अलग दिखने की कोशिश
नीतीश कुमार एनडीए में रहते हुए भाजपा से अलग रुख पर कायम रहने की जिद पर डटे रहे, तो इसके पीछे पार्टी को अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण को अपने पक्ष में मोड़ने की अहम लालसा है। भाजपा जो काम नहीं कर पाती, उसे वह भाजपा के साथ बने रहते हुए कर दिखाने की रणनीति पर शुरू से चलते आए हैं। इसके जरिए वह भाजपा की मदद भी करते हैं। अटलबिहारी वाजपेयी सरकार में शामिल रहते हुए भी नीतीश कुमार ( Nitish Kumar Politcis ) और उनकी पार्टी ने यही रवैया कायम रखा। तब भी न्यूनतम साझा कार्यक्रम से अलग वह धारा 370, आयोध्या मसले और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों पर भाजपा से अलग रुख अपनाए रहे।
लालू की गैरमौजूदगी का लाभ उठाना लक्ष्य
नीतीश कुमार 90 के दशक में सत्ता पर काबिज हुए लालू यादव ( Lalu Prasad Yadav ) के मुस्लिम यादव समीकरण को तो नहीं तोड़ पाए, पर उनकी गैरमौजूदगी में वह मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में करने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। इस मिशन में भाजपा से अलग सेक्यूलर चेहरा बनाए रखना निहायत ज़रूरी है। अभी लोकसभा चुनाव के दौरान भी भाजपा के बराबर सीटों का बंटवारा करते हुए नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी ( JDU ) के लिए वैसी ही सीटें चुनीं, जहां भाजपा पिछला चुनाव हार गई थी। ऐसी सीटों पर मुस्लिम वोटों की बहुलता समीकरणों को भाजपा के प्रतिकूल बना डालती है। इनमें से जदयू ने अधिक कामयाबी भी हासिल की।
भाजपा जहां कमजोर, नीतीश वहीं मजबूत
हालांकि कई ऐसी सीटें भी इनमें शामिल है, जो भाजपा की परंपरागत सीटें रही हैं। पर मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण से यहां के समीकरण सीधे प्रभावित होते रहे हैं। इसके केंद्रबिंदु लालू यादव रहे, जिनके प्रति मुसलमानों का बढ़ता लगाव भाजपा का सिरदर्द बनता गया। बमुश्किल भाजपा इन सीटों का गणित साधती रही है। लालू यादव ( Lalu Yadav ) की गैरमौजूदगी को जदयू अपने समीकरणों में साधने का अनुकूल मौका मानकर चल रही है। इसमें भाजपा को भी एतराज नहीं रहा है।
धारा 370 पर अब भी वही रुख
धारा 370 पर संसद के दोनों सदनों से बहिर्गमन कर जदयू ने मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति ही अपनाई। इसमें दोहरा लाभ लेने की पहल नीतीश ने की है। जदयू ने बहिर्गमन ( JDU Walk Out ) कर सदन की संख्या वोटिंग के लिए कम करने का काम कर भाजपा की मदद भी कर दी और मुसलमान वोटरों के दिलों को भी छू लिया। कभी किसी जमाने में संसद से किसी मुद्दे पर किसी दल के बहिर्गमन को विरोध ही माना जाता था, लेकिन राजनीति के बदलते दौर में इसे समर्थन का हिस्सा ही माना जाने लगा है।