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लाचार मरीज का इलाज कराना मुश्किल, क्योंकि एम्स मतलब भागदौड़ और पूरा दिन

छत्तीसगढ़ सहित करीब दस राज्यों के लोग पहुंचते हैं। सुबह 5 बजे से इलाज के लिए लगती है लाइन, इलाज कराने में 6 से 7 घंटे लग जाते हैं।

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सिटी रिपोर्टर@रायपुर। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक नया आयाम हासिल किया है, लेकिन यहां आने वाले मरीजों को इलाज कराने में 6 से 7 घंटे लग जाते हैं। इलाज कराने के लिए मरीज को 'स्वस्थ' रहना बेहद जरूरी है, क्योंकि रजिस्ट्रेशन से लेकर ओपीडी में इलाज, जांच, भर्ती कराने तक उन्हें इतना भागदौड़ के साथ लंबा इंतजार करना पड़ता है, जो एक बीमार व्यक्ति तो कर ही नहीं सकता। एम्स में छत्तीसगढ़ सहित करीब दस राज्यों के लोग इलाज कराने पहुंचते हैं। सुबह 4-5 बजे से ही लोग यहां मरीजों की लंबी लाइन लगनी शुरू हो जाती है। इतनी सुबह लाइन लगाने वाले लोगों का रजिस्ट्रेशन 8.30 से 9.30 बजे के बीच हो जाता है। इसके बाद इलाज कराने में 11 से 12 बजे जाते है। इसके बाद दवाइयां लेने में घंटेभर का समय लग जाता है। यहां बेटे का इलाज कराने रायगढ़ से पहुंचे संतूराम ने बताया, यहां इलाज की सारी सुविधाएं तो मिल रही हैं, लेकिन इसमें काफी वक्त निकल जाता है। कई बार विलंब होने से ट्रेनें भी छूट जाती हैं।

भीड़ इतनी कि बैठने की जगह नहीं, इसलिए खड़े-खड़े इंतजार
रजिस्ट्रेशन के लिए काउंटर खुलने पर यहां ऑफलाइन व ऑनलाइन पंजीयन कराने वालों की दो तरह की लाइन लगती है। इसके बाद रजिस्ट्रेशन के लिए टोकन मिलता है। टोकन लेकर मरीज अपना पंजीयन कराने के बाद ओपीडी में जाते हैं। रोजाना की तरह गुरुवार को भी अस्थि रोग व नेत्र रोग विभाग में काफी भीड़ देखने को मिली। पांच परामर्श केंद्र होने के बाद भी भीड़ इतनी ज्यादा थी कि मरीजों को बैठने तक की जगह नहीं मिली। ऐसे में अस्थि रोग विभाग की ओपीडी के बाहर ही लोग घंटों खड़े रहे।

किसी बड़े नेता से परिचय नहीं तो आपातकाल में नो-एंट्री
एम्स के आपातकाल में भी कई बार मरीज के परिजन बुरे फंस जाते हैं। यहां गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीजों को आपातकाल में नहीं लिया जाता। नाम नहीं छानने की शर्त पर एक युवक ने बताया कि उसने अपने पड़ोसी को मेजर हार्ट अटैक आने पर प्राइमरी इलाज के बाद एम्स रेफर कराया था, लेकिन वहां उनकी गंभीर स्थिति को देखते हुए उनकी भर्ती नहीं ली जा रही थी। ऐसे में उसने किसी विधायक को फोन पर इसकी जानकारी दी। तब जाकर उन्हें भर्ती किया गया।

जांच और सर्जरी के लिए मिलती है लंबी डेट
मरीज घंटों इंतजार के बाद इलाज तो करा लेते हैं, लेकिन कई जांच के लिए लंबी डेट दी जाती है, जो संभव नहीं हो पाता। जैसे गर्भवती महिला को डॉक्टर ने गर्भ के पांच महीने की सोनोग्राफी कराने के लिए कहा है तो यहां उसे डेढ़ से दो महीने की डेट दी जाती है। वहीं जटिल सर्जरी के लिए भी कई बार एक-दो महीने का समय दे दिया जाता है। ऐसे में मरीज को दूसरी जगह पर जाकर जांच व सर्जरी करानी पड़ जाती है।

नहीं मिल पाती पूरी दवाइयां
एम्स के गेट नंबर-1 और गेट नंबर-4 में स्थित फार्मेसी में 80 फीसदी तक के डिस्काउंट में दवाइयां मिल जाती है, लेकिन यहां यहीं के डॉक्टरों के द्वारा लिखी गई आधी दवाइवां नहीं मिल पाती। ऐसे में मरीजों को बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ती है।

प्रदेश के साथ ही यहां इलाज के लिए दूसरे राज्य के लोग भी पहुंचते हैं, इसलिए अत्यधिक भीड़ से इलाज में समय लगता है। इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि रेफरल सिस्टम बननी की जरूरत है, ताकि छोटी बीमारियों के लिए लोगों को यहां इलाज के लिए आना ना पड़े, उनका वहीं आसपास के अस्पतालों में इलाज हो सके। ऐसे मरीजों के लिए यहां सक्रीनिंग ओपीडी भी शुरू की गई है। यहां रोजाना आने वाले ढाई से तीन हजार मरीजों में ढाई से तीन सौ मरीज स्क्रीनिंग ओपीडी में इलाज कराते हैं।