
सीएम बोले- सवाल बस्तर का है, आप हां बोलो तो हां,नहीं तो नहीं
रायपुर. छत्तीसगढ़ की महत्वाकांक्षी बोधघाट बहुउद्देशीय परियोजना के भविष्य को लेकर पहली महत्वपूर्ण बैठक शनिवार को मुख्यमंत्री निवास में हुई। बस्तर संभाग के जनप्रतिनिधियों के सामने जल संसाधन विभाग ने परियोजना का शुरुआती खाका रखा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, सवाल बस्तर का है। आप लोग हां कहेंगे तो हां और नहीं कहेंगे तो नहीं। क्षेत्र के अधिकतर विधायकों ने कहा, यह परियोजना हमारे भविष्य के लिए है। यह परियोजना पूरी होनी चाहिए, लेकिन लोगों का पुनर्वास पूरा हुए बिना काम शुरू न किया जाए।
विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मण्डावी ने कहा कि कांग्रेस हमेशा से बस्तर में जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ती रही है। इस मुद्दे को भी उसी से जोड़कर देखना होगा। इसलिए जरूरी है, विस्थापन से पहले ही पुनर्वास का काम पूरा हो जाए। परियोजना की नहरों के किनारे ही उन्हें बसाया जाए, ताकि पानी का उपयोग कर वे भी दोफसली खेती कर सकें। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और कोण्डागांव विधायक मोहन मरकाम ने भी प्रभावित आबादी का मामला उठाया। उन्होंने कहा, उन लोगों को भी विश्वास में लेना होगा। पत्रिका से बातचीत में मोहन मरकाम ने कहा, कि बस्तर के हित में सभी ने इसका स्वागत किया है, और कुछ सुझाव भी दिए हैं। बता दें, करीब 50 साल पुरानी बोधघाट बहुउद्देशीय परियोजना के लिए सरकार ने नये सिरे से कवायद शुरू की है। केंद्रीय जल आयोग ने भी इसे हरी झंडी दिखा दिया है। विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरणविद् और मानवाधिकार कार्यकर्ता इसका विरोध कर रहे हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने परियोजना को विनाशकारी बताया है। इसलिए सरकार इस पर फिर से रायशुमारी कर रही है। बैठक में जल संसाधन मंत्री रविन्द्र चौबे, वन मंत्री मोहम्मद अकबर, उद्योग मंत्री कवासी लखमा, राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल, बस्तर सांसद दीपक बैज, राज्यसभा सांसद फूलो देवी नेताम, विधायक राजमन बेंजाम, विक्रम मंडावी, मनोज मंडावी, संत नेताम, शिशुपाल सोरी, रेखचंद जैन, मोहन मरकाम, देवती कर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम सहित बस्तर संभाग के जिला पंचायत अध्यक्ष और अफसर शामिल हुए।
माओवादी खतरों की भी बात
बैठक में परियोजना को लेकर माओवादियों की ओर से संभावित खतरे पर भी चर्चा हुई। विधायकों ने बताया कि प्रभावित लोगों को ठीक तरीके से विश्वास में नहीं लिया गया तो माओवादी बड़ा विरोध खड़ा कर देंगे। जनप्रतिनिधियों पर हमले की आशंका भी जताई गई।
परियोजना पर तीखे सवाल
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने पूछा, तत्कालीन मध्य प्रदेश विद्युत मंडल की रिपोर्ट में कहा गया था, परियोजना से सिंचाई नहीं हो सकती तो विभाग लाखों एकड़ में सिंचाई का दावा कैसे कर रहा है। उन्होंने बस्तर में राजस्व की खाली जमीनों की अनुपलब्धता का मामला उठाया। नेताम ने कहा, जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता को फील्ड में पसीना बहाना होगा।
तीन लाख हेक्टेयर में सिंचाई
जल संसाधन विभाग के सचिव अविनाश चम्पावत ने बताया, इस परियोजना से बस्तर की इकोनॉमी में 6 हजार 223 करोड़ रुपए की बढ़ोत्तरी होगी। इन्द्रावती नदी के 300 टीएमसी जल का उपयोग छत्तीगसढ़ कर सकता है। वर्तमान में मात्र 11 टीएमसी जल उपयोग हो रहा है। बोधघाट परियोजना के निर्माण से 168 टीएमसी जल का उपयोग हो सकेगा। इससे 3 लाख 66 हजार हेक्टेयर में सिंचाई और लगभग 300 मेगावाट विद्युत का उत्पादन होगा।
पुनर्वास के बाद ही अधिग्रहण का वादा
इंद्रावती नदी के जल का सदुपयोग कर बस्तर को खुशहाल और समृद्ध बनाने के लिए बोधघाट परियोजना जरूरी है। प्रभावितों के लिए पुनर्वास एवं व्यवस्थापन की बेहतर व्यवस्था की जाएगी। विस्थापितों को उनकी जमीन के बदले बेहतर जमीन, मकान के बदले बेहतर मकान दिए जाएंगे। कोशिश होगी, इस प्रोजेक्ट की नहरों के किनारे की सरकारी जमीन प्रभावितों को मिले, ताकि वह खेती-किसानी बेहतर तरीके से कर सके। प्रभावितों के पुनर्वास एवं व्यवस्थापन के बाद ही उनकी भूमि ली जाएगी।
- भूपेश बघेल, मुख्यमंत्री
Published on:
20 Jun 2020 10:41 pm
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