
पर्यावरण सुधारना है तो बिहार के इस आदिवासी समुदाय से सीखे सबक, मन की बात में जिक्र
पटना(बिहार): (Bihar News ) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (P.M.Modi ) ने आज मन की बात (Mann ki baat ) कार्यक्रम में प्रकृति प्रेमी बिहार के थारू समाज (Tharu tribal of Bihar ) का जिक्र कर (Nature lover Tharu tribal ) इस समाज के लोगों को हर्षित (Lock down in tribal for save tree) कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने मन बिहार के पश्चिम चंपारण के थारू समुदाय के प्रकृति प्रेम और इस प्रेम के कारण लगाए जाने वाले लॉकडाउन की चर्चा की। प्रधानमंत्री ने बताया, थारु समाज के लोगों का मानना है अगर बरना त्योहार के दौरान वह घर से बाहर निकले या कोई बाहर से आया तो उनके आने-जाने से और होने वाली रोजमर्रा की गतिविधियों से, नए पेड़-पौधों को नुकसान हो सकता है। जिससे प्रकृति की हानि हो सकती है।
60 घंटे का लॉकडाउन पालन
यहां पर 'बरना' नाम से एक त्योहार मनाया जाता है जो प्रकृति के प्रेम को दर्शाता है। बिहार के पश्चिमी चंपारण में सदियों से थारु आदिवासी समाज के लोग 60 घंटे के लॉकडाउन का पालन करते हैं। एक ओर कोविड 19 के बढ़ते संक्रमण से बचाव को लेकर सरकार ने देशभर में लॉकडाउन ज़ारी किया, जिसमें सोशल डिस्टेंस का पालन करने के साथ मास्क पहनने की हिदायत और अपील की गई। वहीं नेपाल के तराई क्षेत्र में वाल्मीकि टाईगर रिजर्व जंगल से सटे इलाकों में बसे करीब तीन लाख थारू आदिवासी समाज में बरना पूजा अर्चना सदियों से चली आ रही है।
घरों में हो जाते हैं कैद
इस बरना पूजा को ये थारू आदिवासी समाज के लोग एक पर्व की तरह मनाते हैं, जिसमें कोई भीड़ भाड़ नहीं और ना ही कोई शोर गुल होता है। यहां तक कि वृक्षों और पेड़ पौधों की पूजा अर्चना कर इस अवधि में कोई भी घास पात तक नहीं काटा जाता है। बरना के दौरान लॉकडाउन की घोषण कर घर से कोई बाहर नहीं निकलता। इस समय एक तिनका तक तोडऩे की मनाही होती है। ख़ासकर हरियाली को लेकर यहां पेड़ पौधों की सुरक्षा समेत ख़ुद की सलामती को लेकर सदियों और पुरखों से थारू आदिवासी समाज अपने घरों में ख़ुद को कैद कर लेते हैं।
पूजन की हो रही तैयारी
समाज के लोग मानते हैं कि बरसात में प्रकृति की देवी पौधे सृजित करती हैं। इसलिए गलती से भी धरती पर पांव पडऩे से कोई पौधा समाप्त न हो जाए, इसका पूरा ख्याल रखा जाता है। हर गांव में बैठक कर 'बरना' की तिथि तय की जाती है। जनसहयोग से राशि जुटाकर अराध्य देव बरखान (पीपल का पेड़, एक तरह से प्रकृति का प्रतिरूप) के पूजन की तैयारी होती है। जिस दिन से 60 घंटे का 'बरना' शुरू होता है, उस दिन सुबह गांव के हर घर से कम से कम एक सदस्य पूजन स्थल पर पहुंचता है।
प्रकृति की देवी की पूजा
महिलाएं हलवा-पूड़ी का भोग लगाकर प्रकृति की देवी से समुदाय की सुरक्षा की मन्नत मांगती हैं। इसके बाद युवा गांव के सीमा क्षेत्र में भ्रमण कर करआव (जंगल से लाई गई जड़ी-बूटी) जलाकर वातावरण को शुद्ध करते हैं। थारुओं के गांव तरूअनवा, देवरिया, बरवा कला, भड़छी, लौकरिया, छत्रौल, संतपुर, सोहरिया, चंपापुर, महुआवा, बेरई, कअहरवा, बेलहवा, अमवा, भेलाही, बलुआ, बनकटवा आदि में इसकी तैयारी चल रही है। बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के थारू आदिवासी समाज की परम्परा का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लॉकडाउन के नियमों को लेकर थारू जनजाति समाज की सराहना की। इसको लेकर थारू बेहद खुश और आह्लादित होकर पीएम मोदी को धन्यवाद दे रहे हैं।
Published on:
30 Aug 2020 09:01 pm
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