
बिहारी बाबू की राह आसान नहीं
पटना। क्या भाजपा से बाहर निकलकर चुनाव जीत पाएंगे शत्रुघ्न सिन्हा? वे शुरू से ही भाजपा में रहे हैं। भाजपा के टिकट पर ही दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए थे और दो बार से लोकसभा चुनाव जीतते आ रहे हैं। सिन्हा लगातार ही भाजपा की केन्द्र सरकार के खिलाफ बयान देते आए हैं। अपनी नाराजगी का इजहार वह विपक्षी नेताओं से मिलकर करते रहते हैं। बिहार में यह चर्चा गर्म हो गई है कि सिन्हा ने पटना साहिब सीट पर दावेदारी तो कर दी है, लेकिन उन्हें टिकट कौन देगा?
शत्रुघ्न सिन्हा की नाराजगी की वजह
शत्रुघ्न सिन्हा को लालकृष्ण आडवाणी गुट का माना जाता है। वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में करीब दो वर्ष - 2003-2004 में मंत्री भी रहे थे। वर्ष 2014 में जब भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनी, तब सिन्हा को मंत्री नहीं बनाया गया। आडवाणी के करीब रहे तमाम लोग किनारे कर दिए गए। यशवंत सिन्हा भी किनारे कर दिए गए, तो यशवंत सिन्हा खुलेआम विरोध करने लगे और भाजपा से अलग भी हो गए। शत्रुघ्न सिन्हा भी लगातार विरोध कर रहे हैं, लेकिन पार्टी से अलग नहीं हुए हैं। पार्टी उनको नजरअंदाज करती आई है।
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शत्रुघ्न सिन्हा की नाराजगी का असर
शत्रुघ्न सिन्हा की नाराजगी भाजपा को एक हद तक प्रभावित कर सकती है। एक तो पहली बार वह भाजपा से अलग होंगे, तो मुखर होकर भाजपा नेताओं की पोल खोलने लगेंगे। पटना और आसपास की सीट पर इससे नुकसान हो सकता है। उनकी जाति के वोटों पर असर पड़ सकता है, जिसकी काट भाजपा को तैयार करना पड़ेगी। यशवंत सिन्हा भी भाजपा को नुकसान पहुंचाएंगे। दोनों सिन्हा पिछली बार चुनाव में पूरी तरह से भाजपा के साथ थे। यह जरूर है कि शत्रुघ्न सिन्हा अगर पार्टी से गए, तो भाजपा अपना एक भीड़ जुटाऊ प्रचारक खो देगी।
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बिहारी बाबू की राह आसान नहीं
शत्रुघ्न सिन्हा की छवि गंभीर नेता के रूप में नहीं बन पाई है, लेकिन वे लंबे समय तक भाजपा के अच्छे सिपाही रहे हैं। वर्ष 1992 के लोकसभा उपचुनाव में वे नई दिल्ली सीट पर कांग्रेस की ओर से लड़ रहे दिग्गज अभिनेता राजेश खन्ना के खिलाफ चुनाव लड़े थे। खन्ना ने उन्हें 25000 वोटों से चुनाव हरा दिया और फिर ताउम्र कभी सिन्हा से बात नहीं की। सिन्हा ने अपनी ओर से राजेश खन्ना को मनाने की बहुत कोशिशें कीं, लेकिन खन्ना नहीं माने। सिन्हा को आज भी वह चुनाव लडऩे का पछतावा है। हालांकि राजनीति उन्हें शुरू से आकर्षित करती रही है और वे भाजपा के टिकट से इनकार नहीं कर सकते थे।
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में पटना साहिब सीट पर उनके खिलाफ कांग्रेस ने अभिनेता शेखर सुमन को उतारा था। सिन्हा आसानी से जीत गए। वर्ष 2014 में कांग्रेस ने सिन्हा के खिलाफ भोजपुरी अभिनेता कुणाल सिंह को उतारा था। सिन्हा फिर जीत गए।
अगर देखा जाए, तो गंभीर राजनीतिक चुनौती सिन्हा को अभी तक नहीं मिली है। आगामी चुनाव में उन्हें गंभीर चुनौती मिलेगी। हालांकि अगर बिहार में महागठबंधन बनता है, तो सिन्हा भी मजबूती के साथ मैदान में उतर पाएंगे, तब उनका सामना भाजपा-जद-यू और लोजपा गठबंधन से होगा। शत्रुघ्न सिन्हा ने पटना साहिब सीट पर अपना जो दावा पेश किया है, उस पर बिहार में हर पार्टी विचार कर रही है।
Published on:
14 Dec 2018 08:01 pm
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