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लोकसभा चुनाव: इन 5 कारणों से 2014 से अलग है 19 का मुकाबला, बदल सकता है देश का राजनीतिक समीकरण

साल 2014 से अलग है इस बार होने वाला मुकाबला पांच मुख्य कारक हैं जिनका पड़ सकता है असर गुरुवार को पहले चरण का मतदान

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Shweta Singh

Apr 11, 2019

2014 vs 2019

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 ( Loksabha elections 2019 ) के पहले चरण के लिए मतदान जारी है। गुरुवार को देशभर की 91 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हो रही है। इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ महत्वपूर्ण सीटें भी शामिल हैं। चुनाव वैसे तो लोकतंत्र की एक खास प्रक्रिया है, जो एक तय अंतराल के बाद दोहराई जाती है। हालांकि, इस बार के चुनाव बीते कई बार से और खासकर 2014 से कई मायनों में अलग है। इस रिपोर्ट में हम यूपी समेत देशभर में उन्हीं कारकों ( Factors) की बात करेंंगे।

यूपी के मुजफ्फरनगर का दंगा

साल 2014 के चुनाव से कुछ ही समय पहले यूपी के मुजफ्फरनगर में भारी दंगे हुए थे। इस घटना में पांच दर्जन से ज्यादा जानें गईं। हजारों लोग महीनोंं तक अपने घरों से दूर रहने को मजबूर हुए। इसका असर पूरे राज्य के चुनाव पर हुआ। भाजपा गठबंधन ने राज्य में ऐतिहासिक जीत दर्ज की। भाजपा को 80 में 73 सीटों पर जीत मिली थी। इस साल दंगों की टीस दोनों तरफ अब भी बरकरार है, लेकिन इन पांच सालों में तनाव का स्तर काफी घट चुका है। एक स्थानीय व्यक्ति ने हमारे सहयोगी से बातचीत करते हुए बताया कि, 'सभी लोग पिछली सारी बातें भूल जाना चाहते हैं। लोग फिर से काफी हद तक वैसे ही एक-दूसरे समुदाय पर
निर्भर हैं।'

‘लाठी, हाथी 786’

वहीं, जिन जाट और मुसलमानों की तलवारें सबसे ज्यादा टकराई थीं, इस बार इन दोनों समुदायों के साथ नए चुुनावी समीकरण बनाने की कोशिश भी हो रही है। अजीत सिंह और उनके बेटे की अगुवाई में रालोद ( RLD ) ने इस बार ‘लाठी, हाथी 786’ का नया नारा गढ़ा गया है। इसमें सपा और बसपा यादव, जाटव और मुसलमानों की एकता की बात कर रही हैं। साथ ही रालोद इसमें जाट वर्ग को भी जोड़ने में जुटा है, जो पिछली बार भाजपा के साथ था।

विपक्ष की एकजुटता, भाजपा को चुनौती?

इसी के साथ ही भाजपा के लिए जो सबसे बड़ी चुनौती विपक्ष की एकजुटता है। वो पार्टियां जो पिछले चुनाव में एक-दूसरे की विरोधी थीं, वो इस बार एक-दूसरे को समर्थन कर रही हैं। यूपी में इस बार SP और BSP का गठबंधन है, जिसको RLD का समर्थन मिला है। पिछले चुनाव में इन दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था और इन्हें करारी हार मिली थी।

डबल एंटी इनकंबेंसी

इसके अलावा 2014 में जहां भाजपा को अखिलेश सरकार के एंटी इनकंबेंसी (विरोधी लहर) का फायदा मिला था। वहीं इस बार पार्टी को खुद डबल एंटी इनकंबेंसी झेलनी पड़ रही है, क्योंकि न सिर्फ राज्य में बल्कि केंद्र में भी भाजपा की अगुवाई वाली सरकार है। वैसे भी इस राज्य में 80 लोकसभा सीटें हैं, जो देश की राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभाती है। ऐसे में यूपी में मतदाताओं का फैसला, देश के समीकरण को निर्धारित करती है।

देशभर में यूपी जैसा हाल

देशभर में कमोबेश यूपी की तरह हाल है। भाजपा के सामने इस बार ऐसी चुनौतियां है जो पिछली बार नहीं थीं। देशभर के कई प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर मैदान में हैं। इसके साथ रफाल डील जैसे मुद्दे पर पहले चरण के मतदान से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट का केस पर दोबारा सुनवाई का फैसला भी चुनौती खड़ी कर सकता है।