रायपुर

छत्तीसगढ़ का वो वीर सपूत जिसका अंग्रेजों में था इतना खौफ, फांसी देने के बाद उनके शरीर को तोप से उड़ा दिया

Chhattisgarh freedom fighter and Jaistambh chowk : देश के लिए मर मिटने को तैयार आजादी के दीवानो की हमारे देश कभी कमी नहीं रही है। छत्तीसगढ़ में भी ऐसे सच्चे वीर सपूतों की कभी कमी नहीं रही। ऐसे ही भारत माँ के एक एक सपूत शहीद वीर नारायण सिंह (Shaheed Veer Narayan Singh) हैं

रायपुरAug 10, 2019 / 06:53 pm

Karunakant Chaubey

छत्तीसगढ़ का वो वीर सपूत जिसका अंग्रेजों में था इतना खौफ, फांसी देने के बाद उनके शरीर को तोप से उड़ा दिया

रायपुर Chhattisgarh freedom fighter and Jaistambh chowk : देश के लिए मर मिटने को तैयार आजादी के दीवानो की हमारे देश कभी कमी नहीं रही है। जब जब इस देश जो जरूरत पड़ी भारत माँ के सच्ची सपूतों ने देश के लिए अपना बलिदान दे दिया। छत्तीसगढ़ में भी ऐसे सच्चे वीर सपूतों की कभी कमी नहीं रही। ऐसे ही भारत माँ के एक एक सपूत शहीद वीर नारायण सिंह (Shaheed Veer Narayan Singh) हैं। जिन्हे देश का छत्तीसगढ़ का पहला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने का गौरव प्राप्त हैं।

नारायण सिंह से वीर नारायण कैसे बने

सत्रहवीं सदी में सोनाखान राज्य की स्थापना की गई थी। इनके पूर्वज सारंगढ़ के जमींदार के वशंज थे। सोनाखान का प्राचीन नाम सिंघगढ़ था।वर्तमान में यह इलाका बलौदा बजार इलाके में आता है। यही के युवराज थे शहीद नारायण सिंह। उनके पास एक घोड़ा था जो कि स्वामीभक्त था। वे घोड़े पर सवार होकर अपने रियासत का भ्रमण किया करत थे।

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एक बार युवराज को किसी व्यक्ति ने जानकारी दी कि सोनाखान क्षेत्र में एक नरभक्षी शेर कुछ दिनों से आतंक मचा रहा है जिसके चलते प्रजा भयभीत है। प्रजा की सेवा करने में तत्पर नारायण सिंह ने तत्काल तलवार हाथ में लिए नरभक्षी शेर की ओर दौड़ पड़े और कुछ ही पल में शेर को ढेर कर दिए। इस प्रकार से वीर नारायण सिंह ने शेर का काम तमाम कर भयभीत प्रजा को नि:शंक बनाया। उनकी इस बहादुरी से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें वीर की पदवी से सम्मानित किया। इस सम्मान के बाद से युवराज वीरनारायण सिंह बिंझवार के नाम से प्रसिध्द हुए।

छत्तीसगढ़ के पहले स्वतंत्र संग्राम सेनानी

सन् 1856 में अकाल के कारण जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी है जिसमें नारायण सिंह ने हजारों किसानों को साथ लेकर कसडोल के जमाखोरों के गोदामों पर धावा बोलकर सारे अनाज लूट लिए व दाने-दाने को तरस रहे अपने प्रजा में बांट दिए। इस घटना की शिकायत उस समय डिप्टी कमिश्नर इलियट से की गई। वीरनारायण सिंह ने शिकायत की भनक लगते हुए कुर्रूपाट डोंगरी को अपना आश्रय बना लिया। ज्ञातव्य है कि कुर्रूपाट गोड़, बिंझवार राजाओं के देवता हैं।


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अंतत: ब्रिटिश सरकार ने देवरी के जमींदार जो नारायण सिंह के बहनोई थे के सहयोग से छलपूर्वक देशद्रोही व लुटेरा का बेबुनियाद आरोप लगाकर उन्हें बंदी बना लिया। 10 दिसम्बर 1857 को रायपुर के चौराहे वर्तमान में जयस्तंभ चौक पर बांधकर वीरनारायण सिंह को फांसी दी गई। बाद में उनके शव को तोप से उड़ा दिया गया और इस तरह से भारत के एक सच्चे देशभक्त की जीवनलीला समाप्त हो गई। उल्लेखनीय है कि गोंडवाना के शेर कहे जाने वाले अमर शहीद वीरनारायण सिंह (Shaheed Veer Narayan Singh) बिंझवार को राज्य का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा प्राप्त है।

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इनके सम्मान में फिलहाल प्रदेश शासन के आदि जाति कल्याण विभाग ने उनकी स्मृति में पुरस्कार की स्थापना की है। इसके तहत राज्य के अनुसूचित जनजातियों में सामाजिक चेतना जागृत करने तथा उत्थान के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों तथा स्वैच्छिक संस्थाओं को दो लाख रुपए की नगद राशि व प्रशस्ति पत्र देने का प्रावधान है।
 
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