
लाहौर।पाकिस्तान ( Pakistan ) इन दिनों वजीरिस्तान की गहरी समस्या से जूझ रहा है। रविवार को पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान ( north waziristan ) के खार कमर में प्रदर्शनकारियों और सैनिकों के बीच हिंसक झड़पें शुरू हो गईं। इस दुर्घटना में तीन लोगों की मौत हो गई है और करीब 11 लोग घायल हुए हैं। अगर पाक सेना के दावे को सही मानें तो प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने सेना के चेक पोस्ट पर हमला कर दिया और ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी थी। वताया जा रहा है कि ये सभी प्रदर्शनकारी पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट से जुड़े थे। इस हमले में हुई मौतों के बाद एक बार फिर दुनिया भर में पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट को लेकर चर्चा शुरू हो गई है।
चर्चा में पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट
सेना के साथ झड़पों के बाद पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट यानी पीटीएम चर्चा में है। पीटीएम का कहना है कि वो अपनी विभिन्न मांगों को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे जब सेना ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें दर्जनों घायल हो गए। जबकि पाक सेना का दावा है कि असल में पीटीएम के कार्यकर्ताओं ने पहले हमला शुरू किया था। सेना ने कहा है कि घायलों में उनके पांच सैनिक भी शामिल हैं। इस हमले में मुख्य आरोपी मोहसिन डावर और अली वज़ीर नामक दो लोग बनाए गए हैं। उधर कुछ धार्मिक संगठनों ने इस्लामाबाद उच्च न्यायालय (आईएचसी) में याचिक दायर कर पश्तून तहफ्फुज आंदोलन (पीटीएम) पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। हाईकोर्ट ने इस याचिका पर आंतरिक मंत्रालय और अन्य उत्तरदाताओं से जवाब मांगा है। अदालत ने पीटीएम नेता मंज़ूर पश्तीन और वकील मोहसिन जावेद और अली वज़ीर को भी नोटिस जारी किए। इस मामले में अगली सुनवाई 3 जून तक के लिए निर्धारित की गई है। उधर पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने मौत के इन मामलों की जांच करने को कहा है। आयोग का कहना है कि हिंसक झड़प से पीटीएम समर्थकों और सेना के बीच तनाव बढ़ेंगे।
कौन है मंजूर पश्तीन
मंजूर पश्तीन पाकिस्तान के अशांत इलाक़े दक्षिणी वज़ीरिस्तान के रहने वाले हैं। 25 साल के पश्तीन इस इलाके में पश्तूनों की मजबूत आवाज बनकर उभरे हैं। बता दें कि यह इलाका तालिबान पाकिस्तान का गढ़ माना जाता है। पश्तीन पाकिस्तान में पहली बार चर्चा में तब आए थेजब पिछले साल जनवरी में दक्षिणी वज़ीरिस्तान के रहने वाले एक युवक नकीबुल्लाह की कराची में हुए पुलिस एनकाउंटर में हत्या कर दी गई थी। इस उभरते हुए मॉडल की मौत के ख़िलाफ लोगों ने उग्र प्रदर्शन शुरू कर दिया, जिसके अगुआ मंज़ूर पश्तीन थे। बहुत ही कम समय में वह सुर्खियों में छा गए और धीरे धीरे पूरे पाकिस्तान में लोग इन्हें पहचानने लगे। पश्तीन बेहद गरीब समुदाय से आते हैं। उनकी पहचान पिछड़े, गरीब और दबे-कुचले समाज की आवाज़ के रूप में होती है। उनके नेतृत्व में पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा जातीय समूह पश्तून लगातार अपने खिलाफ होने वाली आवाज को बुलंद कर रहा है।
आपको बता दें कि पाकिस्तान के आजादी के दिनीन से वहां पश्तनों के ऊपर खूब अत्याचार होता रहा है। इन दिनों पश्तून अपनी सुरक्षा, नागरिक स्वतंत्रता और पाकिस्तान के लोगों जैसे समान अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पश्तीन ने पश्तूनों की समस्याओं से निपटने के लिए साल 2014 में पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट की शुरुआत की थी। लेकिन उस समय इससे अधिक लोग नहीं जुड़े। जनवरी 2018 में हुए नकीबुल्लाह की मौत के बाद शुरू हुआ आंदोलन इस संगठन को बेहद प्रसिद्धि दिला गया और वह देश ही नहीं दुनिया भर में पश्तूनों के हीरो बन गए।
पीटीएम ने किया पाक सेना की नाक में दम
पीटीएम और सेना के बीच का संघर्ष का मामला नया नहीं है। पाकिस्तानी सेना ने जब कथित रूप से वजीरिस्तान में चरमपंथ गुटों के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ी तो उसका सबसे अधिक प्रभाव पश्तूनों पर पड़ा। अफगानिस्तान की सीमा से सटे पश्तूनों के इलाके में पाकिस्तान सेना ने जमकर आत्याचार किए। बता दें कि इस कबायली इलाके पर नियंत्रण करने के लिए पाक सरकार लंबे समय से जद्दोजहद करती रही है। अब इस आत्याचार के खिलाफ पश्तून समुदाय ने आंदोलन छेड़ दिया है। पश्तूनों की मांग है कि अफगान सीमा से लगे कबायली इलाक़ों में पाकिस्तानी संविधान लागू कर वाशिंदों को बुनियादी हक दिए जाएं जो लाहौर, कराची और इस्लामाबाद जैसे आम शहरों के नागरिकों को मिले हुए हैं। आपको बता दें कि पाकिस्तान ने पश्तून इलाके में अंग्रेजजों के बनाए कानूनों को ही लागू करके रखा है ताकि सेना खुलकर पश्तूनों का दमन करती रहे।
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Updated on:
30 May 2019 07:08 pm
Published on:
30 May 2019 02:10 pm
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