
370 पर हमेशा चुप रहने वाली भाजपा इसे खत्म करने का उठाएगी कदम?
नई दिल्ली। वर्ष 2014 में पहले लोकसभा और उसके बाद जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव में भाजपा ने धारा 370 को खत्म करने का मुद्दा जोरदार तरीके से उछाला था। चुनावी मौसम में भाजपा हमेशा से इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उछालती है और सत्ता में आते ही इसे भूल जाती है। भाजपा का यही रुख गठबंधन सरकार में शामिल होने के बाद भी पिछले तीन सालों से रहा। लेकिन जिस अंदाज में भाजपा ने सबको चौकाते हुए पीडीपी सरकार से समर्थन वापस लिया वो सबके लिए चौकाने वाला रहा। तो क्या भाजपा पीडीपी से संबंध तोड़ने के बाद जम्मू और कश्मीर से धारा 370 को हटाने का काम करेगी? यह बात आज के दिन में इसलिए प्रासंगिक है कि क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि अगर बीजेपी सत्ता में आती है तो वह जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली संविधान की धारा 370 को खत्म कर देगी।
संसद में गृह राज्यमंत्री ने किया था मना
आपको बता दें कि सत्ता में आने के बाद भाजपा ने हमेशा की तरह इस बार भी जम्मू और कश्मीर में विशेष दर्जे को खत्म करने को लेकर नरम रुख अपना लिया था। एक लिखित प्रश्न का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर ने कहा कि सरकार धारा 370 को हटाने के बारे में अभी कोई निर्णय नहीं ले रही है। न ही ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन है। यह सवाल सरकार से भाजपा सांसद अश्वनी कुमार ने एक लिखित सवाल के जरिए पूछा था1 उन्होंने पूछा कि क्या सरकार संविधान से धारा 370 को हटाने के बारे में विचार कर रही है या नहीं। इसी तरह 2014 में तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय द्वारा पूछे गए सवाल के लिखित जवाब में गृह राज्य मंत्री ने 370 को हटाने से इनकार किया था।
बदले माहौल में कुछ भी संभव
अब बदले राजनीतिक माहौल में इस बात की संभावना जताई जा रही है कि भाजपा 370 को हटाने का प्रयास कर सकती है। ऐसा इसलिए कि प्रदेश राज्यपाल शासन है और केंद्र में भाजपा की सरकार है। इस बात में दम इसलिए भी है कि पार्टी हाईकमान को लग गया है कि केवल विकास के मुद्दे पर 2019 का चुनाव जीतना संभव नहीं है। ऐसे में 370 के मुद्दे पर वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो पार्टी को इसका सीधा लाभ मिलेगा। चाहे पार्लियामेंट में यह विधेयक वर्तमान रूप में पास न भी हो।
क्या है अनुच्छेद 370?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रबंध के जरिए जम्मू और कश्मीर को एक विशेष स्वायत्ता वाला राज्य का दर्जा देता है। भारतीय संविधान के भाग 21 के तहत, जम्मू और कश्मीर को यह अस्थायी और विशेष प्रबंध वाले राज्य का दर्जा हासिल होता है। यही कारण है कि भारत के सभी राज्यों में लागू होने वाले कानून भी इस राज्य में लागू नहीं होते हैं। मिसाल के तौर पर 1965 तक जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री हुआ करता था। संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के अनुसार संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए। जम्मू और कश्मीर के लिए यह प्रबंध शेख अब्दुल्ला ने वर्ष 1947 में किया था। शेख अब्दुल्ला को राज्य का प्रधानमंत्री महाराज हरि सिंह और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नियुक्त किया था। तब शेख अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को लेकर यह दलील दी थी कि संविधान में इसका प्रबंध अस्थायी रूप में न किया जाए। उन्होंने राज्य के लिए कभी न टूटने वाली लोहे की तरह स्वायत्ता की मांग की थी, जिसे केंद्र ने ठुकरा दिया था।
Published on:
20 Jun 2018 03:09 pm
बड़ी खबरें
View Allराजनीति
ट्रेंडिंग
