ये लोग हुए शामिल…
जानकारी के अनुसार बद्रीनाथ धाम के कपाट शुक्रवार की सुबह 04 बजकर 30 मिनट पर यानि जेष्ठ माह, कृष्ण अष्टमी तिथि, कुंभ राशि धनिष्ठा नक्षत्र, ऐंद्रधाता योग के शुभ मुहूर्त पर कपाट खोले गए। इस मौके पर बदरीनाथ धाम के मुख्य पुजारी रावल, धर्माधिकारी भूवन चन्द्र उनियाल, राजगुरु, अपर धर्माधिकारी व अन्य पूजा स्थलों से जुड़े 11 लोग ही शामिल हुए।
इस दौरान मास्क के साथ सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया। वहीं इस दौरान इस बार सेना के बैंड की सुमधुर ध्वनि, भक्तों का हुजूम, भजन मंडलियों की स्वर लहरियां बदरीनाथ धाम में नहीं सुनायी दी।
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कोरोना महामारी के चलते इस बार जहां बद्रीनाथ जी के सिंह द्वार पर होने वाला संस्कृत विद्यालय के छात्रों का मंत्रोच्चार और स्वस्तिवाचन भी नहीं हुआ, वहीं भारतीय सेना गढ़वाल स्कॉउट के बैंड बाजों की मधुर ध्वनि और भक्तों के जय बद्रीनाथ विशाल के जयकारे भी पूरे बद्रीनाथ धाम से गायब रहे।
कपाट खोले जाने से पहले पूरे मंदिर परिसर को सैनिटाइज किया गया। कपाट खुलने से पूर्व गर्भ गृह से माता लक्ष्मी को लक्ष्मी मंदिर में स्थापित किया गया और कुबेर जी व उद्धव जी की चल विग्रह मूर्ति को गर्भ गृह में स्थापित किया गया।
वहीं केदारनाथ धाम के कपाट 29 अप्रैल तथा गंगोत्री एवं यमुनोत्री धाम के कपाट अक्षय तृतीया पर 26 अप्रैल को खुल चुके हैं। द्वितीय केदार मद्महेश्वर के कपाट 11 मई को खुल चुके हैं। जबकि तृतीय केदार तुंगनाथ जी के कपाट 20 मई को तथा चतुर्थ केदार रुद्रनाथ जी के कपाट 18 मई को प्रात: खुल रहे हैं।
सुबह तीन बजे से बद्रीनाथ धाम में कपाट खुलने की प्रक्रिया शुरू
बद्रीनाथ में आज होने वाला विष्णु सहस्त्रनाम पाठ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम की होगी। जबकि इससे पहले कपाट खुलने को लेकर देवस्थानम बोर्ड ने तैयारियां पूरी कर ली थी। इसी के तहत प्रात: तीन बजे से बद्रीनाथ धाम में कपाट खुलने की प्रक्रिया शुरू होने लगी।
देवस्थानम बोर्ड के अधिकारी/ सेवादार -हक हकूकधारी मंदिर परिसर के निकट पहुंच गए। कुबेर जी बामणी गांव से बदरीनाथ मंदिर परिसर में पहुंचे तो रावल एवं डिमरी हक हकूकधारी भगवान के सखा उद्धव जी और गाडू घड़ा तेल कलश लेकर द्वार पर पूजा के लिए पहुंचे।
वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ द्वार पूजन का कार्यक्रम संपन्न हुआ। प्रात: 4 बजकर 30 मिनट पर रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी द्वारा धाम के कपाट खोल दिए गए। मंदिर के कपाट खुलते ही माता लक्ष्मी जी को मंदिर के गर्भ गृह से रावल द्वारा मंदिर परिसर स्थित लक्ष्मी मंदिर में रखा गया। श्री उद्धव जी एवं कुबेर जी बदरीश पंचायत के साथ विराजमान हो गए।
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गेंदे के फूलों से सजाया
इससे पहले गुरुवार को योग ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर से कुबेर जी, उद्धव जी, गरुड़ जी, आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी और गाडू घड़ा तेल कलश यात्रा के साथ बदरीनाथ के रावल (मुख्य पुजारी) ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी बद्रीनाथ धाम पहुंचे।
योग ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर में कुबेर जी, उद्धव जी और गरुड़ जी की विशेष पूजाएं हुईं। हक-हकूकधारियों ने सामाजिक दूरी का पालन करते हुए भगवान को पुष्प अर्पित किए। भक्तों ने भगवान बद्रीनाथ से कोरोना संकट से निजात दिलाने की कामना की।
बृहस्पतिवार/गुरुवार सुबह पांडुकेश्वर से डोली यात्रा बदरीनाथ के रावल के साथ बदरीनाथ धाम के लिए निकली तो पुलिस ने पांडुकेश्वर में ही यात्रा को रोक दिया। सभी के पास चेक किए गए। जो बिना पास थे, उनको लौटा दिया गया। लोगों ने डोली को रोकने का विरोध किया। उनका कहना था कि डोली को इस तरह रोकना अशुभ माना जाता है।
बदरीनाथ धाम को गेंदे के फूलों से सजाया गया है, जिनका वजन 10 क्विंटल बताया जाता है। पुष्प सेवा समिति ऋषिकेश की ओर से मंदिर को सजाया गया। बदरीनाथ सिंह द्वार, मंदिर परिसर, परिक्रमा स्थल, तप्त कुंड के साथ ही विभिन्न स्थानों को लगातार सैनिटाइज किया जा रहा है।
कहीं भी जाने के लिए लेनी होगी अनुमति
वहीं प्रशासन की ओर से निर्देश जारी किए गए हैं कि लॉकडाउन की अवधि तक धाम में पहुंचे पुजारियों को बिना प्रशासन की अनुमति के बद्रीनाथ क्षेत्र से अन्यत्र जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इससे पहले निर्धारित तिथि पर केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुल चुके हैं।
बदरीनाथ धाम के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब धाम में वेद मंत्रों और जय बद्रीनाथ का जयघोष तो सुनाई दिया, पर भक्तों का हुजूम नहीं रहा। धाम के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल का कहना है कि यह धाम के इतिहास में पहली बार हुआ, जब धाम के कपाट खुलने पर भक्तों की मौजूदगी नहीं रही।
पहले भी बन चुकी है ऐसी स्थिति, लेकिन यात्रा के बीच…
बताया जाता है कि वर्ष 1920 में स्वामी विवेकानंद सरस्वती हैजा रोग फैलने के कारण बदरीनाथ धाम की तीर्थयात्रा पर नहीं जा पाए थे और कर्णप्रयाग से ही लौट गए थे।
लेकिन तब यह संकट की स्थिति यात्रा के मध्य में आई थी। पूर्व में धाम के कपाट खोलने की तिथि 30 अप्रैल तय हुई थी, लेकिन कोरोना संकट के कारण कपाट खोलने की तिथि 15 मई तय की गई ।