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अयोध्या के श्रीराम ओरक्षा में हैं विराजमान?

locationभोपालPublished: Nov 09, 2019 09:34:08 am

Submitted by:

Devendra Kashyap

सुप्रीम कोर्ट आज ( शनिवार ) अयोध्या विवाद पर फैसला सुनायेगा।

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अयोध्या और ओरछा का गहरा नाता है। एक तरफ जहां अयोध्या में रामलला की बाल लीलाओं की जीवंत स्मृतियां है तो वहीं ओरछा में श्री राम राजा के रूप में विराजते हैं। चार पहर की आरती में राजसी वैभव के साथ उन्हें पहरे पर खड़े सिपाही सशस्त्र सलामी देते हैं।

राम जन्म भूमि की असली मूर्ति ओरछा के रामराजा मंदिर में विराजमान तो नहीं?

जब-जब अयोध्या के राम सुर्खियों में आए, तब-तब ओरछा के राजाराम की चर्चा में आए। 1989 की कार सेवा के दौरान की बात हो या फिर अयोध्या मसले पर आने वाले फैसले की, हर बार एक ही सवाल सुर्खियां बनता है कि अयोध्या जन्म भूमि मंदिर की प्रतिमा ही ओरछा रामराजा मंदिर में विराजमान है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, ओरछा के शासक मधुकरशाह कृष्ण भक्त थे और उनकी महारानी कुंवर गणेश, राम उपासक। एक बार मधुकर शाह ने रानी को वृंदावन जाने का प्रस्ताव दिया, इस पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार करते हुए अयोध्या जाने की हठ करने लगी।

इसी दौरान राजा ने रानी पर व्यंग्य किया कि अगर तुम्हारे राम सच में हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ। आराध्य पर किए गए व्यंगय से रानी को ठेस पहुंची। उसके बाद उन्होंने ठान लिया कि भगवान राम को वह ओरछा लाकर ही रहेंगी और अयोध्या रवाना हो गईं।

अयोध्या में 21 दिन तपस्या के बाद भी जब श्री राम प्रकट नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी। कहा जाता है कि महारानी की भक्ति को देखकर ही भगवान श्री राम नदी के जल में ही उनकी गोद मे आ गए। इसके बाद महारानी ने जब भगवान श्री राम से अयोध्या से ओरछा चलने का आग्रह किया तो उन्होंने तीन शर्तें रख दीं।

पहली शर्त- मैं यहां से जाकर जिस जगह बैठ जाऊंगा, वहां से नहीं उठूंगा।
दूसरी शर्त- ओरछा के राजा के रूप विराजित होने के बाद किसी दूसरे की सत्ता नहीं रहेगी।
तीसरी शर्त- खुद को बाल रूप में पैदल एक विशेष पुष्य नक्षत्र में साधु संतों को साथ ले जाने की की थी।

महारानी के द्वारा शर्तें मानने के बाद रामराजा ओरछा आ गए। तब से भगवान राम यहां राजा के रूप में विराजमान हैं।

वहीं, इतिहासकारों की माने तो उस वक्त भारत में मंदिर और मूर्तियों को सुरक्षित बचाना मुश्किल था। विदेशी आक्रमणकारियों से बचाने के लिए अयोध्या के संतों ने जन्मभूमि में विराजमान श्रीराम के विग्रह को जल समाधि देकर दबा दिया था।

इतिहासकार बताते हैं कि 16वीं शताब्दी में ओरछा के शासक मधुकर शाह एकमात्र ऐसे हिंदू राजा थे, जो अपने धर्म के लिए अकबर के दरबार में बगावत कर चुके थे। दरअसल, अकबर के दरबार में इस बात पर पाबंदी लगाई गई थी कि कोई भी राजा शाही दरबार में तिलक लगाकर नहीं आ सकता तो मधुकर शाह ने भरे दरबार में इसका विरोध किया, तब अकबर को अपना फरमान वापस लेना पड़ा था।

इतिहासकारों के अनुसार, शायद अयोध्या के संतों को इस बात का भरोसा था कि मधुकर शाह की हिंदुत्ववादी सोच के बीच राम जन्मभूमि का श्रीराम का यह विग्रह ओरछा में पूरी तरह सुरक्षित रहेगा। शायद इसलिए अयोध्या के संतों ने महारानी कुंवर गणेश के साथ मिलकर श्रीराम के विग्रह को अयोध्या से ओरछा लाई।

रसोई घर में विराजमान हैं राजाराम

इतिहासकार बताते हैं कि रामराजा के लिए ओरछा के मंदिर का निर्माण कराया गया था, पर बाद में उन्हें मंदिर में विराजमान नहीं किया गया। इसका कारण सुरक्षा को ही माना जाता है।

दरअसल, रजवाड़ों की महिलाएं जिस रसोई में रहती हैं, उससे अधिक सुरक्षित कोई और जगह हो ही नहीं सकती। इसलिए मन्दिर में विराजमान न करके उन्हें रसोई घर में विराजमान कराया गया।


यही कारण है कि जब भी भगवान राम और अयोध्या की बात चलती है तो ओरक्षा का भी नाम आता है। क्योंकि हर कोई के मन में एक ही सवाल उठता है कि क्या ओरक्षा में विराजमान राम अयोध्या से आये थे? क्या श्रीराम का असली विग्रह यही है?
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