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आरएसएस ने Vande Mataram को कई दशकों तक क्यों नहीं गाया, जानिए प्रो. शम्सुल इस्लाम से पूरा इतिहास

Vande Mataram: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में वंदे मातरम पर 8 दिसंबर 2025 को जोरदार भाषण दिया। राजनीतिक इतिहासकार शम्सुल इस्लाम का कहना है कि उन्होंने अपने भाषण में कई तथ्य गलत बताए। इस बहस पर विस्तार से उनका लेख पढ़िए।

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Vande Mataram Debate

प्रो. शम्सुल इस्लाम ने पीएम के भाषण में उठे सवालों का जवाब दिया है।

Vande Mataram Debate: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा के मौजूदा शीतकालीन सत्र में 8 दिसंबर को अपने भाषण में वंदे मातरम को लेकर जो कहा उसका सच्चाई से कोई ताल्लुक नहीं है। प्रधानमंत्री आमतौर पर संसद के आखिरी सत्र में अपनी बात रखते हैं लेकिन इस बार उन्होंने खुद सबसे पहले बोला।

प्रधानमंत्री ने लोकसभा में 8 दिसंबर को अपने एक घंटे के भाषण में वंदे मातरम (Vande Matram) शब्द का 121 बार इस्तेमाल किया। देश 50 बार और भारत शब्द 35 बार बोले। अंग्रेज 34 और बंगाल का नाम 17 बार लिया। अपने भाषण में कांग्रेस का 13 बार जिक्र किया। बंकिम चन्द्र का नाम 10 बार लिया। नेहरू का 7 बार, महात्मा गांधी का 6 और मुस्लिम लीग का 5 बार लिया। जिन्ना का 3 और मुसलमान का 2 बार नाम लिया। तुष्टिकरण शब्द का 3 बार प्रयोग किया।

RSS ने दशकों तक आनंद मठ का नाम ही नहीं लिया

प्रधानमंत्री मोदी सच्चाई को ढकने के लिए कल सदन में भावुक भी हुए लेकिन सच सामने लाने की जो बहस शुरू हुई, अब रूकने वाली नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी आरएसएस के बहुत सीनियर कार्यकर्ता हैं। आरएसएस (RSS) की स्थापना 1925 में हुई और भारत को अंग्रेजों से 1947 में आजादी मिली लेकिन इतने वर्षों तक किसी आरएसएस कार्यकर्ता ने कभी भी वंदे मातरम नहीं गाया। उन्होंने बंकिम चन्द्र के लिखे उपन्यास आनंदमठ का कभी भी जिक्र नहीं किया। मैं आरएसएस के लोगों से यह दावा करता हूं कि आपके किसी कार्यकर्ता ने 1925 से लेकर 1947 तक की अवधि में किसी गांव, किसी कॉलेज या कहीं भी वंदे मातरम गाया हो तो उसका दस्तावेज पेश कर दें?

क्या 1925-1947 तक किसी RSS कार्यकर्ता ने इसे गाया?

क्या किसी आरएसएस कार्यकर्ता ने वंदे मातरम गाते हुए 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा लगाया था? उन्होंने अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे लगाने की बात तो छोड़िए, वंदे मातरम भी कभी नहीं गाया। दरअसल, अंग्रेजी राज में वंदे मातरम पर पाबंदी लगा दी गई थी। अगर वंदे मातरम सामूहिक रूप से गाया जाता तो अंग्रेजी शासन गाने वालों पर गोलियां तक चलवाती थी। प्रधानमंत्री इस बात का कोई सबूत दे दें कि आरएसएस कार्यकर्ताओं ने इसे कहीं गाया था? दरअसल प्रधानमंत्री मोदी की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह देश को इस बारे में जानकारी दें। देश यह बात उनसे इसलिए जानना चाहता है क्योंकि वह बार-बार कहते हैं कि वह आज आरएसएस की वजह से यहां तक पहुंचे हैं।

वंदे मातरम के दो अंतरे गाए जाएंगे, यह तय किसने किया?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन में यह भी कहा कि कांग्रेस के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने वंदे मातरम के कुछ अंश हटवा दिए थे। नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष थे और उस समिति में भी थे जिसने यह तय किया था कि वंदे मातरम का कौन सा हिस्सा गाया जाएगा? कांग्रेस के उस समिति में सरदार पटेल, महात्मा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। उन सभी ने मिलकर यह तय किया था कि वंदे मातरम के पहले दो अंतरे गाए जाएंगे।

वंदे मातरम को अरविंदो घोष ने बताया था बंगाल का राष्ट्रगीत

वंदे मातरम बांग्ला और संस्कृत में लिखा गया था। इस गीत के पहले दो अंतरे संस्कृत में और बाकी के बंगाली में हैं। सच तो यह है कि यह गीत देश के लिए नहीं लिखा गया था बल्कि बंगाल के लिए लिखा गया था। अरविंदो घोष ने इस गीत के पहले दो अंतरे का पहली बार जब अंग्रेजी में अनुवाद किया तब उन्होंने यह इसे बंगाल का राष्ट्रगीत बताया था। इस गीत के बाकी अंतरे बाकी देश पर लागू नहीं होते।

वंदे मातरम से क्यों हटाए गए थे कुछ अंश, जानिए

बंकिम चन्द्र ने अपनी जीवनी में यह बताया है कि एक बार ट्रेन से बंगाल में कहीं जा रहे थे, तब उन्होंने देखा कि खेत लहलहा रहे हैं। नदियां कल-कल बह रही हैं। पेड़ फूलों से लदे हुए हैं। गीत के ये दृश्य बंगाल के थे और यह बात राजस्थान के रेगिस्तान में लागू नहीं हो सकती। पहाड़ी इलाकों में लागू नहीं हो सकती। उन्होंने अपने गीत में 7 करोड़ लोगों की बात की है। गीत लिखने के समय बंगाल प्रांत की आबादी 7 करोड़ के करीब थी। बंगाल प्रांत में ​तब उड़ीसा और बिहार शामिल था। यह गीत पूरे देश पर लागू नहीं हो रही थी इसलिए यह प्रस्ताव दिया गया कि इसे बंगाल में लागू किया जाए। इस प्रस्ताव पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने सहमति दी थी।

इस गीत में मूर्ति पूजा की बात है, जिसको लेकर सिर्फ मुसलमानों को ही नहीं बल्कि बौद्धों, आर्यसमाजियों और सिखों को आपत्ति होगी। देश में बहुत सारे संप्रदाय हैं, जो मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करते हैं, उन सभी को आपत्तियां थीं। समिति को लगा कि इससे समाज बंट जाएगा, इसलिए उन्होंने कुछ अंतरे वंदे मातरम से हटा दिए थे।

जिन्ना के कहने पर वंदे मातरम के अंश हटाए गए, यह झूठ है

मोहम्मद अली जिन्ना के कहने पर जवाहर लाल नेहरू ने वंदे मातरम से कुछ अंश हटाए थे, यह एक झूठ है। मोहम्मद अली जिन्ना ने 1936 में इसपर सवाल उठाया था लेकिन कांग्रेस की वंदे मातरम वाली समिति ने उनकी राय पर अंतरा हटाने का काम किया, यह बात बिल्कुल गलत है।

​सावरकर और जिन्ना ने मिलकर अंग्रेजों की फौज तैयार की थी

अंग्रेजी सरकार जब सेना बना रही थी तब आरएसएस के वीर सावरकर ने कई जगहों पर भाषण दिए और यह कहा था कि हमें क्यों अंग्रेजी सेना में शामिल होना चाहिए? सावरकर ने जिन्ना के साथ मिलकर अंग्रेजों की सेना में 1.5 लाख भर्ती कराए थे। सावरकर ने हिंदू महासभा के अधिवेशनों में खुद बताए थे कि उन्होंने अंग्रेजी सेना में एक लाख हिंदू भर्ती कराए थे। वहीं जिन्ना ने बताए कि उन्होंने अंग्रेजी सेना में 50 हजार मुस्लिम भर्ती कराए थे। अंग्रेजी सेना में शामिल हुए ये 1.5 लाख हिंदू-मुसलमान सैनिक नेताजी सुभाष बोस जब नॉर्थ ईस्ट से भारत में अंग्रेजों से लड़ने के लिए प्रवेश कर रही थी तब उनके खिलाफ इस्तेमाल में लाए गए थे।