
मजबूर मजदूरों की दुर्दशा पर सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग, सुप्रीम कोर्ट बार से पहल की अपील
प्रयागराज। कांस्टीट्यूशनल एंड सोशल रिफार्म (Constitutional and social reform )के राष्ट्रीय अध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता ए एन त्रिपाठी ने महानगरों से रोजी रोटी की तलाश में गए मजदूरों की कोरोना महामारी में सडक मार्ग से पैदल घर वापसी के दृश्य को राष्ट्रीय शर्म करार दिया है । उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (Supreme Court Bar Association )मजदूरों की सुरक्षा गारंटी के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court )से अपने फैसले पर पुनर्विचार की अर्जी दे और अनुच्छेद 142 के तहत इस राष्ट्रीय आपदा में केन्द्र सरकार (central government )को अपने वैधानिक दायित्व निभाने का निर्देश जारी कराये।
त्रिपाठी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने सड़क पर पैदल चल रहे मजदूरों को लेकर दाखिल याचिका पर हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए खारिज कर दी है। शायद कोर्ट में केन्द्र सरकार के दायित्व निभाने के कानून पेश नही किये गये। अगर कानून पेश किया गया होता तो सुप्रीम कोर्ट इस मामले में हस्तक्षेप अवश्य करती ।
हालाँकि कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने राज्य सरकार से मजदूरों की दुर्दशा पर जवाब मांगा है। वह भी जब राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि मजदूरों के आने जाने का खर्चा नहीं उठा सकती। त्रिपाठी का कहना है कि लॉकडाउन- 4 केंद्र सरकार ने राज्यों को निर्णय लेने का अधिकार दिया है । केन्द्र सरकार द्वारा निगरानी में छूट दी गई है। जिसके परिणाम स्वरूप राजनीति शुरू हो गयी है। महानगरों से मजदूर भारी संख्या में पलायन कर रहे हैं। राज्य सरकार उन्हें भोजन और रोजगार का आश्वासन देने मे नाकाम है। राज्य सरकारें मजदूरों को सुरक्षित उनके घरों को पहुंचाने के बजाय छींटाकसी की राजनीति मे जुटी हुई है। ऐसे में जरूरी हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट इस राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन में हो रही राजनीति पर हस्तक्षेप करें और बेहाल मजदूरों की सुध लेते हुए भारत सरकार को इनकी सुरक्षित वापसी सुनिश्चित कराने का दिशा निर्देश जारी करें।
त्रिपाठी का कहना है कि संविधान की 81वी लिस्ट मे इंटर- स्टेट -माइग्रेशन एवं इंटर- स्टेट -कोरेन्टाइन के मामले पर संसद को कानून बनाने का अधिकार है । इसलिए केंद्र का दायित्व है कि वह राष्ट्र व्यापी मुद्दे को लेकर अनुच्छेद 21 बी के तहत भारत क्षेत्र में कहीं भी रोजी रोटी कमाने की छूट के आधार पर गए मजदूरों को सुरक्षित उनके गंतव्य तक पहुंचाएं और उनके जीवन निर्वाह की व्यवस्था करे।
त्रिपाठी ने कहा है कि इंटर स्टेट लेबर एंप्लॉयमेंट एवं कंडीशन एक्ट 1979 के तहत प्रावधान है कि एक राज्य से दूसरे राज्य में गए श्रमिक का पंजीकरण किया जाना चाहिए। साथ ही जिन ठेकेदारों के यहां काम मिला है ,उनका भी व्योरा राज्य सरकार रखें। किन्तु इस कानून का पालन नही हो रहा है।महामारी एक्ट 1897 के तहत जिलाधिकारियों को प्राकृतिक आपदा के पीडितो की मदद के लिए विशेष अधिकार दिए गए हैं । डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 में राष्ट्रीय आपदा पर केंद्र सरकार को पीडितो की सहायता के लिए विशेष अधिकार दिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में इन कानूनों को रखा जाय।
त्रिपाठी ने सुझाव दिया है कि सडक पर पैदल आ रही मजदूरों की भीड की दुर्दशा को देखते हुए इस मामले में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन पहल करें और सुप्रीम कोर्ट से अनुच्छेद 142 के अंतर्गत केंद्र सरकार से दायित्व का पालन सुनिश्चित कराएं। ताकि विभिन्न राज्यों से महानगरों में गए श्रमिकों के पुनर्वास की व्यवस्था हो सके। मजदूरों के साथ देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके।
Published on:
25 May 2020 03:44 pm
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