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दिल्ली चुनाव में हार का असर, अब भाजपा पर प. बंगाल की रणनीति बनाने का प्रेशर

दिल्ली हार के बाद पश्चिम बंगाल में रणनीति को लेकर पशोपेश में भाजपा।
इस वर्ष बिहार में और अगले साल पश्चिम बंगाल में होने हैं चुनाव।
लोकसभा और विधानसभा के लिए अलग रणनीति अपनाने की मिल रही सीख।

नई दिल्लीFeb 14, 2020 / 07:36 pm

अमित कुमार बाजपेयी

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नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद अब बिहार और पश्चिम बंगाल के चुनावों पर ध्यान केंद्रित कर रही है। बिहार में विधानसभा चुनाव इसी वर्ष अक्टूबर माह में होने हैं, वहीं बंगाल में 2021 में विधानसभा चुनाव होगा। इसी के मद्देनजर भाजपा दोनों ही प्रदेशों में चुनाव की तैयारियों में जुट गई है।

पश्चिम बंगाल में रणनीति को लेकर भाजपा बंटी हुई नजर आ रही है। कुछ पार्टी नेताओं का मानना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के मुद्दे पर दिल्ली चुनाव में नुकसान से सबक लेते हुए भाजपा को चाहिए कि राज्य में केंद्र की योजनाओं के आधार पर चुनावी बिसात बिछाए, जबकि एक धड़े का मानना है कि पार्टी को अपना आक्रामक रुख नहीं छोड़ना चाहिए और पुरानी नीतियों के आधार पर ही चुनाव में उतरना चाहिए।

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पश्चिम बंगाल इकाई के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, “दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) सुशासन के मुद्दे पर उतरी और उसने 62 सीटें जीतकर तीसरी बार सत्ता प्राप्त की। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 18 और दिल्ली की सभी सात सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके नौ महीने बाद दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में नतीजे बिल्कुल अलग आए। इसलिए हम इसे हल्के में नहीं ले सकते हैं। बंगाल में हमने 18 लोकसभा सीटें जीती थीं, जरूरी नहीं कि हम विधानसभा में भी इतनी ही सीटें जीतें। हमें अपनी रणनीति बदलनी होगी। विधानसभा चुनाव बिल्कुल अलग होते हैं, इसलिए हमें उसी हिसाब से रणनीति बनानी होगी। यह जरूरी नहीं है कि जिस रणनीति के सहारे लोकसभा चुनाव लड़े गए, वही विधानसभा में भी कारगर सिद्ध हो।”

इस भाजपा नेता ने आगे कहा, “पश्चिम बंगाल चुनाव में हमें सीएए लागू करने की वजह बतानी चाहिए। राज्य के लिए एनआरसी क्यों जरूरी है, इस पर भी जोर देने की आवश्यकता है। हमें यहां अगर सत्ता में आना है तो विकल्प के तौर पर दूसरे मुद्दों को भी साथ लेकर चलना होगा। खासतौर पर सुशासन के मॉडल को।”

उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल की ममता सरकार राज्य में नागरिकता संशोधन कानून को लागू नहीं कर रही है और न ही घुसपैठियों को बाहर कर रही है। जबकि भाजपा लगातार इसे लागू करने के लिए दबाव बना रही है।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष के करीबी विष्णुपुर से सांसद सौमित्र खान की राय इससे बिल्कुल अलग है। उनके अनुसार, पश्चिम बंगाल में पार्टी की रणनीति में बदलाव की जरूरत नहीं, क्योंकि इसी आक्रामक राजनीति के दम पर ही पार्टी को सकारात्मक नतीजे मिले। तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियों से मुकाबला करने के लिए थोड़ी आक्रामकता जरूरी है।

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सौमित्र खान ने कहा, “बंगाल में लोकतंत्र नहीं है, यहां हर रोज हत्याएं होती हैं। भाजपा कायकर्ताओं को मारा जाता है। इस प्रदेश में एनआरसी लागू किया जाना जरूरी है, नहीं तो यह प्रदेश भी बांग्लादेश बन जाएगा। दिल्ली की राजनीतिक स्थिति बिलकुल अलग है। लिहाजा दिल्ली की तुलना पश्चिम बंगाल से करना ठीक नहीं है। “

सांसद खान ने कहा, “लोकसभा चुनाव के दौरान सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों पर हमने जो रुख अपनाया उसका फायदा पार्टी को मिला। अगर हम अपनी रणनीति बदलते हैं, तो जनता और पार्टी के कार्यकर्ताओं में ऐसा संदेश जाएगा कि हम पीछे हट रहे हैं।”

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