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Prayagraj: 76 साल बाद माघ मेले का अदभुत संयोग, स्नान से मिलेगा विशेष पुण्य

तीर्थराज प्रयागराज के संगम की रेती पर इस बार माघ मेले में अद्भुत संयोग बन रहा है। माना जा रहा है कि जो लोग महाकुंभ में नहीं आ सके। ऐसे लोग इस माघ मेले में स्नान कर पुण्य के भागी बन सकते हैं।

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Magh mela: संगम की पावन रेती पर बिछ चुके तंबुओं के विशाल नगर में इस बार माघ मेला एक अनोखे और दुर्लभ आध्यात्मिक संयोग का साक्षी बनने जा रहा है। माना जा रहा है कि जिन लोगों को महाकुंभ 2025 में शामिल होने का अवसर नहीं मिला था, वे इस बार आगामी माघ मेले में आकर उसी पुण्यफल के भागी बन सकते हैं। बताया गया कि 75 वर्षों बाद ऐसा शुभ संयोग बन रहा है, जो माघ मेले को ‘मिनी कुंभ’ का रूप देने वाला है।

76वें वर्ष में बन रहा दुर्लभ सूर्य योग

जगदगुरु संतोष दास ‘सतुआ बाबा’ बताते हैं कि इस वर्ष अमावस्या और बसंत पंचमी दोनों दिन सूर्य का मकर राशि में प्रवेश उसी दिन पड़ रहा है। यह अद्भुत योग 76वें वर्ष में पहली बार बन रहा है, जिससे इस बार माघ मेला अत्यंत शुभ और फलदायी माना जा रहा है।
संतों में उत्साह चरम पर है, और कई प्रदेशों जैसे गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार सहित नेपाल एवं अन्य देशों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आने वाले हैं।

माघ मेला: परंपरा, आस्था और मुहूर्त का संगम

सतुआ बाबा कहते हैं कि माघ मेला अनादि काल से मुहूर्त पर ही लगता है। सूर्य के मकर में प्रवेश करते ही माघ का शुभ काल शुरू होता है। इस बार सूर्य उत्तरायण भी रविवार को होंगे, जो दैविक दृष्टि से दुर्लभ संयोग है। थारू, घुमंतु और वनटागियां जैसे समुदाय भी बड़ी संख्या में भागीदारी के लिए आ सकते हैं।

संगम स्नान और दान का बढ़ा महत्व

दुर्लभ सूर्य योग के कारण त्रिवेणी में स्नान और दान को इस बार विशेष फलदायी माना गया है। अनुमान है कि श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में बढ़ेगी। साधु-संतों के शिविरों में रहने, भंडारे और व्यवस्थाओं को लेकर तैयारियां तेज हैं। उधर, योगी सरकार भी इस मेला को महाकुंभ के बाद मिनी कुंभ की तरह भव्य बनाने में जुटी है। मुख्यमंत्री दो बार अधिकारियों के साथ समीक्षा कर चुके हैं। अमावस्या पर सभी अखाड़ों के महामंडलेश्वर पांटून पुल नंबर 2 से स्नान के लिए प्रस्थान करेंगे।

माघ मेले में ‘भगवाकरण’ से साधु संतों में उत्साह

मेला क्षेत्र में इस बार पांटून पुलों को भगवा रंग से सजाया जा रहा है। साधु-संत इसे शुभ मानते हुए स्वागत कर रहे हैं। अखिल भारतीय दंडी संयासी परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पीठाधीश्वर स्वामी ब्रह्माश्रम महाराज कहते हैं, भगवा केवल सनातन का नहीं, सूर्य का भी उदयित रंग है। यह पवित्रता और ऊर्जा का प्रतीक है। इसलिए पांटूनों को भगवा रंग देना सर्वोत्तम निर्णय है।

साधु-संतों से भी अनुरोध किया गया है कि वे अपने शिविरों की बाउंड्री को भगवा रंग से सजाकर इस आध्यात्मिक परंपरा को और भव्यता दें।