scriptनवरात्रि 2020 : यहां गिरी थी सती की नाभी, ये है महाकाली की पीठ | mysterious purnagiri mandir known as mahakali shkti peeth | Patrika News

नवरात्रि 2020 : यहां गिरी थी सती की नाभी, ये है महाकाली की पीठ

locationभोपालPublished: Oct 14, 2020 11:43:34 am

देवराज इन्द्र ने यहीं पर की थी तपस्या…

mysterious purnagiri mandir known as mahakali shkti peeth

mysterious purnagiri mandir known as mahakali shkti peeth

हिंदू धर्म में शक्ति की उपासना के लिए साल के चार प्रमुख पर्वों में से एक शारदीय नवरात्रि का माना जाता है। जो अगले कुछ दिनों में शुरु होने जा रहा है। इन 9 दिवसीय पर्व में देवी माता के 9 स्वरूपों को पूजा जाता है। वहीं शारदीय नवरात्रि के अलावा साल में एक चैत्र नवरात्रि और दो गुप्त नवरात्रि भी आती हैं।

शक्ति के इस पर्व पर देवी मां की उपासना के तहत भक्त देवी मां के मंदिरों में दर्शनों को जाते हैं। वहीं इन दिनों में देवी मां के शक्ति पीठों का दर्शन अत्यंत विशेष व जल्द मनोकामना पूर्ण होने वाला माना जाता है।

शक्ति के इस पर्व यानि शारदीय नवनात्रि 2020 की शुरुआत होने से ठीक पहले में आज हम आपको उत्तरांचल में स्थित देवी मां के एक ऐसे शक्ति पीठ के बारे में बता रहे हैं, जिसे महाकाली की पीठ माना जाता है। वहीं इस जगह को सती माता की नाभि गिरने का भी स्थान माना गया है। इसके साथ ही आज हम आपको बताएंगे कि इन शक्ति पीठों के अस्तित्व में आने की कथा भी बतरएंगे।

देवभूमि उत्तराखंड में स्थित इस अत्यंत चमत्कारी इस शक्ति पीठ ( पूर्णागिरी/Purnagiri Mandir ) के संबंध में कहा जाता है कि अभी कुछ वर्षों पूर्व तक ही यहां शाम को रूकने की मनाही थी, वहीं शाम के समय यहां से आने वाला सुमधुर संगीत बहुत कम व उन चंद सिद्ध लोगों को ही सुनाई देता था जो यहां शाम के समय मौजूद रह जाते थे, लेकिन यह संगीत कहां से आता है इसकी जानकारी न होने से उनके लिए भी इस संगीत के स्थान तक पहुंचा मुमकिन नहीं था। वहीं शाम के समय यहां लोगों को रुकने नहीं देने का कारण यह था कि शाम होते ही यहां बाघ यानि देवी मां का वाहन आ जाता था।

बाघ भी आता था यहां
बुजुर्गों के अनुसार कुछ वर्ष पहले तक यहां शाम होते ही एक बाघ (माता की सवारी) यहां आ जाता था, जो माता के मंदिर के पास ही सुबह तक रूकता। इस कारण पूर्व में लोग शाम होते ही यह स्थान खाली कर देते। अभी भी रात में यहां जाना वर्जित माना जाता है। मान्यता है कि यहां रात के समय केवल देवता ही आते हैं।


पूर्णागिरी माता का मंदिर Purnagiri Mandir : अत्यंत चमत्कारी व सिद्ध…
दरअसल पूर्णागिरी का मंदिर अन्नपूर्णा शिखर पर 5500 फीट की ऊंचाई पर है। दरअसल दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी माता सती की जली हुई देह लेकर जब भगवान शिव शंकर आकाश में विचरण करने लगे भगवान विष्णु ने शिव शंकर के ताण्डव नृत्य को देखकर उन्हें शान्त करने की दृष्टि से सती के शरीर के अंग पृथक-पृथक कर दिए। कहा जाता है कि तभी माता सती की नाभि का भाग यहां पर तब गिरा था।

सती का नाभि: जहां-जहां पर सती के अंग गिरे वहां पर शक्तिपीठ स्थापित हो गए। पूर्णागिरी में सती का नाभि अंग गिरा वहां पर देवी की नाभि के दर्शन व पूजा अर्चना की जाती है।

इस शक्तिपीठ की यात्रा करने हर साल आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहां आते हैं। यह स्थान नैनीताल जनपद के पड़ोस में और चंपावत जनपद के टनकपुर से मात्र 17 किलोमीटर की दूरी पर है। “मां वैष्णो देवी” जम्मू के दरबार की तरह ही पूर्णागिरी के दरबार में भी हर साल लाखों की संख्या में लोग आते हैं।

नवरात्रियों पर आते हैं लाखों भक्त
यहां हर नवरात्रि पर भक्तों के आने का सिलसिला जारी रहता है। सामान्यत: केवल नवरात्र में ही नहीं बल्कि हर मौसम में भक्त यहां आते हैं। वहीं चैत्र की नवरात्रियों की तरह ही शरद ॠतु की नवरात्रियों में भी कई भक्त यहां आते है, लेकिन वीरान रास्ता व इसमें पडऩे वाले छोटे-छोटे गधेरे मार्ग की जगह-जगह दुरुह बना देते हैं।

नवरात्रियों में लाखों की संख्या में भक्त अपनी मनोकामना लेकर यहां आते हैं। अपूर्व भीड़ के कारण यहाँ दर्शनार्थियों का ऐसा तांता लगता है कि दर्शन करने के लिए भी लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

मुश्किलों से भरा खतरनाक रास्ता…
इस मंदिर तक पहुंचने का रास्ता अत्यन्त दुरुह और खतरनाक है। क्षणिक लापरवाही आपको अनन्त गहराई में धकेलकर जीवन समाप्त कर सकती है। वहीं नीचे काली नदी का कल-कल करता पानी स्थान की दुरुहता से हृदय में कम्पन पैदा कर देता है।

टुन्नास: इन्द्र की तपस्या का स्थल…
मंदिर के रास्ते में टुन्नास नामक स्थान पड़ता है, कहा जाता है कि यहीं पर देवराज इन्द्र ने तपस्या की थी। यहां ऊंची चोटी पर गाढ़े गए त्रिशुल आदि ही शक्ति के उस स्थान को इंगित करते हैं जहां सती का नाभि प्रवेश गिरा था।

पूर्णगिरी क्षेत्र की महिमा और उसके सौन्दर्य से एटकिन्सन भी बहुत अधिक प्रभावित था उसने लिखा है “पूर्णागिरी के मनोरम दृष्यों की विविधता एवं प्राकृतिक सौन्दर्य की महिमा अवर्णनीय है, प्रकृति ने जिस सर्वव्यापी वन सम्पदा के अधिर्वक्य से इस पर्वत शिखर पर स्वयं को अभिव्यक्त किया है, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका का कोई भी क्षेत्र शायद ही इसकी समता कर सके, किन्तु केवल मान्यता व आस्था के बल पर ही लोग इस दुर्गम घने जंगल में अपना पथ आलोकित कर सके हैं।”


ऐसे समझें मां पूर्णागिरि का महातम्य…
चीन, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं से घिरे सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण चंपावत जिले के प्रवेश द्वार टनकपुर से 19 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ मां भगवती की 108 सिद्धपीठों में से एक है।

तीन ओर से वनाच्छादित पर्वत शिखरों एवं प्रकृति की मनोहारी छटा के बीच कल-कल करती सात धाराओं वाली शारदा नदी के तट पर बसा टनकपुर नगर मां पूर्णागिरि के दरबार में आने वाले यात्रियों का मुख्य पडाव है।

इस शक्तिपीठ में पूजा के लिए वर्ष-भर यात्री आते-जाते रहते हैं किंतु चैत्र मास की नवरात्र में यहां मां के दर्शन का इसका विशेष महत्व बढ जाता है। मां पूर्णागिरि का शैल शिखर अनेक पौराणिक गाथाओं को अपने अतीत में समेटे हुए है।

पौराणिक गाथाओं और शिव पुराण रुद्र संहिता के अनुसार मां सती का नाभि अंग अन्नपूर्णा शिखर पर गिरा जो पूर्णागिरि के नाम से विख्यात् हुआ व देश की चारों दिशाओं में स्थित मल्लिका गिरि,कालिका गिरि,हमला गिरि व पूर्णागिरि में से इस पावन स्थल पूर्णागिरि को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ।

देवी भागवत और स्कंद पुराण तथा चूणामणिज्ञानाणव आदि ग्रंथों में इस प्राचीन सिद्धपीठ का भी वर्णन है, जहां एक चकोर इस सिद्ध पीठ की तीन बार परिक्रमा कर राज सिंहासन पर बैठा। यहां छोटे बच्चों का मुंडन कराना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।

माता के बारे में कई गाथाएं और किन्दवंतिया प्रचलित है। कुछ लोगों की मान्यता है माता पूर्णागिरी का दरबार विश्व के 51 शक्ति पीठों में एक है अत: इस दरबार का अपना अलग महत्व है, तभी मांगी की जाने वाली मनौती अधूरी नहीं जाती। कुछ लोग बताते हैं पूर्णागिरी का इतिहास जानने से कई रहस्यमय तथ्यों की जानकारी मिलती है।

नाभि प्रदेश में नहीं काटे जाते वृक्ष
यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है, नेपाल इसके बगल में है। जिस चोटी पर सती का नाभि प्रदेश गिरा था उस क्षेत्र के वृक्ष नहीं काटे जाते। टनकपुर के बाद ठुलीगाढ़ तक बस से तथा उसके बाद घासी की चढ़ाई चढऩे के उपरान्त ही दर्शनार्थी यहां पहुंचते हैं।

ऐसे समझें यहां की कथा
इस देवी दरबार की गणना भारत की शक्तिपीठों में की जाती है। शिवपुराण में रूद्र संहिता के अनुसार दश प्रजापति की कन्या सती का विवाह भगवान शिव के साथ किया गया था। एक समय दक्ष प्रजापति द्वारा यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें समस्त देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया, परन्तु शिव शंकर का अपमान करने की दृष्टि से उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया।

सती द्वारा अपने पति भगवान शिव शंकर का अपमान सहन न होने के कारण अपनी देह की आहुति यज्ञ मण्डप में कर दी गई। सती की जली हुई देह लेकर भगवान शिव शंकर आकाश में विचरण करने लगे भगवान विष्णु ने शिव शंकर के ताण्डव नृत्य को देखकर उन्हें शान्त करने की दृष्टि से सती के शरीर के अंग पृथक-पृथक कर दिए।

ऐसे पहुंचे माता पूर्णागिरी के दरबार…
पूर्णागिरी मैया का यह धाम टनकपुर (उत्तरांचल) में ही स्थित है। यहां पहुंचने के लिए टनकपुर नजदीक का रेलवे स्टेशन है। इसके अलावा बरेली से टनकपुर के लिए तमाम बसें उपलब्ध रहती हैं।

टनकपुर टेक्सी स्टैंड से पूर्णागिरी धाम के लिए दिन भर टैक्सी, बसों की सेवा उपलब्ध रहती है। टनकपुर से पूर्णागिरी धाम की दूरी 22 किलोमीटर है।

शक्ति पीठ में दर्शनार्थ आने वाले यात्रियों की संख्या वर्ष भर में 25 लाख से अधिक होती है। यहां आने के लिये आप सड़क या रेल के द्वारा पहुंच सकते है। वायु मार्ग से आने के लिए यहां का निकटतम हवाई अडड़ा पन्तनगर है। यहाँ सर्दी के मौसम में गरम कपड़े जरूरी हैं और तो और ग्रीष्म ऋतु मे हल्के ऊनी कपडों की जरूरत पड़ सकती है।

देवी शक्ति पीठ: जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां हुआ शक्तिपीठों का निर्माण – Story of Devi Shakti peeth Construction …

शक्ति पीठों के संबंध में मान्यता है कि जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां हुआ शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। दरअसल देवी पुराण के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया।

माता सती को नारद से यह बात पता चली की उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है। उन्होंने शिवजी के मना करने पर भी जि़द की और अपने पिता के यहां यज्ञ में सम्मिलत होने के लिए हरिद्वार चली गई। वहां जाने पर जब उन्हें पता चला कि यज्ञ में शिवजी को छोड़कर सारे देवताओं को आमंत्रित किया गया है।

तब उन्होंने अपने पिता से शिवजी को न बुलाने का कारण पूछा तो दक्ष ने शिवजी के बारे में अपमानजनक बातें कही। वे बातें माता सती से सहन नहीं हुई और उन्होंने अग्रिकुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहूति दे दी। जब ये समाचार शिवजी तक पहुंचा तो वे बहुत क्रोधित हुए उनका तीसरा नेत्र खुल गया। वीरभद्र ने उनके कहने पर दक्ष का सिर काट दिया।

शिव को इस वियोग से निकालने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती माता के देह को कई हिस्सों में विभाजित कर दिया। कहा जाता है कि जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों का निर्माण किया गया। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है।

वहीं, देवी भागवत में 108 देवी गीता में 72 व तंत्रचूड़ामणि में 52 शक्ति पीठ बताए गए हैं। विभाजन के बाद कुछ शक्ति पीठ दूसरे देशों में चले गए हैं।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो