कोरदा (लवन). ग्राम कोरदा में चल रहे श्रीमद भागवत कथा के पांचवे दिन श्रीकृष्ण जन्म का वर्णन किया गया। इस दौरान श्रद्धालुआं ने श्रीकृष्ण के जन्म पर झूमते हुए खुशिया मनाई। शुक्रवार को कथा वाचक पंडित नील कमल ओझा सारंगढ़ वाले महराज ने कहा कि जब धरती पर चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। चारो ओर अत्याचार, अनाचार का साम्राज्य फैल गया तब भगवान श्रीकृष्ण ने देवकी के आठवे गर्भ के रूप में जन्म लेकर कंस का संहार किया।
भगवान कृष्ण को वासुदेव यशोदा मईया के घर ले जा रहे थे तो, शेषनाग ने छाया की और गंगामाता ने चरण छुए कृष्ण को नंदबाबा के घर छोड़कर यशोदा मईया की कन्या को लेकर वापस कंस के कारागृह में आए। पंडित ओझा ने श्रीकृष्ण लीला के बाल लीला का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण नित्य ही माखन चोरी लीला करते हैं। मां यशोदा के बार.बार समझाने पर भी श्रीकृष्ण नहीं मानते हैं तो मां यशोदा ने भगवान को रस्सी से बांधना चाहा पर भगवान को कौन बांध सकता हैए लेकिन भगवान मां की दयनीय दशा को देखते हुए स्वयं बंध जाते है। इसलिए भगवान को न धनए पद व प्रतिष्ठा से नहीं बांध सकता। भगवान तो प्रेम से बंध जाते हैं।
कथा वाचक पंडित ओझा ने भागवत कथा में राम जन्म की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि महाराजा मांद्यता के वंश में दिलीप, रघु, अज और दशरथ राजा हुए। जिनके चौथे पंत में गुरू वरिष्ठ की कृपा से पुत्रयेष्ठि यज्ञ श्रगरी ऋषि द्वारा कराया गया। अग्नि देवता प्रकट हुए उन्होंने दशरथ को खीर का प्रसाद दिया। वह खीर तीनों रानियों को दी गई। खीर का प्रसाद तीन भाग में पहला कौशिल्या को दूसरा कैकयी को और तीसरा सुमित्रा को दिया। सुमित्रा से खीर चील उठाकर ले गई। चील ने उस खीर के दाने को अंजनी को खिलाया, जिसके खाने से हनुमान जी का जन्म हुआ। कौशिल्या व कैकेयी ने अपनी खीर में से थोड़ा-थोड़ा भाग सुमित्रा को दिया जिससे उनके दो पुत्र हुए। इस प्रकार चैत्र शुक्ल के नवमी तारिख को राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुहन चारों भाइयों का जन्म हुआ। कथा को श्रवण करने गांव के श्रोता सहित आसपास के श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं।