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Bihar Elections : 3 चुनाव में 4 गुना बढ़ गईं पॉलिटिकल पार्टियां, 2010 में थीं 100 पार अब 200 पार

लालू प्रसाद यादव की राजनीति, नीतीश कुमार का उदय और वामपंथी दलों की भूमिका ने धीरे-धीरे बिहार को बहुदलीय राजनीति का केंद्र बना दिया।

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पटना

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Ashish Deep

Sep 27, 2025

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बिहार में 30 सितंबर को फाइनल वोटर लिस्ट आएगी। (फोटो : ANI)

बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने वाला है। इस बीच, सियासी दलों ने कमर कस ली है और पॉलिटिकल रैली तेज कर दी हैं। रोचक बात यह है कि बीते 3 विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों की संख्या पर नजर डालें तो यह 4 गुना बढ़ चुकी है जबकि 1952 के इलेक्शन से यह 13 गुना बढ़ गई है। आजादी के बाद पहले विधानसभा चुनाव में केवल 16 दलों ने चुनावी मैदान में किस्मत आजमाई थी, वहीं 2020 के विधानसभा चुनाव तक यह संख्या बढ़कर 212 तक पहुंच गई।

1952 से 2020 तक का सफर

1952 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, समाजवादी, भारतीय जनसंघ जैसे सीमित दल ही प्रमुख थे। राष्ट्रीय स्तर पर बड़े दलों की पकड़ मजबूत थी और क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बहुत सीमित था। 1962, 1967 और 1972 तक भी यही तस्वीर कायम रही। हालांकि, 1990 के दशक में मंडल राजनीति और क्षेत्रीय दलों के उद्भव ने यह समीकरण बदल दिए। लालू प्रसाद यादव की राजनीति, नीतीश कुमार का उदय और वामपंथी दलों की भूमिका ने धीरे-धीरे बिहार को बहुदलीय राजनीति का केंद्र बना दिया। 2005 के चुनाव तक आते-आते क्षेत्रीय दलों का दखल इतना बढ़ा कि राष्ट्रीय दलों की पकड़ कमजोर पड़ने लगी।

हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ीं पार्टियां

2005 के विधानसभा चुनाव में कुल 58 दलों ने चुनाव लड़ा। 2010 में यह संख्या बढ़कर 90 हो गई और 2015 में 157 तक पहुंच गई। 2020 तक स्थिति यह रही कि 212 दल चुनावी मैदान में थे। इसमें बड़े राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ छोटे-छोटे क्षेत्रीय दलों और स्थानीय मोर्चों की भी भरमार थी।

चुनावी राजनीति पर असर

राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि दल बढ़ने का सीधा असर चुनाव प्रचार और वोटों के बिखरने पर पड़ता है। छोटे दल अक्सर वोट काटने की भूमिका में दिखाई देते हैं, जिससे बड़े दलों की रणनीति प्रभावित होती है। यही कारण है कि गठबंधन की राजनीति बिहार में लगातार मजबूत हुई है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह स्थिति वोटरों के लिए विकल्प बढ़ाने का काम तो करती है, लेकिन प्रशासनिक स्थिरता और सरकार बनाने की प्रक्रिया को जटिल भी बना देती है।

2005 के बाद बढ़ीं पार्टियां

वर्षराष्ट्रीय दलराज्य स्तरीय दलबिना मान्यता वाले दल
फरवरी 200561049
अक्तूबर 200561240
201061272
2015613138
2020611195

चुनावी राजनीति पर असर

राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि दल बढ़ने का सीधा असर चुनाव प्रचार और वोटों के बिखरने पर पड़ता है। छोटे दल अक्सर वोट काटने की भूमिका में दिखाई देते हैं, जिससे बड़े दलों की रणनीति प्रभावित होती है। यही कारण है कि गठबंधन की राजनीति बिहार में लगातार मजबूत हुई है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह स्थिति वोटरों के लिए विकल्प बढ़ाने का काम तो करती है, लेकिन प्रशासनिक स्थिरता और सरकार बनाने की प्रक्रिया को जटिल भी बना देती है।