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बिहार में भाजपा का क्या होगा?

बिहार का राजनीतिक इतिहास बताता है कि जिस गठबंधन में झगड़े होते हैं, वह गठबंधन जनता द्वारा नकार दिया जाता है, लेकिन सहयोगी जद यू ने भाजपा की ताजा हार के बाद बोल ही दिया कि भाजपा सहयोगियों को गंभीरता से ले...

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भाजपा की ताजा हार के बाद

भाजपा की ताजा हार के बाद

पटना। ताजा विधानसभा चुनावों का बिहार की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा, इसकी बिहार में चर्चा है। बिहार में भाजपा जहां जनता दल यूनाइटेड के साथ है, वहीं कांग्रेस को राष्ट्रीय जनता दल का साथ मिला हुआ है। बिहार में एनडीए में भी तनाव है, तो यूपीए या महागठबंधन में भी कम खींचतान नहीं है। इस बीच बिहार में गठबंधन राजनीति का इतिहास यह कहता है, जो गठबंधन मिलकर मजबूती से लड़ेगा, वही जीतेगा।

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान का कितना असर?
इन तीनों राज्यों - मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में से कोई ऐसा राज्य नहीं है, जिसकी सीमा बिहार के साथ मिलती हो। बिहार के ज्यादा पास मध्यप्रदेश है, लेकिन बीच में उत्तरप्रदेश आ जाता है। इधर छत्तीसगढ़ व बिहार के बीच झारखंड आ जाता है। राजस्थान से तो नहीं, लेकिन मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव परिणाम से बिहार में लोकसभा चुनाव कुछ-कुछ प्रभावित होता है। गौर करने की बात है कि विगत करीब २५ वर्ष से मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने के पांच महीने बाद ही लोकसभा चुनाव होते हैं और लोकसभा चुनाव के लगभग डेढ़ साल बाद बिहार में विधानसभा चुनाव होता आया है। यह ट्रेंड पुराना है कि लोकसभा में जीतने वाली पार्टी बिहार में सरकार नहीं बना पाती है।

बिहार में किसको होगा फायदा?
वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल-यू साथ लड़े थे, लेकिन गठबंधन में तकरार बहुत थी। यह तकरार ही चुनाव में भारी पड़ी, जनता दल यूनाइटेड 24 सीटों पर लड़ी थी और मात्र 6 सीटों पर जीत पाई थी, जबकि भाजपा 16 सीटों पर लड़ी थी, लेकिन केवल 2 सीटें हाथ लग पाई थीं। देश में एनडीए की हार और यूपीए की जीत हुई।

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और जनता दल यू मिलकर लड़े थे, लेकिन इस बार दोनों के बीच बेहतर तालमेल था, गठबंधन में परस्पर झगड़े बहुत कम थे, तो भाजपा 20 सीटों पर जीत गई, तो जद यू 12 सीटों पर। देश भर में यूपीए की वापसी हुई, लेकिन बिहार एक ऐसा राज्य था, जहां भाजपा और जद यू ने बेहतर तालमेल के कारण बाजी मार ली थी।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के अच्छे दिनों की लहर थी और एनडीए के विरुद्ध जो गठबंधन था, उसमें खूब झगड़े थे। जद यू एनडीए से अलग हो चुका था और राजद के साथ आ गया था। कांग्रेस अलग ही चुनाव लड़ रही थी। ऐसे में, एनडीए गठबंधन को भारी जीत मिली। भाजपा 22 सीटों पर जीती, लोजपा 6 सीटों पर और रालोसपा 3 सीटों पर।

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अभी क्या हाल है?
बिहार में जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी फिर एक बार साथ है। दोनों के बीच 17-17 सीटों को लेकर तालमेल हो चुका है, 6 सीटों पर लोजपा लड़ेगी। उपेन्द्र कुशवाहा की रालोसपा को एनडीए ने अलग कर दिया है। तालमेल के बावजूद बिहार में भाजपा और जद यू के बीच तालमेल अच्छा नहीं है। दोनों ओर से तीखी बयानबाजी चल रही है। एक दूसरे की जमीन या वोट शेयर को हड़पने के लिए राजनीति भी खूब हो रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि रणनीतिकार प्रशांत किशोर के जद यू में आने के बाद एनडीए कमजोर हुआ है। पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव के समय हुई राजनीति इसका उदाहरण है। जनता दल नई जमीन पाने की कोशिश की बजाय, भाजपा की जमीन पर ही नजर टिकाए हुए है। यह झगड़ा जितना ज्यादा बढ़ेगा, गठबंधन को उतना ही ज्यादा नुकसान होगा।
बिहार में लोग गठबंधन के पक्षधर हैं, उन्होंने राजद और जद-यू के गठबंधन को भी सहजता से स्वीकार किया था, लेकिन जब गठबंधन में झगड़े होते हैं, तो बिहार के मतदाता उससे दूरी बना लेते हैं।