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सत्ता के सिंकदर: देश की दो ऐसी लोकसभा सीटें, जिस पार्टी की हुई जीत केन्द्र में बनी उसी की सरकार

दो लोकसभा सीटों का अनूठा इतिहास वलसाड और पश्चिमी दिल्ली से जीतने वाले उम्मीदवार पार्टी के लिए 'लकी चार्म' इन दोनों सीटों से जीतने वाले उम्मीदवार की पार्टी ही केन्द्र में बनाती है सरकार

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सत्ता के सिकंदर

नई दिल्ली। भारतीय लोकतंत्र के 17वें लोकसभा चुनाव के लिए जंग जारी है। इस बार का चुनाव कई मायनों में खास होता जा रहा है। कई राजनीतिक रिकॉर्ड भी इस चुनाव में बन रहे हैं। साथ ही कई उतार-चढ़ाव भी देखने को मिल रहे हैं। लेकिन, राजनीति के इतिहास में एक ऐसा रिकॉर्ड भी है या यूं कहें कि ऐसी परंपरा है जो संसद की 'भाग्य विधाता' कही जा सकती है। यह बात सुनकर आपको भले ही अजीब लगा रहा हो, लेकिन सच है। लोकतंत्र में दो ऐसी लोकसभा सीटें हैं, जिसे सत्ता की 'सिकंदर' कहा जाता है। इस सीट से जिस भी पार्टी के उम्मीदवार ने चुनाव में जीत हासिल की , केन्द्र में उसी की सरकार बनीं।

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सबसे पहले उन दो लोकसभा सीटों के बारे में जानें

1.वलसाड लोकसभा सीट, गुजरात
2. पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट, दिल्ली

वरिष्ठ पत्रकार प्रणव राय ने अपनी किताब द वर्डिक्ट, डीकोडिंग इंडिया इलेक्शन (The Verdict: Decoding India's Elections) में भारतीय राजनीति को लेकर कई जानकारियां साझा की हैं। वहीं, वलसाड लोकसभा और पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट को लेकर उन्होंने बताया है कि इन सीटों के परिणाम ने केन्द्र की सत्ता तय की है। मतलब, जिस भी पार्टी का उम्मीदवार यहां से चुनाव जीता सरकार उसी की बनी है। वलसाड सीट का अस्तित्व 1957 से है। 1957 से लेकर 1967 तक यहां कांग्रेस जीती। इसके बाद मोरारजी देसाई वाली कांग्रेस ने 1971 में वलसाड सीट से जीत हासिल की। 1977 में इस सीट पर जनता पार्टी का कब्जा हुआ। 1980 से लेकर 1984 तक इंदिरा गांदी वाली कांग्रेस पार्टी ने यहां जीत हासिल की। 1989 में यह सीट जनता दल के खाते में चली गई। लेकिन, 1991 में यह सीट फिर कांग्रेस के खाते में चली गई। 1996 से लेकर 1999 तक इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा। 2004 और 2009 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर इस सीट पर वापसी की और 2014 में यह सीट फिर भाजपा के खाते में चली गई।

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अब टेबल से समझिए इस सीट का गणित









लोकसभा चुनाव


सीट- वलसाड, गुजरात
































































































सालपार्टीजीतने वाला उम्मीदवारकेन्द्र में सरकार
1957कांग्रेसनानू पटेलकांग्रेस
1962कांग्रेसनानू पटेलकांग्रेस
1967कांग्रेसनानू पटेलकांग्रेस
1977जनता पार्टीनानू पटेलजनता पार्टी
1980कांग्रेसउत्तम पटेलकांग्रेस
1984कांग्रेसउत्तम पटेलकांग्रेस
1989जनता दलअर्जुन पटेलजनता दल
1991कांग्रेसउत्तम पटेलकांग्रेस
1996भाजपामणी चौधरीभाजपा
1998भाजपामणी चौधरीभाजपा
1999भाजपामणी चौधरीभाजपा
2004कांग्रेसकिशन पटेलकांग्रेस
2009कांग्रेसकिशन पटेलकांग्रेस
2014भाजपाकेसी पटेलभाजपा

इस सीट पर ज्यादातर उम्मीदवारों ने हैट्रिक भी लगाई, लेकिन 2014 में यह परंपरा टूट गई।

अब जरा नजर डालते हैं दिल्ली की लोकसभा सीट पश्चिमी दिल्ली पर

वलसाड सीट जैसा ट्रेंड पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट से भी जुड़ा है। पश्चिमी दिल्ली सीट साल 2008 में डिलिमिटेशन के तहत बनी थी। इस सीट को बाहरी दिल्ली लोकसभा सीट और दक्षिणी दिल्ली लोकसभा सीट के हिस्सों को मिलाकर बनाया गया था। बाहरी दिल्ली सीट जब तक अस्तित्व में थी, तब तक हर लोकसभा चुनाव में वहां से जीतने वाली पार्टी की केंद्र में सरकार दिखी। इसके बाद जब इस सीट के इलाकों का पश्चिमी दिल्ली सीट में विलय हो गया, तब भी पुराना ट्रेंड नहीं टूटा। पश्चिमी दिल्ली सीट पर अब तक दो बार चुनाव हो चुके हैं, दोनों बार जिस पार्टी के उम्मीदवार ने जीत हासिल की केन्द्र में उसी की सरकार बनी।

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लोकसभा चुनाव


सीट- पश्चिमी दिल्ली, दिल्ली
























सालपार्टीजीतने वाला उम्मीदवारकेन्द्र में सरकार
2009कांग्रेसमहाबल मिश्राकांग्रेस
2014भाजपापरवेश साहिब सिंह वर्माभाजपा

अब देखना यह है कि 2019 लोकसभा चुनाव परिणाम में इतिहास अपने आपको दोहराता है या फिर परिणाम कुछ और होगा।