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छत्तीसगढ़ में कम से कम तीन मंत्री और 15 से 18 विधायक जीतने लायक नहीं, कटेगा टिकट

छत्तीसगढ़ विधानसभा में इस बार भाजपा अपने 15 से 18 विधायकों को चुनाव नहीं लड़ाएगी। टिकट कटने का यह खतरा विधायकों के साथ मंत्रियों के सिर पर भी मंडरा रहा है।

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कम से कम 3 मंत्रियों का कटेगा टिकट, 15 से 18 विधायकों की भी हो सकती है छुट्टी

मिथिलेश मिश्र/रायपुर. छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कम से कम 65 सीटों को जीतने का मिशन लेकर निकली भाजपा अपने 15 से 18 विधायकों को चुनाव नहीं लड़ाएगी। उनकी जगह पर नए लोगों को मौका मिलेगा। टिकट कटने का यह खतरा केवल विधायकों के सर पर नहीं मंडरा रहा है, बल्कि पार्टी अपने तीन मंत्रियों को भी टिकट देने से बचने की कोशिश में है।

बताया जा रहा है कि संगठन और निजी एजेंसियों से कराए गए सर्वेक्षणों में इन मंत्रियों का प्रदर्शन काफी निराशाजनक मिला है। उनके विधानसभा क्षेत्र के लोग ही उनसे खुश नहीं हैं। वहीं, भाजपा की प्रदेश कार्यसमितियों में मंत्रियों के प्रदर्शन को लेकर सवाल-जवाब हुए हैं। कुछ मंत्रियों के लिए कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी सामने आई है।

ऐसे में भाजपा के सामने सत्ता विरोधी लहर को मोडऩे के लिए प्रत्याशी बदलने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। बताया जा रहा है कि प्रदेश के 12 मंत्रियों के सर्वेक्षण में राजस्व मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय, कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, लोक निर्माण मंत्री राजेश मूणत, वाणिज्यिक कर मंत्री अमर अग्रवाल और स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर का प्रदर्शन ही ठीकठाक मिला है।

पिछली बार हारे थे पांच मंत्रीे

2013 के चुनाव में भाजपा ने 18 विधायकों का तो टिकट काटा, लेकिन सभी मंत्रियों को मैदान में उतारा गया था। दिसंबर में परिणाम आए तो पांच मंत्री चुनाव हार गए। उनमें गृहमंत्री ननकीराम कंवर, कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू, महिला एवं बाल विकास मंत्री लता उसेंडी, जल संसाधन मंत्री हेमचंद्र यादव और रामविचार नेताम का नाम शामिल है। तीसरी विधानसभा में स्पीकर रहे वर्तमान भाजपा प्रदेशाध्यक्ष धरमलाल कौशिक भी कांग्रेस के हाथों अपनी सीट गंवा बैठे थे।

पिछला चुनावी प्रदर्शन भी डालेगा असर
भाजपा के रणनीतिकारों को लगता है कि पिछले चुनाव में मतदाताओं के बीच प्रदर्शन भी टिकट वितरण में असर डालेगा। कई मंत्रियों के जीत का अंतर एक से तीन हजार वोटों तक का है।

भाजपा प्रदेश प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव ने कहा कि भाजपा में टिकट वितरण का अपना तरीका है। यहां विभिन्न आकलनों के आधार पर चुनाव समिति नाम तय कर केंद्रीय चुनाव समिति को भेजती है। चुनाव जीतने की संभावना और साफ-सुथरी छवि सबसे बड़ा मानदंड है। परिवर्तन तो हर बार होते हैं। पिछली बार भी परिवर्तन हुआ था।