान नहीं करे। नैनो यूरिया का खूब प्रचार किया जा रहा है। इस उत्पाद का भारतीय कृषि शोध एवं अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने दो परीक्षणों के उपरांत ही अनुमोदन कर दिया, जबकि सामान्यतया तीन परीक्षणों के बाद नए उत्पाद का अनुमोदन किया जाता है। एक परीक्षण कम होने पर भी नैनो यूरिया को अनुमोदित करने का कारण, वह संस्थान ही बता सकता है। नैनो यूरिया से जुड़े दावों को तथ्यों की कसौटी पर परखने की आवश्यकता है।
फसलों में यूरिया का पहली बार बुवाई या रोपाई के समय तथा दूसरी बार 20-30 दिन बाद फसल में पत्तियां आ जाने पर उपयोग किया जाता है। दूसरी तरफ नैनो यूरिया के घोल का उपयोग पत्तियां आ जाने पर ही किया जाता है। बुवाई के समय इसका उपयोग संभव नहीं है। दानेदार यूरिया का उपयोग बुवाई के समय भी किया जाता है। दानेदार यूरिया का छिड़काव द्वारा उपयोग संभव है, क्योंकि यूरिया एक ध्रुवीय यौगिक है जो जल में पूर्ण रूप से घुलनशील है। नैनो यूरिया के घोल से छिड़काव के लिए पानी की टंकी, पाइप तथा छिड़काव के उपकरण के साथ ज्यादा समय की भी आवश्यकता होती है। किसानों के आकलन के अनुसार एक बोतल नैनो यूरिया के छिड़काव के लिए एक व्यक्ति को दिनभर श्रम करना पड़ता है जिसका श्रम मूल्य 300 रुपए से अधिक होता है। इस प्रकार एक बोतल नैनो यूरिया के लिए 540 रुपए व्यय करने पड़ते हैं, जबकि दानेदार यूरिया के 45 किलो के एक बैग का आधे घंटे में छिड़काव संभव है। यही वजह है कि किसान नैनो यूरिया लेने से बचते हैं। इसलिए इसकी बिक्री के लिए इफको से दानेदार यूरिया एवं डीएपी क्रय करने वाली सहकारी संस्थाओं एवं निजी विक्रेताओं को नैनो यूरिया लेने के लिए बाध्य किए जाने की रणनीति अपनाई जा रही है। डीएपी एवं यूरिया के एक बैग के साथ एक बोतल नैनो यूरिया खरीदने की बाध्यता की शर्त थोप दी गई है। यह भारत के स्पर्धा अधिनियम, 2002 का स्पष्ट उल्लंघन है। ऐसे मामलों में आयोग द्वारा स्वत: प्रसंज्ञान लेने का प्रावधान है, तब भी अभी तक प्रसंज्ञान नहीं लिया गया है।
यदि नैनो यूरिया से खर्च में कमी व पैदावार बढऩे का चमत्कार होता, तो दानेदार यूरिया एवं डीएपी की तरह नैनो यूरिया लेने वालों को लंबी कतार में खड़ा होना पड़ता। 2019-2020 के परीक्षण के आधार पर फरवरी 2021 में नैनो यूरिया के उपयोग को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से हरी झंडी मिली थी। उस समय परिषद के प्रबंध निदेशक रहे डॉ. त्रिलोचन महापात्र ने भी परीक्षणों की निरंतरता का मत प्रकट किया है। शोध व अनुसंधान के आधार पर नैनो यूरिया से उपजाऊपन बढऩे का इफको का दावा समझ से परे है। इसके बावजूद नैनो यूरिया के जोरदार प्रचार का कारण ढूंढने की आवश्यकता है।