
election commission's eyes on Sapaks in Mp
रायपुर. चुनावी साल उम्मीदों और सौगातों का त्योहार होता है। हालांकि दोनों ही चीज आम जनता के लिए नहीं, बल्कि हमारे नेता जी के लिए लागू होती है। उनके दोनों हाथ में लड्डू होता है। राजनीतिक दलों के पार्टी दफ्तरों में इस त्योहार का मनाने वालों की लंबी लाइन लगी है। अभी तो सभी उम्मीद से ही दिख रहे हैं, परंतु टिकट के बंटवारे के बाद खुशी और गम दोनों को नजारा आसानी से दिखाई देगा। एेसे त्योहारी सीजन में एेसे ही एक पार्टी का साथ छोड़कर जाने वालों की लाइन लगी हुई। आए दिन कोई न कोई अपना रास्ता बदल रहा है। इसके बाद भी इस पार्टी के नेता चिंता कम और मौके का इंतजार ज्यादा कर रहे हैं। पार्टी के नेता सीना तान कर कह रहे हैं कि अभी तो हमारी बारी है, लेकिन टिकट वितरण के बाद उनकी बारी शुरू हो जाएगी। आप तो बस मौके का इंतजार करो और देखों कि आगे-आगे होता है क्या?
वीरू और गब्बर की जोड़ी
चुनाव नजदीक आते हैं राजनीतिक दलों ने सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। इसके लिए बकायदा लोगों को खोज-खोजकर काम पर रखा जा रहा है। इसका परिणाम भी बड़ा अजीब आ रहा है। चुनाव का समय करीब आते-आते यहां विचारों और विकास की जगह आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। जिस सोशल मीडिया प्लेटफार्म को खोलो उसमें राजनीतिक दल एक-दूसरे को सिर्फ बुरा-बुरा कहने में लगे हैं। इस बार तो इस बात की होड़ मच गई है कि कौन सबसे बुरा लिखकर अपने आका को खुश कर सकता है। हर जगह वीरू और गब्बर की जोड़ी दिखाई देती है। मजेदार यह है कि राजनीतिक दलों के कमेंट देखकर आधा दिन यह समझने में निकल जाता है कि हमारा गब्बर कौन है? और हमारा वीरू कौन है? जनता भी समझ रही है कि चुनावी साल में यहां राजनीति ही धर्म है और एक बात तो यह तय है कि आगामी विधानसभा चुनाव जो परचम लहराएगा वो वीरू हो जाएगा और जो चुनाव हारेगा पार्टी अपने आप उसे गब्बर बना देगी।
अभी तो समय है भैया
हमारे भैया जी सब काम-धंधा छोड़कर पार्टी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। उनके धरना-प्रदर्शन में प्राथमिकता से अपनी उपस्थिति भी दर्ज करवा रहे हैं। एक दिन तो भैया की रात को घर ही नहीं पहुंचे, पता चला कि वो तो गिरफ्तार हो गए हैं। पार्टी दफ्तर के बाद झंडा लेकर खड़े जब नेता जी से किसी ने पूछा लिया कि क्या भैया बड़े दिन बाद दिख रहे हो, तो हमारे नेता भैय्या जी का मिजाज ही बिगड़ गया। उन्होंने सामने वाले को जमकर खरी-खोटी सुनाई और हमारे पास आकर धीरे से कान में कहा, भैया अभी तो समय है। यदि अभी नहीं दिखेंगे, तो पांच साल मलाई कैसे खाएंगे? सत्ता मिली तो ठीक नहीं, तो पीछे का दरवाजा खुला हुआ है।
राजनीति का अनोखा रंग
राजनीति में कबीर का यह दोहा 'निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करें सुभाय' पूरी तरह फीट नहीं बैठता है। दरअसल, टिकट के जो भी दावेदार आ रहे हैं, वो विरोधी दावेदारी की पूरी निंदा की पोटली लेकर भी आ रहे हैं। एेसे में भाई साहब अपनी टिकट तो पक्की नहीं करा पा रहे हैं, लेकिन दूसरों की टिकट का पत्ता जरूर साफ कर रहे हैं। जबकि बड़े भाई साहब ने पहले ही कह दिया था, कि दूसरों की बुराई नहीं, केवल अपनी उपलब्धियों को बताओ। अब बड़े भाई साहब को कौन बताएं यह राजनीतिक का अपना अनोखा रंग हैं।
Published on:
30 Sept 2018 06:11 pm
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