
राजद सुप्रीमो लालू यादव ने चारा घोटाले में नाम आने के बाद राबड़ी देवी को सीएम बनाया था। (फोटो सोर्स : AI)
बिहार का 1995 का विधानसभा चुनाव…लालू प्रसाद यादव की जनता दल पार्टी ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। पार्टी ने कुल 324 सीटों वाली बिहार विधानसभा में 167 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत हासिल किया। यह न सिर्फ लालू यादव की पार्टी की मजबूती का संकेत था, बल्कि यह भी दर्शाता था कि जनता के बीच उनकी लोकप्रियता चरम पर थी। जनता में बदलाव की आशा थी, लेकिन इसी राजनीतिक विजय के पीछे एक बड़ा संकट छिपा था- 'चारा घोटाला'।
चारा घोटाला एक ऐसा मामला था जिसने बिहार की राजनीति को हिला कर रख दिया। लालू यादव को मुख्यमंत्री बने लगभग 7 महीने हुए थे कि उनके खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने चारा घोटाले की जांच शुरू की और उन्हें मुख्य आरोपी बना दिया। यह मामला लगभग 1500 करोड़ रुपये के चारा धन के गबन से जुड़ा था, जिसमें सरकारी कोष से पशुपालन के लिए चारा खरीदने के नाम पर धन की हेराफेरी की गई थी।
लालू प्रसाद यादव ने अपने राजनीतिक करियर में इस जांच से बचने के लिए हर संभव चाल चली। कभी कार्यकारी अधिकारियों पर दबाव बनाकर जांच रुकवाई, तो कभी कोर्ट से स्टे ले लिए। उन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ वकीलों में से एक कपिल सिब्बल की मदद मिल रही थी, जो सुप्रीम कोर्ट में लालू के पक्ष में पैरवी कर रहे थे। प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल भी अपनी अस्थिर संयुक्त मोर्चा सरकार को बचाने की कोशिश में लालू के समर्थन में खड़े रहे। लेकिन अंततः कोर्ट ने उनके खिलाफ सख्ती दिखाई।
24 जुलाई 1997 को पटना हाईकोर्ट ने लालू प्रसाद यादव की अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी। अचानक ही लालू यादव और उनके समर्थक असहाय हो गए। उधर, गुजराल सरकार के सहयोगी दलों ने साफ कह दिया कि अगर वे लालू की मदद करेंगे तो सेंटर में सरकार नहीं रह पाएगी। वहीं कपिल सिब्बल भी बिहार के मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी पर स्थगन आदेश लेने में असफल रहे।
उस शाम बिहार की राजनीति में एक तनावपूर्ण माहौल था। लालू प्रसाद यादव 1, अणे मार्ग पर अपने सरकारी बंगले में मंत्रिमंडलीय सहयोगियों और समर्थकों के साथ बैठे थे। वातावरण निगेटिव था। कुछ समर्थक नारेबाजी करने लगे लेकिन लालू ने उन्हें चुप करा दिया। फोन की घंटियां लगातार बजती रहीं, लेकिन कोई ठोस हल नहीं निकला। किसी अनहोनी की आशंका को देखते हुए पटना के वीआईपी इलाके को रैपिड एक्शन फोर्स तैनात कर दी गई थी, जो चप्पे-चप्पे पर निगाह रखे थी। अगले दिन लालू यादव की गिरफ्तारी के लिए सीबीआई के अफसर आने वाले थे।
रात लगभग 10 बजे लालू यादव ने फैसला कर लिया कि सत्ता में बने रहने का एक ही रास्ता है, उनकी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाना। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, 'तुमको कल मुख्यमंत्री का शपथ लेना है, तैयारी शुरू करो।' इसके बाद राबड़ी देवी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हुआ।
दिवंगत वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब 'बंधु बिहारी' में इस वाकये का आंखो देखा हाल महसूस कराने की कोशिश की है। वह लिखते हैं कि चारा घोटाला सामने आने के बाद विपक्ष को यही लग रहा था कि बिहार में लालू युग का अंत हो जाएगा। बीजेपी और दूसरे दलों ने तो चुनाव की तैयारियां भी शुरू कर दी थीं। लेकिन लालू ने अपनी जगह राबड़ी को सीएम बनाकर विरोधियों को जबर्दस्त पटखनी दी।
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Updated on:
12 Sept 2025 05:07 pm
Published on:
11 Sept 2025 05:18 pm
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