
(फोटो : फ्री पिक)
त्योहार से पहले GST दरें कम करके मोदी सरकार ने जनता को बहुत बड़ा तोहफा दिया है। अब सरकारी कर्मचारी यह उम्मीद कर रहे हैं कि बिहार के विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले 8वें वेतन आयोग के सदस्यों और अध्यक्ष का चुनाव हो जाएगा। इससे वेतन आयोग का कामकाज शुरू होने में आसानी होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में जीएसटी सुधारों को 'दिवाली गिफ्ट' के तौर पर पेश किया था, जिसे बीजेपी के वोट बैंक को साधने की रणनीति माना गया। जानकारों के मुताबिक वेतन आयोग की घोषणा अगला बड़ा दांव हो सकती है।
8वां वेतन आयोग की जनवरी 2025 में घोषणा तो हुई, लेकिन अब तक न तो टर्म्स ऑफ रेफरेंस (ToR) तय किए गए हैं और न ही आयोग के सदस्य नियुक्त हुए हैं। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की रिपोर्ट के अनुसार, आयोग की रिपोर्ट तैयार होने और उसे लागू होने में आम तौर पर डेढ़ से दो साल लगते हैं। उदाहरण के तौर पर, 7वें वेतन आयोग को नोटिफिकेशन से लागू होने तक 27 महीने लगे थे। ऐसे में तकनीकी रूप से देखें तो 2026 के आखिर या 2027 की शुरुआत से पहले इसका असर दिखना मुश्किल है।
संयुक्त कर्मचारी परिषद के महामंत्री आरके वर्मा बताते हैं कि केंद्र सरकार चाहे तो सिर्फ बोर्ड का गठन या आधिकारिक नोटिफिकेशन जारी करके ही कर्मचारियों और पेंशनरों को यह संदेश दे सकती है कि उनकी मांगों पर काम शुरू हो गया है।
हालांकि फाइनेंशियल एक्सपर्ट कहते हैं कि चुनौती वित्तीय बोझ की है। 8वें वेतन आयोग को लागू करने पर सरकार पर 2.4 से 3.2 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च आएगा, जो जीडीपी का लगभग 0.6 से 0.8 प्रतिशत है। यह कोई छोटी रकम नहीं है और इससे वित्तीय संतुलन बिगड़ सकता है। हालांकि वेतन आयोग लागू होने के बाद खपत और बाजार में अस्थायी उछाल आता है, जो सरकार को राजनीतिक रूप से फायदा पहुंचा सकता है।
वित्त मंत्रालय ने रक्षा, गृह और कार्मिक जैसे अहम मंत्रालयों से शुरुआती बातचीत शुरू भी कर दी है। संसद में राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने इसकी पुष्टि की थी। अब बड़ा सवाल यही है कि क्या केंद्र सरकार चुनावी रणनीति के तहत आयोग का गठन जल्द करेगी या परंपरागत तरीके से आगे बढ़ेगी।
Updated on:
24 Sept 2025 04:39 pm
Published on:
24 Sept 2025 04:14 pm
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